03 मार्च, 2021

चाहा तो ऐसा ही था !


 














"पुष्प की अभिलाषा" से मेरा क्या वास्ता था अपनी तो बस एक चाह थी छोटी सी पर बहुत बड़ी ... कि मैं बनूं, अल्हड, अगराती पुरवा का बेफिकर, बेखौफ, बिंदास झोंका दरवाज़ा चाहे जिसका भी हो, उसकी सांकल खटखटा दूं और दरवाज़े के खुलते ही जब तक कोई संभले, शैतान बच्चे की तरह - करीने से रखी सारी चीज़ें बिखेर दूं, मेरी धमाचौकड़ी से जो मचे अफरातफरी...सामान सहेजने की तो मैं शोखी का जामा पहनकर ज़ोर से खिलखिलाऊं ! बन जाऊं --- केदार की बसंती बंजारन जायसी की कलम से निकला वो भ्रमर, वो काग कालिदास का मेघ प्रियतम का संदेश सुनाता, गाता मेघराग पहाड़ों के कौमार्य में पली वादियों के यौवन में ढली शिवानी की अनिंद्य सुंदरी नायिका ! ......... बारिश ठहरने के बाद आहिस्ता आहिस्ता टपकती बूंदों की नशीली आवाज़ की तरह, मिल जाए कोई इश्क - सा ! पकड़ ले मेरा हाथ और कहे, ' थम भी जा बावरी ! थक जाएगी, आ, थोड़ा बैठ जा चल मेरे संग एक प्याली चाय आधी- आधी पी लें ... पर ज़रा रुक, मैं बंद कर लूं खिड़कियां वरना निकल जाएगी तू ! ...... बता तो सही, नदी, नालों, पहाड़ों को पार करते सुदीर्घ यात्रा तय कर हंसिनी सी, मानसरोवर के तीर जा पहुंचती है ..... क्या तलाश रही है ? खुद को ? मिल जाएगी क्या ऐसे ? खुद से ? अकेली ही ? ' और मैं ! पुरवा का परिधान उतार कर उस माहिया, उस रांझणा के पन्नों पर स्याही सी बिखर जाऊं ..... मेरे अंदर की पुरवाई ने चाहा तो ऐसा ही था !

13 टिप्‍पणियां:

  1. अहा! आभिलाषा बूँद की, पुरवा की ...
    बेहद खूबसूरत!

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  2. कितनी खूबसूरत और मासूम सी चाह । टपकती बूंद की नशीली आवाज़ ..बहुत प्यार रूपक ।
    बहुत प्यारी रचना ।

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  3. और मैं !
    पुरवा का परिधान उतार कर
    उस माहिया,
    उस रांझणा के पन्नों पर
    स्याही सी बिखर जाऊं

    मधुर अहसास जगाती पंक्तियां...

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  5. हवा के केंद्र बिंदु मे एक बेहतरीन प्रस्तुति।

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  6. वाह!
    उस माहिया,
    उस रांझणा के पन्नों पर
    स्याही सी बिखर जाऊं ।
    सादर

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  7. बहुत सुंदर प्यारी सी अभिलाषा।

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  8. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. प्रकृति और जीवन के मध्य मनहर अभिलाषा
    बहुत सुंदर शब्दचित्र

    सादर

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  10. "पुष्प की अभिलाषा" को रचे सौ साल हो गए और आपका यूँ उसे नए अर्थ में प्रस्तुत करना, सच में दिल को छू गया

    बहुत सुन्दर

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  11. " ' थम भी जा बावरी !
    थक जाएगी,
    आ, थोड़ा बैठ जा
    चल मेरे संग
    एक प्याली चाय
    आधी- आधी पी लें ...
    पर ज़रा रुक," - रूमानी भावनात्मक उद्गार की पराकाष्टा .. बस .. आधी-आधी प्याली या फिर कुल्हड़ की सोंधी चाय .. जो भी हो .. बस यूँ ही ...

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