25 जून, 2022

मैं भीष्म


 


मैं भीष्म
वाणों की शय्या पर
अपने इच्छित मृत्यु वरदान के साथ
कुरुक्षेत्र का परिणाम देख रहा हूँ
या ....... !
अपनी प्रतिज्ञा से बने कुरुक्षेत्र की
विवेचना कर रहा हूँ ?!?
एक तरफ पिता शांतनु के दैहिक प्रेम की आकुलता
और दूसरी तरफ मैं
.... क्या सत्यवती के पिता के आगे मेरी प्रतिज्ञा
मात्र मेरा कर्तव्य था ?
या - पिता की चाह के आगे
एक आवेशित विरोध !
अन्यथा,
ऐसा नहीं था
कि मेरे मन के सपने
निर्मूल हो गए थे
या मेरे भीतर का प्रेम
पाषाण हो गया था !
किंचित आवेश ही कह सकता हूँ
क्योंकि ऐसी प्रतिज्ञा शांत तट से नहीं ली जाती !!
वो तो मेरी माँ का पावन स्पर्श था
जो मैं निष्ठापूर्वक निभा सका ब्रह्मचर्य
.... और इच्छितमृत्यु
मेरे पिता का दिया वरदान
जो आज मेरे सत्य की विवेचना कर रहा है !
कुरुक्षेत्र की धरती पर
वाणों की शय्या मेरी प्रतिज्ञा का प्राप्य था
तिल तिलकर मरना मेरी नियति
क्योंकि सिर्फ एक क्षण में मैंने
हस्तिनापुर का सम्पूर्ण भाग्य बदल दिया
तथाकथित कुरु वंश
तथाकथित पांडव सेना
सबकुछ मेरे द्वारा निर्मित प्रारब्ध था !
जब प्रारब्ध ही प्रतिकूल हो
तो अनुकूलता की शांति कहाँ सम्भव है !
कर्ण का सत्य
ब्रह्मुहूर्त सा उसका तेज …
कुछ भी तो मुझसे छुपा नहीं था
आखिर क्यूँ मैंने उसे अंक में नहीं लिया !
दुर्योधन की ढीढता
मैं अवगत था
उसे कठोरता से समझा सकता था
पर मैं हस्तिनापुर को देखते हुए भी
कहीं न कहीं धृतराष्ट्र सा हो गया था !
कुंती को मैं समझा सकता था
उसको अपनी प्रतिज्ञा सा सम्बल दे
कर्ण की जगह बना सकता था
पर !!!
वो तो भला हो दुर्योधन का
जो अपने हठ की जीत में
उसने कर्ण को अंग देश का राजा बनाया
जो बड़े नहीं कर सके
अपनी अपनी प्रतिष्ठा में रहे
उसे उसने एक क्षण में कर दिखाया !
द्रौपदी की रक्षा
मेरा कर्तव्य था
भीष्म प्रतिज्ञा के बाद
अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका को मैं बलात् ला सकता था
तो क्या भरी सभा में
अपने रिश्ते की गरिमा में चीख नहीं सकता था !
पर मैं खामोश रहा
और परोक्ष रूप से अपने पिता के कृत्य को
तमाशा बनाता गया !
अर्जुन मेरा प्रिय था
कम से कम उसकी खातिर
मैं द्रौपदी की लाज बचा सकता था
पर अपनी एक प्रतिज्ञा की आड़ में
मैं मूक द्रष्टा बन गया !
मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है
कि इस कुरुक्षेत्र की नींव मैंने रखी
और अब -
इसकी समाप्ति की लीला देख रहा हूँ !
कुछ भी शेष नहीं रहना है
अपनी इच्छितमृत्यु के साथ
मैं सबके नाम मृत्यु लिख रहा हूँ
कुछ कुरुक्षेत्र की भूमि पर मर जाएँगे
तो कुछ आत्मग्लानि की अग्नि में राख हो जाएँगे
कहानी कुछ और होगी
सत्य कुछ और - अपनी अपनी परिधि में !

14 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-6-22) को "चाहे महाभारत हो या रामायण" (चर्चा अंक-4472) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  2. भीष्म का एकालाप ..... ग़ज़्ज़ब लिखा है ।।

    जवाब देंहटाएं
  3. गलतफ़हमी का कोई क्या करे ? मुझे लगता है मैं कृष्ण । क्या किया जाये?

    जवाब देंहटाएं
  4. भीष्म पितामह के अन्तर्द्वन्द को प्रस्तुत करती उम्दा अभिव्यक्ति , बहुत बधाइयां आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना सोमवार 27 जून 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  6. आत्मावलोकन करना, स्वयं को कटघरे में खड़ा करना अपने कर्मों के लिए आत्मग्लानि में तड़पना भीष्म के अतिरिक्त कोई और कर भी नहीं सकता है।
    मनुष्य जीवन के शाप की परिणिति है उनका संपूर्ण जीवन सदैव दायित्व और कर्तव्य बोध में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया किंतु स्वयं के लिए एकपल भी न जीया।
    उनकी आत्माभिव्यक्ति उदाहरण है संसार के लिए सीख है।
    अत्यंत गहन भाव लिए सारगर्भित अभिव्यक्ति।
    प्रणाम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. शब्द शब्द हृदय में उतरते।
    सराहनीय सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. भीष्म पितामह के सम्पूर्ण जीवन का सार लिख दिया आपने आदरणीया रश्मि प्रभा जी,उनका तो समस्त जीवन ही एक ग्रन्थ है जिससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है, शानदार सृजन,सादर नमस्कार आपको 🙏

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...