कोई रेस तो है सामने !!!
किसके साथ ?
क्यों ?
कब तक ? - पता नहीं !
पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से
बहुत घबराहट होती है !
प्रश्न डराता है,
नहीं दौड़ पाए तो,
अचानक गिर गए तो,
बहुत पीछे रह गए तो ....
तो क्या ?
सबसे आगे आना जीत है
लेकिन सब तो सबसे आगे नहीं होते
और चूक जाना
उस वक्त का परिणाम है
पूरी ज़िंदगी कोई नहीं तय करता,
हो भी नहीं सकता !
मिनट मिनट में बाज़ी पलटती है
धावक बदलते हैं
कब किसकी जुबान पर
किसके नाम का पताका फहरेगा,
कोई नहीं जानता !
सारी सीख,
सारे समझौतों के बाद भी
एक रेस जारी है ...
यकीनन कोई रुका हुआ लग रहा है
लेकिन वह रुका नहीं है !
नहीं चाहकर भी
वह दौड़ रहा है
पांव हों ना हों,
दौड़ चल रही है,
किसी भी एक की जीत
हमेशा तय नहीं
फिक्सिंग भी तो है !!!
झल्लाहट हो,
रोना पड़े,
सबकुछ रुका हुआ प्रतीत हो
... पर दौड़ना है,
दौड़ जारी है !!!
रश्मि प्रभा
इतने दिनों बाद? कहां दौड़ जारी है? :)
जवाब देंहटाएं"मिनट मिनट में बाज़ी पलटती है धावक बदलते हैं कब किसकी जुबान पर
हटाएंकिसके नाम का पताका फहरेगा, कोई नहीं जानता ! " आम जीवन में सत्य लगता है | राजनीति में अब समीकरण के हिसाब से चलता है |
बहुत ही सुन्दर सार्थक भावपूर्ण रचना दौड़ के माध्यम से वर्तमान परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण
जवाब देंहटाएंमन कुछ ऐसा मान बैठा है,
जवाब देंहटाएंदौड़े नहीं तो ज़िन्दगी थम जाएगी,
ट्रेन छूट जाएगी,
बस चली जाएगी ,
छुट्टी कट जाएगी ,
इसलिए हम बन गए
रेस के घोड़े जिनके
पट्टा बंधा है
आँखों की दोनों ओर
सामने देखते हुए
भागते जाना है सीधे,
ख़ुद से भी आगे.
एक अलग दृष्टिकोण से दिखने के लिए धन्यवाद, रश्मिप्रभा जी. नमस्ते.
क्योंकि दौड़ने के लिए अनंत काल है सामने और अनंत देश, जो कालातीत हो और देशातीत, वह थम गया
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