09 नवंबर, 2024

एहसास

 मैंने महसूस किया है 

कि तुम देख रहे हो मुझे 

अपनी जगह से ।

खासकर तब,

जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में 

मेरा ही मन

कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता है !

मेरे मन‌ की द्रौपदी को 

मेरा ही मन 

दु:शासन बना घसीटता है 

आहत होकर भी पितामह मन

कुछ नहीं कहता 

और कर्ण की तरह दान देता मन

दानवीरता, मित्रता, कर्तव्य निभाने में 

कहीं कमज़ोर हो जाता है 

कहीं ग़लत !!!

केशव,

तुम हर बार आकर 

मेरे अदृश्य सारथी बनकर

सखा बनकर

गुरु बनकर

मुझे गीता सुनाते हो !

उस गीता ने ही 

मुझे तुम्हारे दर्द को समझने की क्षमता दी है।

हां केशव,

दर्द को सहने की क्षमता जिसमें हो,

वही कहता है,

तुम्हारा क्या गया जो रोते हो !"

वही मानता है,

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन !"

वही अराजकता के अंध कूप से 

यह उद्घोष करता है,

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌  ।


रश्मि प्रभा

5 टिप्‍पणियां:

  1. अराजकता के अंधकूप से भी जो विजय का उद्घोष कर सके वही तो केशव है

    जवाब देंहटाएं
  2. सच में इस मन के इतने रूप भी कैसे कैसे सताते हैं शुक्र है कि इसी मन में आखिर केशव भी आते हैं ।
    लाजवाब सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. अपने मन के अंदर चल रहे महाभारत में बस उस एक सारथी से ही आस है! और कई बार यह मन अपने ही उस सारथी से अपनी दृष्टि दूसरी और फेर लेता है!

    बहुत दिनों बाद लॉग इन करने का मौका मिला. आशा है आप सकुशल एवं सानंद होंगी!

    जवाब देंहटाएं

आ अब लौट चलें

 नया साल, नया संकल्प, एक सकारात्मक क़दम । शुभकामनाओं के साथ लाई हूं वही पुराना अनुरोध - चलो, फिर से पूरे जोश के साथ ब्लॉगिंग शुरू करते हैं ।...