माँ के गर्भ मे
अभिमन्यु ने चक्रव्यूह मे जाना सीखा
निकलने की कला जाने
उससे पहले , निद्रा ने माँ को आगोश मे लिया
भविष्य निर्धारित किया
चक्रव्यूह उसका काल बना !
मेरी आंखें, मेरा मन , मेरा शरीर
मंत्रों की प्रत्यंचा पर जागा है
तुम्हारे चक्रव्यूह को अर्जुन की तरह भेदा है
मेरी आशाओं की ऊँगली थाम कर सो जाओ
विश्वास रखो -
ईश्वर मार्ग प्रशस्त करेंगे
अभिमन्यु ने चक्रव्यूह मे जाना सीखा
निकलने की कला जाने
उससे पहले , निद्रा ने माँ को आगोश मे लिया
भविष्य निर्धारित किया
चक्रव्यूह उसका काल बना !
मेरी आंखें, मेरा मन , मेरा शरीर
मंत्रों की प्रत्यंचा पर जागा है
तुम्हारे चक्रव्यूह को अर्जुन की तरह भेदा है
मेरी आशाओं की ऊँगली थाम कर सो जाओ
विश्वास रखो -
ईश्वर मार्ग प्रशस्त करेंगे
bahut sundar bhavuk kavita hai,bahut pasand aayi.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया महक
जवाब देंहटाएंvishvas se bhara huya hai ye ashirwad bahut khoob
जवाब देंहटाएंAnil
Behtar kavita, lakin mere hisab se मेरी आशाओं की ऊँगली थाम कर सो जाओ me "so Jao" ki jagah "Aage Bado" hota to sayad jayada behtar hota.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लिखी है दीदी....अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंमन का वात्सल्य तो भरपूर है..पर कविता कहीं अधूरी सी लगी..
जवाब देंहटाएंआशीष............ इस कविता में माँ का वत्सल्व मानो उमड़ आया है ........ रश्मि जी आपकी यह रचना बेहद भावनापूर्ण है..... अच्छी है........शुभकामनाएं........
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