12 सितंबर, 2008

मानो तो.....


कविता तो पढ़ते हो ,
शब्दों की सुन्दरता का आकलन करते हो ,
'वाह' , 'वाह' भी करते हो...........
कभी लिखनेवाले के मर्म को जीया है?
समझा है उस घुटन को-
जो बेचैन से
किसी छोर से अकुलाते
अपनी मनःस्थिति को उजागर करते हैं !
.......
कभी जीकर देखो,
वहां तक-
कुछ ही हद तक पहुंचकर देखो........
तब कलम लो
और देखो,
वह क्या कहती है !
कवि की घुटन,
आंसू से शब्द,
अव्यवस्थित खांचे
गंगा की तरह होते हैं -
मानो तो पावन गंगा,
ना मानो तो -
बस एक नदी !

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ....
    एक कवि के अंतर्मन की छवि को आपने बहुत सुंदर तरीके से बताया है ...

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  2. तब कलम लो
    और देखो,
    वह क्या कहती है !
    कवि की घुटन,
    आंसू से शब्द,
    अव्यवस्थित खांचे
    गंगा की तरह होते हैं -
    मानो तो पावन गंगा,
    ना मानो तो -
    बस एक नदी !


    बिल्कुल सही लिखा आपने ..बहुत सुंदर रचना ..

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  3. वाह! लिखने वालों के अंतर्मन में उठने वाले दर्द कितनी गहराई से उभरा है...

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  4. कविता तो पढ़ते हो ,
    शब्दों की सुन्दरता का आकलन करते हो ,
    'वाह' , 'वाह' भी करते हो...........
    कभी लिखनेवाले के मर्म को जीया है?
    समझा है उस घुटन को-
    जो बेचैन से
    किसी छोर से अकुलाते
    अपनी मनःस्थिति को उजागर करते हैं !


    बहुत ख़ूब...

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  5. aaj is rachna par WAH nahi kahoongi. kyon ki main is rachna ko jee rahi hoon. aatmsaat kar rahi hoon. kyon ki main bhi kabhi kabhi ganga ka swaad leti hoon.
    EK SACHCHI ABHIVYAKTI.

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  6. Rani Mishra

    सुनना, समझना, और समझ कर महसूस करना कि उस समय रचनाकार क्या अनुभव कर रहा होगा, यह बहुत ही मुश्किल है, पर अगर कोई उस अनुभव को महसूस कर ले तो समझो रचनाकार कि कृति सफल हो गयी...... कवी कि अभिव्यक्ति को एक नया आयाम मिल गया........
    और सच है ये मानो तो भगवान् है, और न मानो तो सिर्फ एक पत्थर कि मूर्ति है...........

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  7. hmmm bhaut sachhi baat kahi hai
    ki wah wah ke baad kabhi us lamhe k jiya hai jisne wo shabdon ko janam diya

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  8. कभी जीकर देखो,
    वहां तक-
    कुछ ही हद तक पहुंचकर देखो........
    तब कलम लो
    और देखो,
    वह क्या कहती है !
    कवि की घुटन,
    आंसू से शब्द,
    अव्यवस्थित खांचे
    गंगा की तरह होते हैं -
    अच्छा लिखा है. बधाई

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  9. कविता तो पढ़ते हो ,
    शब्दों की सुन्दरता का आकलन करते हो ,
    'वाह' , 'वाह' भी करते हो...........
    कभी लिखनेवाले के मर्म को जीया है?
    समझा है उस घुटन को-
    जो बेचैन से
    किसी छोर से अकुलाते
    अपनी मनःस्थिति को उजागर करते हैं !
    .......
    viyakul man ki rasveer achchi lagi

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  10. "मानो तो पावन गंगा,
    ना मानो तो -
    बस एक नदी !"

    जीवन के हर पहलू के लिये सत्य है यह!!



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  11. आपने कवि मन की वेदना को समझाने की कौशिश बहुत ही अच्छे तरिके से की है। धन्यवाद

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  12. सुंदर भाव। अति सुंदर शब्द चयन।

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  13. इस कविता में आपने एक कवि के मर्म को उजागर किया है,,वस्तुतः इस तरह की भावनाएं हर इंसान में होती है,,पर जो लेखनी पकड़-कर उन भावनाओ को शब्दों के रूप में व्यक्क्त कर पाता है,वो ही कवि कहलाता है,,,
    एक बार फिर आपने एक सुंदर कविता को सबके सामने प्रस्तुत किया है...
    हार्दिक बधाई...

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  14. कविता तो पढ़ते हो ,
    शब्दों की सुन्दरता का आकलन करते हो ,
    'वाह' , 'वाह' भी करते हो...........
    कभी लिखनेवाले के मर्म को जीया है?
    समझा है उस घुटन को-
    जो बेचैन से
    किसी छोर से अकुलाते
    अपनी मनःस्थिति को उजागर करते हैं !


    kitna shai dard byaan kiya hai yahan apne...shand nahi mil rahe hai..mera bhi yahi manna hai
    kitne mausam jab koi tadpata hai tab jake ek rachna kai baar janam leti hai aur koi aur bas do shabd uske liye khata hai iti shree ho jati hai wah wah..
    uspe wah wah karne se pahle kabhi koi ye sochta bhi hai ki kya gujri hogi jisne woh sab likha hai kuch panktiyo mein jo na jane kitne saare palo kaa saar hai.

    dil ko sukun dete shabd..apne se lage
    ye dard mujhe bhi hota hai jab kisi aur ki rachna ko koi aur apne naam se dalta hai kahin to lagta hai koi kisi ke jiye dard ko apna naam kaise de sakta hai is tarah chura ke uski rachna ko.
    bhaut se khyaal aaye hai is rachna pe lekin sabko likhke bore anhi karungi mein :)
    sasneh
    sakhi

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  15. अरे वाह क्यो नही समझते, समझते तो हे एक एक शव्द कॊ लेकिन ...
    बहुत खुब लिखा अब ओर क्या कहे ...
    धन्यवाद

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  16. a poet's life.........सचमुच एक कवि की जिंदगी जी पाना इतना आसान नहीं है! खुद मै एक कवि होकर इस बात को समझता हूँ .........चाहे वो कवि किसी भी विद्या(जैसे - वीर-रस,प्रेम-रस,हास्य-रस,......) का हो उसका मन हमेशा व्याकुल रहता है,बेचैन रहता है!लेकिन वह इस बेचैनी को भी हँसते हुए ही जगजाहिर करता है,और क्या लिखूं, बस इन दो पंक्तियों के द्वारा एक कवि के दिल का हाल बताना चाहूँगा.........
    'बेचैनिया समेटकर सारे जहां की
    जब कुछ न बन सका, तो मेरा (एक कवि का ) दिल बना दिया "..................एक बेहद ही खुबसूरत रचना mam

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  17. दीदी आपने सच कहा कविता सिर्फ़ वाह-वाह करने के लिये नही उसे समझकर उसमे खो जाने के लिये है!!!

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  18. तब कलम लो
    और देखो,
    वह क्या कहती है !
    कवि की घुटन,
    आंसू से शब्द,
    अव्यवस्थित खांचे
    गंगा की तरह होते हैं -
    मानो तो पावन गंगा,
    ना मानो तो -
    बस एक नदी !


    bahut sundar kaha aapne......

    aabhar.....

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  19. दीदी, धर्म संक़ट मे दाल दिया आपने तो, वाह-वाह कहुँ या ना कहुँ??? वाह-वाह किया तो इल्जाम लग सकता है कि फिर वाह-वाह कह कर रह गये पर पता नही मुआ मर्म समझा या नही, और अगर मरम समझ कर उस मरम मे खो गये और कुछ ना कहा तो कहेंगे की वाह-वाह क्यो ना किया? अब कोई मर्म पर वाह कैसे करे? कवि की अपनी समस्या, बेचारे पाठक की अपनी.....
    पर हम तो ढहरे ढीठ, वाह तो कह कर जायेंगे|

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  20. "कवि की घुटन,
    आंसू से शब्द,
    अव्यवस्थित खांचे
    गंगा की तरह होते हैं "

    नज़्म हो या अफसाना,उनसे इजाज़ नहीं होता .वह आह भी है, चीख भी ,दुहाई भी.मगर इंसानी दर्दों का इलाज नहीं है .वह सिर्फ़ इंसानी दर्दों को ममिया के रख देते हैं,ताकि आनेवाली सदियों के लिए सनद रहे ...गुलज़ार

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