गीता में श्री कृष्ण ने कहा है-
नैनं छिदंति शस्त्राणि,नैनं दहति पावकः ,
न चैनं क्लेदयांत्यापोह,न शोशियती मारुतः ......................
यानि आत्मा अमर है।
तो प्रश्न उठता है कि इन आत्माओं का स्वरुप क्या होता है, क्या यह फिर किसी नए शरीर में आती है, कर्म का हिसाब चुकाने के लिए क्या आत्मा नए-नए रूपों में जन्म लेती रहती है? हाँ- तो यही है पुनर्जन्म!
जितने लोग उतने विचार...
सामान्य धरातल पर मुझे विश्वास है, आत्मा नए शारीरिक परिधान में पुनः हमारे बीच आती है। अगर सतयुग, द्वापरयुग सत्य है तो यह भी सत्य है कि आत्मा का नाश नही, वह जन्म लेती है। राम ने कृष्ण के रूप में, कौशल्या ने यशोदा, कैकेयी ने देवकी, सीता ने राधा के रूप में क्रमशः जन्म लिया...कहानी यही दर्शाती है, तो इन तथ्यों के
आधार पर मेरा भी विश्वास इसी में है।
ये हुई मेरी बात - अब इसी सन्दर्भ में और लोगों के विचार क्रम से रखते हुए मैं आपके विचारों से अवगत होना चाहूँगी ।
श्रीमती सरस्वती प्रसाद ( "नदी पुकारे सागर" काव्यसंग्रह की लेखिका ) के शब्दों में,
" प्रभु के स्वरुप को किसी ने देखा नही है, पर अपनी भावनाओं के धरातल पर प्रभु की प्रतिमा
को भिन्न भिन्न रूप देकर स्थापित कर लेते हैं - यही निर्विवाद सत्य है मान कर आस्था का निराजन अर्पित करते हैं। ठीक इसी प्रकार पुनर्जन्म के प्रश्न पर गीता की सारगर्भित वाणी सामने आती है। छानबीन और तर्कों से परे आत्मा की अमरता पर विश्वास कर के मन को सुकून मिलता है।
मैंने खोया और वर्षों मेरी आत्मा भटकती रही अचानक एक रात मेरी तीन साल की नतनी, जो मेरे ही पास रहती थी रात १२ बजे अचानक उठी और कहा "अम्मा उठो कविता सुनो" और उसने अपने ढंग से एक लम्बी कविता सुनायी। कविता की शुरुआत थी
"माँ तुम दुःख को बोल दो, दुःख तुम पास नही आओ
मेरा गुड्डा खोया गुड्डा आ गया अब आ गया....."
क्या सच है क्या झूठ क्या भ्रम...इन सब से परे मन को अच्छा लगता है सोचना वह है यहीं कहीं पास ही....."
कर्नल अजय कुमार का कहना है, "मैं पुनर्जन्म नही मानता , जितनी कहानियाँ
निकलती हैं वह सब झूठी हैं और अपनी सोच के आधार पर लिखी जाती हैं।"
उनकी पत्नी श्रीमती उषा कुमार के विचार भी कुछ इसी तरह के हैं। उनका कहना है, "इस विषय पर मैंने कभी सोचा ही नही।
क्या है पूर्व जन्म और क्या है पुनर्जन्म...इन सारी बातों से परे मैं वर्त्तमान को जी रही हूँ और यही सत्य है।"
श्री अभय कुमार सिन्हा ( retd. market secretary ) के शब्दों में, " पुनर्जन्म का कोई प्रूफ़ नही है। सारी कहानियाँ मनोवैज्ञानिक स्वभाव की हैं। जैसे भगवान् आदमी
के मन की उपज हैं, वैसे ही पुनर्जन्म के विचार हैं। यह सोचने के लिए की मृत्यु के बाद सब ख़त्म हो जाता है, एक बड़ी भयंकर ताकत की ज़रूरत होती है। दरअसल मनुष्य एक continuity चाहता है तो इसे ही मान लेने में मानसिक संतुष्टि मिलती है। जिन्हें
इन बातों पर विश्वास होता है वे कम कारण ढूंढते हैं, जो हर बात में कारण जानना चाहेंगे उन्हें इन बातों पर विश्वास नही होगा।"
इनकी पत्नी श्रीमती रेणु सिन्हा के शब्दों में, "मैं जब छोटी थी तो पुनर्जन्म पर अनेक कहानियाँ सुनी, बड़े होने पर
पढीं, पर इसका कोई ठोस प्रमाण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नही था... पर, हिंदू धर्म में इस बात पर लोगों में विश्वास है और यह सोच मन को एक शक्ति देती है कि हम किसी नए रूप में इस धरती पर फिर आयेंगे, मिलेंगे...मेरी सोच भी
कहती है कि पुनर्जन्म होता है।"
श्री नवीन कुमार ( retd. SBI officer ) के कथनानुसार, " Hindu mythology और मेरे विचार से आत्मा नही मरती... पुनर्जन्म ज़रूरी नही कि मनुष्य योनि में ही हो, पर जब पुनर्जन्म है तो मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं में हैं और कई उदहारण भी हैं....जिससे यह प्रमाणित होता हैं कि पुनर्जन्म है."
इनकी पत्नी श्रीमती मंजु श्री का कहना हैं कि " पुनर्जन्म होता हैं या नही इस पर कुछ
कहना आसान नही है, पर मैं गीता को मानती हूँ और गीता के कथनानुसार "आत्मा अजर अमर है" तो मैं मानती हूँ कि पुनर्जन्म होता है। साथ ही कई ऐसी अद्भुत घटनाएं पढने सुनने को मिलती हैं जिससे इस विश्वास को बल मिलता है...वैसे यह सोचना भी अच्छा लगता है कि जो प्रिय गए हैं वे एक दिन लौट आयेंगे."
श्रीमती नीलम प्रभा ( शिक्षिका, हिंदी विभाग,डीपीएस ,पटना) स्पष्ट शब्दों में कहती
हैं, "पूर्वजन्म या अगला जन्म और बीच में मृत्यु....सब उतने ही सच हैं जितनी कल की ,आज की और कल की सुबह और प्रकृति के रहस्य हैं !"
श्रीमती वंदना श्रीवास्तव ( प्राचार्या ) के दृष्टिकोण से, "पुनर्जन्म- ऐसा माना जाता है की मृत्यु के पश्चात् मनुष्य के शारीर का कोई हिस्सा बचा रहा जाता है ताकि वह किसी और रूप
/शरीर में जन्म ले सके,इसके वैज्ञानिक तौर पर अब तक कोई प्रमाण नहीं मिले हैं किन्तु आस्था सभी की यही कहती है की पुनर्जन्म होता है तभी तो किसी से मिलने पर लगता है जैसे हमारा उससे कोई नाता है, हम पहले से ही उस व्यक्ति को किसी तरह जानते हैं ,उसकी आदतें, बोलचाल, व्यवहार बहुत जाना पहचाना लगता है और तब ही कहा जाता है की शायद पिछले जन्म का कोई रिश्ता है,उससे मिल कर लगता है जैसे किसी बहुत पुराने रिश्तेदार से मिल रहे हो जबकि हम पहली बार मिलते हैं.....इससे लगता है की हमारा कोई ना कोई पिछला जन्म तो होगा. कभी कभी किसी स्थान पर पहली बार जाने पर भी ऐसा जान पड़ता है मानो हम वहां पहले कई बार आ चुके हैं, हो सकता है की हमारी पूर्वजन्म की कुछ बातें हमारे सूक्ष्म शरीर में रह जाती हैं जो आत्मा के फिर से नए शरीर में आने पर हमारे अवचेतन मन में इंगित करती हैं की ये सब हमारे साथ पहले घटित हो चुका है और तब ही लगता है की हम पिछले जन्म में भी कहीं ना कहीं,किसी ना किसी रूप में अवश्य थे , और ये हमारा पुनर्जन्म है.मेरे विचार से पुनर्जन्म होता है. "
श्रीमती ज्योत्स्ना (http://jyotsnapandey.blogspot.com/) सहजता से बताती हैं,
"पुनर्जन्म होता है या नहीं ? प्रश्न अच्छा है ,इस संदर्भ में मैं आपको अपने ही परिवार की एक घटना से अवगत करती हूँ .....
बात उन दिनों की है जब मेरे बड़े भाई जोकि एयरफोर्स से अब रिटायर हो चुके हैं ,ढाई वर्ष के थे . भोजन परोसते समय माँ से बोले हम ऐसी प्लेटों में नहीं खाते थे .....
कैसी ? माँ ने जिज्ञासावश पूछा .
चीनी-मिटटी की प्लेट की तरफ इशारा करके बोले ऐसी में खाते थे .
अब तो सभी लोग इकट्ठे हो गए और उन बातों को बार बार पूछते ---घर में कौन कौन था ?
मैं मेरी वाइफ और मेरे बच्चे .
कितने बच्चे हैं ?....दो ,बेटी नाम जस्टी,और बेटे का पैनाडी.
तुम क्या करते थे?...मैं इंजिनियर था ......
क्या हुआ था तुम्हें ?....थोडी सी ज्यादा हो गयी थी ............बस एसीडेंट हो गया .
कैसे .?....मेरी व्हाइट कार पीपल से टकरा गयी थी ........न
तुम्हारा घर कहाँ है ?.......मानरोविया..
उस समय इस विषय पर बहुत शोध हो रहे थे ,तो एक पारिवारिक मित्र जो की राजनैतिक भी थे ने सलाह भी दी--"चलो घूमना भी हो जायेगा और खर्चा सरकार उठाएगी .बेटे को ले चलो"
माँ को डर था की कहीं बेटा ही न हाथ से चला जाये उनहोंने मना कर दिया .
{हम गाँव की मिटटी से जुड़े लोग हैं ,आप कह सकती हैं ठेठ देहाती .ऐसे में उनके द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी के शब्द वास्तव में विस्मित करते थे .अब फैसला आप पर छोड़ती हूँ की पुनर्जन्म होता है या नहीं .}"
श्रीमती नीता (http://neeta-myown.blogspot.com/) ने कहा, "अचानक कोई सामने से आकर हँस देता है..ना जान ना पहचान ...अचानक कभी कोई मदद कर देता है...जब हम कोई टिकिट की बड़ी सी लम्बी कतार में खड़े हों और अचानक कोई आ कर कहे हमें, कि मैंने ये कूपन लिया है ज्यादा है क्या आपको चाहिए... कभी कोई आ कर कहता है कि मुझे ऐसा क्यों लगता है की मैंने आपको कही देखा है , ऐसा महसूस होता है...और हमारे दिल के तार भी हिल जाते है॥कभी कुछ काम कर रहे हों तो ऐसा होता है की ये काम हमने पहेले भी तो किया है...कभी कोई ऐसी जगह पे जहाँ हम जाते है जहाँ
पहली ही बार गये हों पर ऐसा लगता है यहाँ आए हों पहले भी... नेट का कोई विश्व था ऐसा हमें पता नहीं था..पर अब ऑनलाइन हमारे बहोत सारे दोस्त है..ऑरकुट में लाखो लोग है..हम क्यों उसमे से १०० को अपना बनाते है..और उसमे से भी क्यों हम सिर्फ १० से जुड जाते हैं ...उसके दुःख से हम दुखी होते है..और उसके सुख से हम सुखी होते है..क्यों एक ही के घर में रह रहे लोग एक दूसरे से बहुत दूर होते है और बहोत दूर रहेने वाले लोग दिल के करीब होते है.. क्या आपके दिल में ऐसे सवाल नहीं आते ?कि क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है............हाँ कुछ है जिसे हम पुनर्जन्म कह सकते है...क्या आप मानते है??"
श्रीमती प्रीती मेहता, (http://ant-rang.blogspot.com/) ने बड़े ही जीवंत अंदाज में कहा, "वेसे तो पुनर्जनम एक् आस्था और विश्वास का विषय है … वेदों और पुराणों में कहा गया है - शरीर नश्वर है , आत्मा तो अमर है .. यानि कह सकते है कि शरीर मरता है, आत्मा नहीं … तो यह आत्मा जाती कहाँ है ..? आत्मा एक् शरीर छोड़ दूसरे शरीर को धारण कर लेती है …
मेरे लिए मेरा अनोखा बंधन ही पुनर्जन्म है ... यह बंधन हर किसी से तो नहीं बंधता .. और जहा बंधता है , वहाँ बस बंधता ही जाता है ...बिना किसी शर्तो के , बिना किसी उम्मीद के ...बस बंध जाता है ....
अनोखा-बंधन
कितना सुन्दर और पवित्र नाम ?
सुन कर ही कुछ अलौकिक अनुभूति का एहसास हो जाता है…
जैसे पूर्व-जन्म का कोई बंधन ?
जो युग-युग से जन्म लेकर इक दिल से दूसरे दिल को जोड़ रहा हो ..?
जो निर्दोष, निस्वार्थ प्रेम भाव का झरना बन अविरत बहता रहता है ..
और यह एहसास सिर्फ महसूस किया जा सकता है,
इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते .
जो सामाजिक और खून के रिश्तो से परे है और कुछ अलग है …
जीवन में बहुत बार अचानक किसी से संबंध बन जाते है,
मन में सकारात्मक और नकारात्मक तरंगे उठने लगती हैं ,
कभी- कभी कुछ क्षण का परिचय कुछ ख़ास बन जाता है ,
और ऐसे संबंध जो ना समझ आये या कहलो
जिसका ताल-मेल बुद्धि से भी ना मिल पाए ,
ऐसे संबंध ऋण का बंधन हैं ,
और यह बंधन कब , क्यों , कैसे … किसी से बन जाता है
यह समझ ही नहीं आता ... बस बन जाता है ...
यही है पुनर्जन्म ! "
तो ये है अलग-अलग धारणा.....सकारात्मक,नकारात्मक तथ्यों के बीच! कहीं विज्ञान है,कहीं मन... जो है - आपके समक्ष है आपके विचारों से जुड़ने की इक्षा लिए! तो अब आप अपने विचार प्रेषित करें, हम जानना चाहेंगे................