गीता में श्री कृष्ण ने कहा है-
नैनं छिदंति शस्त्राणि,नैनं दहति पावकः ,
न चैनं क्लेदयांत्यापोह,न शोशियती मारुतः ......................
यानि आत्मा अमर है।
तो प्रश्न उठता है कि इन आत्माओं का स्वरुप क्या होता है, क्या यह फिर किसी नए शरीर में आती है, कर्म का हिसाब चुकाने के लिए क्या आत्मा नए-नए रूपों में जन्म लेती रहती है? हाँ- तो यही है पुनर्जन्म!
जितने लोग उतने विचार...
सामान्य धरातल पर मुझे विश्वास है, आत्मा नए शारीरिक परिधान में पुनः हमारे बीच आती है। अगर सतयुग, द्वापरयुग सत्य है तो यह भी सत्य है कि आत्मा का नाश नही, वह जन्म लेती है। राम ने कृष्ण के रूप में, कौशल्या ने यशोदा, कैकेयी ने देवकी, सीता ने राधा के रूप में क्रमशः जन्म लिया...कहानी यही दर्शाती है, तो इन तथ्यों के
आधार पर मेरा भी विश्वास इसी में है।
ये हुई मेरी बात - अब इसी सन्दर्भ में और लोगों के विचार क्रम से रखते हुए मैं आपके विचारों से अवगत होना चाहूँगी ।
श्रीमती सरस्वती प्रसाद ( "नदी पुकारे सागर" काव्यसंग्रह की लेखिका ) के शब्दों में,
" प्रभु के स्वरुप को किसी ने देखा नही है, पर अपनी भावनाओं के धरातल पर प्रभु की प्रतिमा
को भिन्न भिन्न रूप देकर स्थापित कर लेते हैं - यही निर्विवाद सत्य है मान कर आस्था का निराजन अर्पित करते हैं। ठीक इसी प्रकार पुनर्जन्म के प्रश्न पर गीता की सारगर्भित वाणी सामने आती है। छानबीन और तर्कों से परे आत्मा की अमरता पर विश्वास कर के मन को सुकून मिलता है।
मैंने खोया और वर्षों मेरी आत्मा भटकती रही अचानक एक रात मेरी तीन साल की नतनी, जो मेरे ही पास रहती थी रात १२ बजे अचानक उठी और कहा "अम्मा उठो कविता सुनो" और उसने अपने ढंग से एक लम्बी कविता सुनायी। कविता की शुरुआत थी
"माँ तुम दुःख को बोल दो, दुःख तुम पास नही आओ
मेरा गुड्डा खोया गुड्डा आ गया अब आ गया....."
क्या सच है क्या झूठ क्या भ्रम...इन सब से परे मन को अच्छा लगता है सोचना वह है यहीं कहीं पास ही....."
कर्नल अजय कुमार का कहना है, "मैं पुनर्जन्म नही मानता , जितनी कहानियाँ
निकलती हैं वह सब झूठी हैं और अपनी सोच के आधार पर लिखी जाती हैं।"
उनकी पत्नी श्रीमती उषा कुमार के विचार भी कुछ इसी तरह के हैं। उनका कहना है, "इस विषय पर मैंने कभी सोचा ही नही।
क्या है पूर्व जन्म और क्या है पुनर्जन्म...इन सारी बातों से परे मैं वर्त्तमान को जी रही हूँ और यही सत्य है।"
श्री अभय कुमार सिन्हा ( retd. market secretary ) के शब्दों में, " पुनर्जन्म का कोई प्रूफ़ नही है। सारी कहानियाँ मनोवैज्ञानिक स्वभाव की हैं। जैसे भगवान् आदमी
के मन की उपज हैं, वैसे ही पुनर्जन्म के विचार हैं। यह सोचने के लिए की मृत्यु के बाद सब ख़त्म हो जाता है, एक बड़ी भयंकर ताकत की ज़रूरत होती है। दरअसल मनुष्य एक continuity चाहता है तो इसे ही मान लेने में मानसिक संतुष्टि मिलती है। जिन्हें
इन बातों पर विश्वास होता है वे कम कारण ढूंढते हैं, जो हर बात में कारण जानना चाहेंगे उन्हें इन बातों पर विश्वास नही होगा।"
इनकी पत्नी श्रीमती रेणु सिन्हा के शब्दों में, "मैं जब छोटी थी तो पुनर्जन्म पर अनेक कहानियाँ सुनी, बड़े होने पर
पढीं, पर इसका कोई ठोस प्रमाण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नही था... पर, हिंदू धर्म में इस बात पर लोगों में विश्वास है और यह सोच मन को एक शक्ति देती है कि हम किसी नए रूप में इस धरती पर फिर आयेंगे, मिलेंगे...मेरी सोच भी
कहती है कि पुनर्जन्म होता है।"
श्री नवीन कुमार ( retd. SBI officer ) के कथनानुसार, " Hindu mythology और मेरे विचार से आत्मा नही मरती... पुनर्जन्म ज़रूरी नही कि मनुष्य योनि में ही हो, पर जब पुनर्जन्म है तो मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं में हैं और कई उदहारण भी हैं....जिससे यह प्रमाणित होता हैं कि पुनर्जन्म है."
इनकी पत्नी श्रीमती मंजु श्री का कहना हैं कि " पुनर्जन्म होता हैं या नही इस पर कुछ
कहना आसान नही है, पर मैं गीता को मानती हूँ और गीता के कथनानुसार "आत्मा अजर अमर है" तो मैं मानती हूँ कि पुनर्जन्म होता है। साथ ही कई ऐसी अद्भुत घटनाएं पढने सुनने को मिलती हैं जिससे इस विश्वास को बल मिलता है...वैसे यह सोचना भी अच्छा लगता है कि जो प्रिय गए हैं वे एक दिन लौट आयेंगे."
श्रीमती नीलम प्रभा ( शिक्षिका, हिंदी विभाग,डीपीएस ,पटना) स्पष्ट शब्दों में कहती
हैं, "पूर्वजन्म या अगला जन्म और बीच में मृत्यु....सब उतने ही सच हैं जितनी कल की ,आज की और कल की सुबह और प्रकृति के रहस्य हैं !"
श्रीमती वंदना श्रीवास्तव ( प्राचार्या ) के दृष्टिकोण से, "पुनर्जन्म- ऐसा माना जाता है की मृत्यु के पश्चात् मनुष्य के शारीर का कोई हिस्सा बचा रहा जाता है ताकि वह किसी और रूप
/शरीर में जन्म ले सके,इसके वैज्ञानिक तौर पर अब तक कोई प्रमाण नहीं मिले हैं किन्तु आस्था सभी की यही कहती है की पुनर्जन्म होता है तभी तो किसी से मिलने पर लगता है जैसे हमारा उससे कोई नाता है, हम पहले से ही उस व्यक्ति को किसी तरह जानते हैं ,उसकी आदतें, बोलचाल, व्यवहार बहुत जाना पहचाना लगता है और तब ही कहा जाता है की शायद पिछले जन्म का कोई रिश्ता है,उससे मिल कर लगता है जैसे किसी बहुत पुराने रिश्तेदार से मिल रहे हो जबकि हम पहली बार मिलते हैं.....इससे लगता है की हमारा कोई ना कोई पिछला जन्म तो होगा. कभी कभी किसी स्थान पर पहली बार जाने पर भी ऐसा जान पड़ता है मानो हम वहां पहले कई बार आ चुके हैं, हो सकता है की हमारी पूर्वजन्म की कुछ बातें हमारे सूक्ष्म शरीर में रह जाती हैं जो आत्मा के फिर से नए शरीर में आने पर हमारे अवचेतन मन में इंगित करती हैं की ये सब हमारे साथ पहले घटित हो चुका है और तब ही लगता है की हम पिछले जन्म में भी कहीं ना कहीं,किसी ना किसी रूप में अवश्य थे , और ये हमारा पुनर्जन्म है.मेरे विचार से पुनर्जन्म होता है. "
श्रीमती ज्योत्स्ना (http://jyotsnapandey.blogspot.com/) सहजता से बताती हैं,
"पुनर्जन्म होता है या नहीं ? प्रश्न अच्छा है ,इस संदर्भ में मैं आपको अपने ही परिवार की एक घटना से अवगत करती हूँ .....
बात उन दिनों की है जब मेरे बड़े भाई जोकि एयरफोर्स से अब रिटायर हो चुके हैं ,ढाई वर्ष के थे . भोजन परोसते समय माँ से बोले हम ऐसी प्लेटों में नहीं खाते थे .....
कैसी ? माँ ने जिज्ञासावश पूछा .
चीनी-मिटटी की प्लेट की तरफ इशारा करके बोले ऐसी में खाते थे .
अब तो सभी लोग इकट्ठे हो गए और उन बातों को बार बार पूछते ---घर में कौन कौन था ?
मैं मेरी वाइफ और मेरे बच्चे .
कितने बच्चे हैं ?....दो ,बेटी नाम जस्टी,और बेटे का पैनाडी.
तुम क्या करते थे?...मैं इंजिनियर था ......
क्या हुआ था तुम्हें ?....थोडी सी ज्यादा हो गयी थी ............बस एसीडेंट हो गया .
कैसे .?....मेरी व्हाइट कार पीपल से टकरा गयी थी ........न
तुम्हारा घर कहाँ है ?.......मानरोविया..
उस समय इस विषय पर बहुत शोध हो रहे थे ,तो एक पारिवारिक मित्र जो की राजनैतिक भी थे ने सलाह भी दी--"चलो घूमना भी हो जायेगा और खर्चा सरकार उठाएगी .बेटे को ले चलो"
माँ को डर था की कहीं बेटा ही न हाथ से चला जाये उनहोंने मना कर दिया .
{हम गाँव की मिटटी से जुड़े लोग हैं ,आप कह सकती हैं ठेठ देहाती .ऐसे में उनके द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी के शब्द वास्तव में विस्मित करते थे .अब फैसला आप पर छोड़ती हूँ की पुनर्जन्म होता है या नहीं .}"
श्रीमती नीता (http://neeta-myown.blogspot.com/) ने कहा, "अचानक कोई सामने से आकर हँस देता है..ना जान ना पहचान ...अचानक कभी कोई मदद कर देता है...जब हम कोई टिकिट की बड़ी सी लम्बी कतार में खड़े हों और अचानक कोई आ कर कहे हमें, कि मैंने ये कूपन लिया है ज्यादा है क्या आपको चाहिए... कभी कोई आ कर कहता है कि मुझे ऐसा क्यों लगता है की मैंने आपको कही देखा है , ऐसा महसूस होता है...और हमारे दिल के तार भी हिल जाते है॥कभी कुछ काम कर रहे हों तो ऐसा होता है की ये काम हमने पहेले भी तो किया है...कभी कोई ऐसी जगह पे जहाँ हम जाते है जहाँ
पहली ही बार गये हों पर ऐसा लगता है यहाँ आए हों पहले भी... नेट का कोई विश्व था ऐसा हमें पता नहीं था..पर अब ऑनलाइन हमारे बहोत सारे दोस्त है..ऑरकुट में लाखो लोग है..हम क्यों उसमे से १०० को अपना बनाते है..और उसमे से भी क्यों हम सिर्फ १० से जुड जाते हैं ...उसके दुःख से हम दुखी होते है..और उसके सुख से हम सुखी होते है..क्यों एक ही के घर में रह रहे लोग एक दूसरे से बहुत दूर होते है और बहोत दूर रहेने वाले लोग दिल के करीब होते है.. क्या आपके दिल में ऐसे सवाल नहीं आते ?कि क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है............हाँ कुछ है जिसे हम पुनर्जन्म कह सकते है...क्या आप मानते है??"
श्रीमती प्रीती मेहता, (http://ant-rang.blogspot.com/) ने बड़े ही जीवंत अंदाज में कहा, "वेसे तो पुनर्जनम एक् आस्था और विश्वास का विषय है … वेदों और पुराणों में कहा गया है - शरीर नश्वर है , आत्मा तो अमर है .. यानि कह सकते है कि शरीर मरता है, आत्मा नहीं … तो यह आत्मा जाती कहाँ है ..? आत्मा एक् शरीर छोड़ दूसरे शरीर को धारण कर लेती है …
मेरे लिए मेरा अनोखा बंधन ही पुनर्जन्म है ... यह बंधन हर किसी से तो नहीं बंधता .. और जहा बंधता है , वहाँ बस बंधता ही जाता है ...बिना किसी शर्तो के , बिना किसी उम्मीद के ...बस बंध जाता है ....
अनोखा-बंधन
कितना सुन्दर और पवित्र नाम ?
सुन कर ही कुछ अलौकिक अनुभूति का एहसास हो जाता है…
जैसे पूर्व-जन्म का कोई बंधन ?
जो युग-युग से जन्म लेकर इक दिल से दूसरे दिल को जोड़ रहा हो ..?
जो निर्दोष, निस्वार्थ प्रेम भाव का झरना बन अविरत बहता रहता है ..
और यह एहसास सिर्फ महसूस किया जा सकता है,
इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते .
जो सामाजिक और खून के रिश्तो से परे है और कुछ अलग है …
जीवन में बहुत बार अचानक किसी से संबंध बन जाते है,
मन में सकारात्मक और नकारात्मक तरंगे उठने लगती हैं ,
कभी- कभी कुछ क्षण का परिचय कुछ ख़ास बन जाता है ,
और ऐसे संबंध जो ना समझ आये या कहलो
जिसका ताल-मेल बुद्धि से भी ना मिल पाए ,
ऐसे संबंध ऋण का बंधन हैं ,
और यह बंधन कब , क्यों , कैसे … किसी से बन जाता है
यह समझ ही नहीं आता ... बस बन जाता है ...
यही है पुनर्जन्म ! "
तो ये है अलग-अलग धारणा.....सकारात्मक,नकारात्मक तथ्यों के बीच! कहीं विज्ञान है,कहीं मन... जो है - आपके समक्ष है आपके विचारों से जुड़ने की इक्षा लिए! तो अब आप अपने विचार प्रेषित करें, हम जानना चाहेंगे................
aatma ke nav jeevan wale vishay par itane saare logonki alag alag soch padhna bahut hi achha raha,jitna vishwas ishwar mein hai shayad utana punaranam mein hame bhi nahi.
जवाब देंहटाएंप्रणाम ...
जवाब देंहटाएंअब और क्या अपने विचार बताये "पुनर्जनम" पर , सबने ही इतना कुछ कह दिया है . कोई विश्वास तो कोई अंधविश्वास कहता है , सबकी अपनी समझ , अपने तर्क - वितर्क है , कोई दिल से सोचता है कोई दिमांग से . सभी का स्वागत है ....
बस हम तो यही जानते - मानते है की मेरा "अनोखा बंधन" ही पुनर्जन्म है ...!
इतने गुनी लोगो संग हमारे विचार यहाँ प्रकट किये ,...अपने ब्लॉग पर हमें स्थान देकर जो मान दिया उसके लिए हम बहूत आभारी है ...Ilu
पुनर्जन्म शास्वत सत्य है और इस पर मेरा पूरा विश्वास है। ऐसे अनेको उदाहरण मिल जायेंगे जब हमें पढने मिलता है कि किसी के यहां जन्मे बच्चे ने अपने पुर्व जन्म के बारे में बताया और जिग्यासावश परिवारजनो ने जब सच्चाई जाननी चाही तो उसकी बातें सही निकली। हमारे रायपुर के पूर्व कलेक्टर श्री तिवारी की धर्मपत्नी को तो अपने पूर्व तीन जन्मो का याद है तथा अपने पूर्व जन्मो के सगे संबधियों से वो मिलती भी रहती हैं। इस संबंध मे तो उनका साक्षात्कार कई बार समाचार पत्रों में भी छप चुका है ॰॰॰॰॰॰ कोई माने या ना माने मुझे तो पूरा विश्वास है ॰॰॰॰ इसीलिये मेरी सभी से करबद्ध प्रार्थना रहती है कि सच्चे और अच्छे कर्म करो ॰॰॰॰ यही मुक्ति का मार्ग बनेंगे ॰॰॰॰ शुभकामनायें॰॰॰॰
जवाब देंहटाएंarre very nice to see everyone here! i smiled while reading papa's take on this :)
जवाब देंहटाएंमानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन। जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन। पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन। जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
जवाब देंहटाएंमासी जी, लगता है आप पुनर्जन्म पर शोध करने की दिशा में अग्रसर है |
जवाब देंहटाएंजहा तक मेरे व्यक्तिगत विश्वास का प्रश्न है, मैं गीता के "आत्मा के अमरत्व" सम्बन्धी सन्देश से पुर्णतः सहमत हू | आत्माए न केवल बार - बार बिभिन्न योनियों में जन्म लेती है वल्कि वो अपने पूर्व जन्मो के संस्कारो का भी बाद के जन्मो में वहन करती है | हम सबो के इर्द-गिर्द कई यैसे तथ्य दृष्टिगोचर होते है जो आत्मा एवं पुनर्जन्म के अस्थित्व को मजबूती से स्थापित करते है, और ये आज के विज्ञान के लिए शोध का विषय है | उदहारण के तौर पर :
१) येसी क्या वजह है की एक ही वातावरण में पले-बढे, एक सी शिक्षण पद्धिति के सांचे में ढले दो बच्चो के रुझान में कभी-कभी जमीन
और आसमान का अंतर हों जाता है ?
२) येसी क्या बात है, की कुछ लोग अपने जीवन में कुछ बुरा नहीं करते और उनके साथ बहुत बुरा हों जाता है और वही कुछ लोग
कुछ भी अच्छा नहीं करते, लेकिन संयोग उनके साथ अच्छा और केवल अच्छा ही करता चला जाता है, चाहे वो एक सिमित समय
के लिए ही हों ?
३) येसी क्या वजह है की हम सभी जीवन में कुछ यैसे लोगो के संपर्क में आते ही है, जिन्होंने वर्त्तमान जीवन में आपके लिए आगे
बढ़कर कुछ भी अच्छा नहीं किया फिर भी अंतर्मन से रह रह कर आवाज उठती है की कथित व्यक्ति पर विश्वास करना चाहिए या
कथित व्यक्ति आपके लिए भला करेगा, सोचेगा और वही कुछ वैसे लोग भी मिलते है, जो आपकी मदद के लिए हमेसा आगे की
कतार में खड़े रहते है लेकिन पता नहीं क्यु वो व्यक्ति आपको संदिग्ध सा प्रतीत होता है ?
४) येसी क्या वजह है की कुछ विषय, जिसको हमने अपने वर्तमान जीवन में छुआ तक नहीं, लेकिन फिर भी महसूस होता है की हम
उस विषय के बारे में बहुत कुछ जानते है या उस विषय के प्रति आश्चर्यजनक झुकाब मह्सुश करते है ?
और भी कई अनसुलझे प्रश्न है, comment box का space कम पड़ जायेगा :)
जहा तक विज्ञान के आत्मा के आस्थित्वा को मानने / न मानने का प्रश्न है, तो विज्ञान तो उन्ही तर्कों को मानता है जो उसके सफल शोध के दायरे में आता है, और ये तो कोई व्यज्ञानिक नहीं कह सकता की प्रकृति के सारे रहश्यो पर से पर्दा उठ गया है और अब कुछ जानना सेष नहीं | आज विज्ञानं आत्मा या पुनर्जन्म के आस्थित्वा को भले न मानता हों लेकिन बहुत संभव है की आने वाली कुछ शताब्दियो के बाद उसे भी इसे मानने में संकोच नहीं होगा |
वैसे भी विज्ञान यह तो मानता ही है की प्रकृति से कुछ भी पुर्णतः नष्ट नहीं किया जा सकता, सिर्फ रूपांतरित किया जा सकता है और जो रूपांतरित हों सकता है वो पुनः अपने रूप में स्थापित भी हों सकता है | जल वाष्प बनता है, वाष्प बादल और बादल फिर जल, यह जीवन चक्र तो प्रकृति में हर जगह दृष्टिगत होता है | अतः यह पुरे बलपूर्वक कहा जा सकता है की आत्मा अमर है और पुनर्जन्म होते है और इसमें कोई शक नहीं |
लोकधारणाओं में भिन्नता स्वाभाविक है। पर गीता में जिसे देहिनः या शरीरिणः कहा गया है वह आत्मा क्या है? पहले यह संधान कर लेना चाहिए। यानी वे सूक्ष्म तम कण जिन से शरीर या देह का निर्माण होता है। अर्थात वह पदार्थ जिस से देह का निर्माण होता है। वैज्ञानिक रूप से पदार्थ अविनाशी है। कहा जा सकता है कि परमाणु विखंडन होने पर पदार्थ भी नष्ट होता है। पर वह रूप परिवर्तन कर ऊर्जा में परिवर्तित होता है। और कोई विधि तो ऐसी भी होगी ही जिस से ऊर्जा पदार्थ में बदलती होगी। इस तरह यह पदार्थ ही है जो रूप बदलता है। वही जीवों के रूप में भी है और वही निर्जीव पदार्थों के रूप में भी। सांख्य के आदि आचार्य कपिल जिन्हे गीता में ईश्वरक के श्रेष्ठतम रूपों में से एक कहा है, कहते हैं- अचेतनम् प्रधानम् स्वतंत्रम् जगतः कारणम्। अचेतन प्रधान (आदि पदार्थ) ही स्वतंत्र रूप से जगत का कारण है।
जवाब देंहटाएंइस तरह आत्मा केवल पदार्थ के सूक्ष्मतम कण मात्र हैं। वे संघटित हो कर समय समय पर भिन्न रूप ग्रहण करते हैं। ये रूप ही उस के पुनर्जन्म हैं। हम स्वयं को इन आत्मा कण मान लें तो वे अविनाशी हैं ही और उन का पुनर्जन्म होता रहता है। यही गीता का सार है।
rashmi ji maine apni Nilima puri ki Id se pahle bhi aapko kai baar padha hai..mujhe aapki sabhi rachanye behad pasand aati hai..aapka vyaktitv saaf jhalakta hai kahin na kahin unme...mujhe khushi hogi agar aap mujhe sadsya ke roop main sveekrit karen to.
जवाब देंहटाएंAapko jo bhi viraasat main mila use humare sath bhi bantiyega...hum bhi trupt ho jayenge unn shabdo uss gyaan ko padhkar.
koshish to main bhi karti hoon likhne ki ..magar mujhe viraasat main shabd nahi mile..bas kuch ahsaas mile hain..kuch khayaal mile hain jinhe apne shabdon main bayaan karna chahti hoon.
janm mrityun aur fir punarjam wese hi hai jaise kal aaj aur kal... yahi shaayad satya hai...
जवाब देंहटाएंbadhaayee
arsh
मैं पुनर्जन्म में यकीन नहीं रखता ..लेकिन कभी कभी टीवी या समाचारों में ये बात सुनता हूँ कि फलां जगह का लड़का ...किसी और जगह के व्यक्तियों को अपना माँ बाप बता रहा है ..उसे पिछले जन्म की बातें याद हैं ...तो एक अजीब उलझन पैदा हो जाती है ...हाँ भगवान् है या नहीं इसकी भी उलझन है
जवाब देंहटाएंpunrjanm hota hain ya nahi hota.....ye ek vivad ka vishay hain......kabhi aise kisi vyakti ke saath sakshatkaar nahi hua..jo purvjanm ke bare mein kuch pramaad de sake...aaj ke vagaynik yug mein buddhi is baat ko sweekar nahi karti ...par psycho physics, psychology aur sprituality..in sabke astitva se inkaar nahi kiya ja sakta...
जवाब देंहटाएंkahi padha tha ki Mahabharatkaal ka Ashwathama aaj bhi Krishan ke shaap ki wajah se mukti ke liye bhatak raha hain aur Dehradoon ke tapkewar mandir mein aradhana ke liye aata hai.....
Isi kalyug mein hanumaan ji ke astitva ko bhi log sweekar karte hain..
Dimaag tark deta hain....kyoki use pramaan chaiye par shayad man..kisi tark se nahi bandha.
dekhiye ab tak sabne itna kah diya ki kahne ko kuch bacha hi nhi.
जवाब देंहटाएंphir bhi main sant sharma ji aur dinesh rai ji ke vicharon se sahmat hun.
पुनर्जन्म के बारे में सबके विचार पढ़े ...मानना या न मानना सब अपने ऊपर है ..कौन जाने कल क्या हुआ था ? और कल क्या होगा ..जो है वह तो आज ही है ...अच्छा लगा सबके विचार पढ़ कर ..शुक्रिया इस को यहाँ पढ़वाने का
जवाब देंहटाएंthank you rashmi itni suder post k liy ............. maine sabke vichar parhe .pata nhi punarjanm hota hai ya nhi but geet aparho to lagta hai k aatma chola badlti hai so hota hi hoaga na .......... mamma kahti hai k y tumhare pichle janam k achche karam hi hai jo itna achcha pariwar mila ......... cjharo taraf sab yahi kahte suna jata hai .........par kya hoga agle janam mai ........... ya kya tha pichle janam mai y sab soch kar dar lagta hai ......
जवाब देंहटाएंmera to man na hai k agar nhi b hota punar janm tab bhi aane wale janam ka dar hame bure kamo ko karne se pahle sochne ko mazbur karta hai ..........
aur har bar kuch galat hone par ham pichle janma ka kasur ka ya karmo ka fal man kar agla janama sudharne ki sochte hai ................yahi to jindgi bhi hai na.........
maine zindagi mein bas vigyaan pe bharosa kiya hai...shareer ek biological cheez hai,jo ek khaas samay ke baad apni energy kho deta hai aur dead ho jaata hai...mrityu bas ek vaigyaanik kriyaa hai jisko uljhaane ki koshish shayad humaari kamzori ko darshaati hai bas :)
जवाब देंहटाएंzaroorat hai shashvat sach ko apnnane ki...
rashmi ji,
जवाब देंहटाएंaap bahut gudh vishy le aayi hain. punarjanm hota hai ya nahi kya kaha ja sakta hai...par kabhi kabhi aisi ghatnayen bhi dekhane ko mil jaati hain jinko dekh kar is par vishwas kar lene ka mann hota hai..main puri tarah se nakaar nahi sakti hun is baat ko par maanane ke liye bhi koi thos aadhaar nahi hai...
aapke dwara preshit lekh aur sabki tippniyan bahut achchhi lagin...shubhkamnaon ke sath
रश्मि जी,
जवाब देंहटाएंहालांकि ये बहस का मुद्दा है ....पर मेरी अपनी राय यही है कि पुर्नजनम होता है......मृत्यु शरीर की होती है आत्मा की नहीं ....फिर स्वाभाविक है वह जन्म भी लेती है चाहे जिस रूप में ले.....!!
पुनर्जनम विषय पर एक शोध की तरह लिखा गया अच्छा है .सभी के विचार पढे.
जवाब देंहटाएंमैं नीलम प्रभा जी की बातों से सहमत हूँ.
पुनर्जन्म के बारे में सबके विचार पढ़े ...
जवाब देंहटाएंमानना या न मानना सब अपने ऊपर है ..
कौन (कुछ अपवादों को छोड़ दें तो) आज तक कल (पूर्व जन्म में ) क्या हुआ था यह जान सका है?
और न ही कोई जन सका कि कल ( अगले जन्म में ) क्या होगा ..
जो है वह तो आज ही है और अगले क्षण भी क्या घटित हो जायेगा, हम यह भी नहीं जान पाते.
कुल मिला कर अमर अज्ञान ही हम पर भरी है.
...अच्छा लगा सबके विचार पढ़ कर ..शुक्रिया इस को यहाँ पढ़वाने का
चन्द्र मोहन गुप्त
ये जन्म ढंग से जी लें तब पुनर्जन्म की सोचेंगे...वर्तमान में जीना ही हितकर है...
जवाब देंहटाएंना संभाला जो पास है अपने
जो नहीं उसका ही मलाल रहा
नीरज
पुनर्जन्म की क्या सोचना। जो करना है इसी जन्म में करने का प्रयास करो। इस जन्म में हम कुछ कर न सकें और अगले जन्म की सोचें। ये अपनी समझ से तो परे है।
जवाब देंहटाएंबहोत बहोत धन्यवाद जी ..इतने लोगों के विचार मुझे जानने मिले...आप सच में gr888 हों जी...
जवाब देंहटाएंvigyan aur darshan ka dvaidh purana hai.
जवाब देंहटाएंbehtar prastuti.
रश्मि जी,
जवाब देंहटाएंआपने पुर्नजन्म के विषयक लेख लिखकर सबकि प्रतिक्रिया चाही, मैंनें भी सभी प्रतिक्रियाऍं पढी । आपके इस विषय में सबकि अलग-अलग राय हो सकती है किन्तु मैं इस बात को स्वीकारता हूँ कि पुर्नजन्म होता है । यह अविवादित तथ्य है कि आत्मा अमर है । मेरी अपनी राय यही है कि पुर्नजनम होता है......मृत्यु शरीर की होती है आत्मा की नहीं ....फिर स्वाभाविक है वह जन्म भी लेती है चाहे जिस रूप में ले.....!!
आपने एक अनसुलझे विषय विषय को छुआ जो काफी अच्छा लगा । आगे भी इसी तरह रोचक विषयक पढने को मिलेंगें ।
धन्यवाद
पुनर्जन्म एक शास्त्रिय धारणा है या लोक विश्नास, होता है या नहीं, यह विवाद, मन्थन, यकीन या सामुहिक बहस का विषय हो सकता है. किन्तु इस संसार में बहुतों का अवलम्बन है इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता.
जवाब देंहटाएंविज्ञान इसे नहीं मानता, पर अंधविश्वास के कारण ऐसी धारणाएं अभी जिन्दा हैं और आगे भी रहेंगीं।
जवाब देंहटाएंएक बात और, क्या स्थानीय लोगों से आपकी कोई नाराजगी है क्या।
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SBAI TSALIIM
बहुत सुन्दर! ........
जवाब देंहटाएंठान ले तो जर्रे जर्रे को थर्रा सकते है । कोई शक । बिल्कुल नही ।
अभी थोडी मस्ती में है । मौज कर रहे है ।
पर एक दिन ठानेगे जरुर ....
विज्ञानं कहता है किपदार्थ का सबसे छोटा कण फोटोन एक प्रकाश उर्जा है और उर्जा केवल स्वरुप बदलती है ,नष्ट नहीं होती !कृष्ण कहते है कि आत्मा अमर है और स्वरुप बदलती रहती है !उर्जा में यदि 'चेतना ' भी शामिल हो जाय तो हम उसे आत्मा कह सकते हैं जो विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकती है ! पुराणों में वृक्ष के रूप में भी पुनर्जन्म दर्शाया गया है !एक चैतन्य दुसरे चैतन्य में परिवर्तित ही सकता है ,इसे भी विज्ञानं आगे सिद्ध कर सकता है क्योंकि विज्ञानं कि सारी सत्यता पहले मात्र एक अवधारणा ही थी एक संकल्पना ही थी जो बाद में सत्य सिद्ध हुईं ! जो खोज अभी तक नहीं हुई है उसे हम असत्य तो नहीं कह सकते !मेरे विचार से पुनर्जन्म भी एक ऐसी hypothesis है जिसे अभी सिद्ध किया जाना है उसी प्रकार जैसे ह्रदय ( शरीर) में प्रेम और घृणा को सिद्ध किया जाना !
जवाब देंहटाएंरोचक प्रविष्टि है
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
पुनर्जन्मके बारे मे सभी के विचार पढ़े सभी ने अपने अपने ढंग से अपने अनुभवॉ के आधार पर बड़ी अच्छी व्याख्या की है और गीता के आधार पर .
जवाब देंहटाएंमई तो मनती हू की पुनर्जन्म है मुझे कई बार अनुभव होता है की मई जो भी काम कर रही हू या कई लोगोके साथ बेतकर बात कर रही हू ऐसा का ऐसा सीन
मे पहले भी देख चुकी हू |
अहसास अक्सर ये है होता...
जवाब देंहटाएंमिलते है जो भी जिन्दगी में
जन्मो का है उनसे मेरा नाता.....!!!!!!!!
समज नहीं है पाते..
कर्म हमारे है मिलाते
बिछडे जन्मो के मिलते
खुद-ब-खुद संजोग बन जाते....!!!!!!!
रूप हर जनम में अलग है होते
इसलिय ही तो मिलकर भी हर जनम में
किसी को हम कहा पहचान पाते...!!!!!!
क्या बात औरो को पहचान पाने की
खुद ही अपने बारे में कहा है जानते...
वो तो है परमात्मा इस आत्मा में
हिसाब कर्मो का है रखता...
समय आते ही है मिलाता...!!!!!
अक्सर महसूस ये है होता
मिल के अपनों से मन है कहता...
अपना अपना से ये लगता है..
मानो जन्मो से इससे है नाता...!!!!!!!!!!!!! ....[b]कविता...