30 जून, 2009

हम बस चाहते हैं !


जब हम
निरंतर कोई कल्पना करते हैं
तो,
उड़ान,चाहत,आदान-प्रदान
सिर्फ़ हमारा होता है !
फिर व्यर्थ हम
दुःख में गोता लगाने लगते हैं,
फिर एक निष्कर्ष निकालते हैं
और समझौता कर लेते हैं !
कल्पना में जो तस्वीर होती है
उसकी चाभी
हमारे हाथ में होती है...
उससे परे
उसकी कल्पना का सूत्र
दूसरे के हाथ में होता है या नहीं
इसे नहीं समझ पाते
ना समझना चाहते हैं.......
हम सिर्फ़ चाहते हैं
आकलन करते हैं
और दुखी होते हैं !!!!!!!!!!!!!!!

10 जून, 2009

कीमत !


शब्दों की कीमत होती,
तो मेरे शब्द
अनमोल होते....
मेरी आवाज़ की कीमत होती,
तो मेरी आवाज़ में कोई बात होती....
ऐसा जब उसने कहा,
तो मैं अवाक रह गई !
शब्द पागलों की तरह हंसने लगे,
पैसे के तराजू पर
उसके भावपूर्ण अर्थ हल्के हो गए....
मैंने तो कीमत देखी
आंखों में,
चेहरे की मुखरता में,
दिल की गहराइयों में -
इनको ही अपनी आत्मा की तिजोरी में
कैद किया,
क्रमवार जेहन में रखा,
जिनके अन्तर से मेरा नाम निकला,
इसकी क्या कीमत लगाओगे तुम ???

01 जून, 2009

जीत निश्चित है !



बाल-विवाह , सती-प्रथा ,
अग्नि-परीक्षा........................
जाने कितने अंगारों से गुजरी
ये मासूम काया !
यातनाओं के शिविर में,
विरोध की शिक्षा ने ,
उसे संतुलन दिया ,
शरीर पर पड़े निशानों ने
'स्व' आकलन का नजरिया दिया !
हर देहरी पर ,
'बचाव' की गुहार लगाती,
अपशब्दों का शिकार होती,
लान्छ्नाओं से धधकती नारी ने
अपना वजूद बनाया.........
माँ सरस्वती से शिक्षा,
दुर्गा से नवशक्ति ली ,
लक्ष्मी का आह्वान किया-
प्रकाशपुंज बनकर ख़ुद को स्थापित किया !
समाज का दुर्भाग्य -
उसकी शक्ति,उसकी क्षमताओं से परे
ह्त्या पर उतर आया !
आज फिर ,
कुरुक्षेत्र का मैदान है ,
और कृष्ण नारी सेना के सारथी............
यकीनन,
जीत निश्चित है !


गंगा

गंगा ! तुम परंपरा से बंधकर बहती,  स्त्री तो हो किंतु परंपरा से अलग जाकर  अबला अर्थ नहीं वहन करती  वो रुपवती धारा हो जिसका वेग  कभी लुप्त नही...