उन्हें मालूम था
कुछ सीढियां लगाकर
मैं चाँद से बातें कर लूँगी....
बड़ी संजीदगी से कहा-
'सीढियां रखना उचित नहीं
चोर-उचक्कों का ख़तरा होगा'
........
फिर उनकी नज़र
मेरी सोच के वितान पर पड़ी
इधर-उधर देखते हुए
उन्होंने प्रश्न-चर्चा शुरू की....
अजीबोगरीब प्रश्न
तेज स्वर !
मेरी सोच
खुद की पहचान से विलग होने लगी
हर दिशा
एक प्रश्न बनकर खड़ी हो गई
पर,
चाँद का आमंत्रण पुरजोर रहा .............
उसने चांदनी की सीढियां बनायीं
मुझे खींच लिया..........
अब क्या बताऊँ
चाँद हर रिश्तों से टूटा
मेरी बाहों में फूट-फूटकर रोता रहा
' स्वर्ण कटोरे में
दूध-भात अब कोई नहीं खाता'
कहता रहा,
बिलखता रहा ..............
अनुसंधानों ने उसे भी नहीं छोडा !
'aise bandhan jo soch ko dayron mein kaste hain ..aur kalpana ki udaan ko rok sakte to hain,
जवाब देंहटाएंunhen chah kar bhi kaat nahin paate.
ek din chaand ki unchaayeeyan bhi badh jayengee..aur tab yah sidhi bahut chhoti rahegi.
Niyati hai...
चांद बहुत मासूम जो था, बहुत सुंदर कविता, आप की कविता पढ कर मुझे प्यासा ( पुरानी ) फ़िल्म का गीत याद आ गया....
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी रचना...बेहतरीन अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंबेहद रोचक और मार्मिक व्यंग्य है। यह रचना बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंचाँद को लेकर शब्दों को बहुत ही अच्छा पिरोया है आपने!!!!चाँद हमेशा से ही मानव मन को आकर्षित करता रहा है....,मुझे तो बहुत अच्छी लगी ये रचना....
जवाब देंहटाएंमैं यही सोच रहा था कि चाँद पर हमले हो रहे हैं और कोई ब्लागर कुछ लिख नहीं रहा...
जवाब देंहटाएंचाँद का रोना आपने सुना बधाई।
--बेहतरीन अभिव्यक्ति
वाह अद्भुत संयोजन शब्दों का भावों का और मनोरम प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंare wah !Rashmee ji bahut hee sunder bhavo kee abhivyaktee .Samay badal raha hai sath hee sonch aur manytae bhee . badhai
जवाब देंहटाएंSach kaha aapne, aaj ke vigyan ne chand se hamare purvajo dwara sthapit
जवाब देंहटाएंsare bhawnatmak riste tod dale :):), ye to bahut bura hua bhai chand ke sath :(.
God ji को नहीं छोड़ा तो चाँद - तारे क्या चीज़ है ?
जवाब देंहटाएंज्यादातर यहाँ सीढिया लगाना नहीं हटाना ही जानते है, यह तो अच्छा है की चाँद सीढिया बनता रहा और चाँद को तुम मिली और अपने घरोंदे में जगह दी ...इतना गहन चित्रण, सिमित शब्दों में आप् ही कर सकते हो ...ILu..!
bahut badhiya rachna... chaand ke bahane aapne bahut kuchh keh diya... chaand kewal wo nahi jo aasmaan mein chamakta hai.. cahnd wo hai jo humare bheetar sapno... armaanon... kalpnaaon ko janm deta hai...
जवाब देंहटाएंचाँद का आमंत्रण पुरजोर रहा....
जवाब देंहटाएंचाँद का रोना .....सारे रिश्तों से टूटना
....बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है..बधाई
भावनावों को व्यक्त करने का रोचक अंदाज़
जवाब देंहटाएंbahut sundar kahaa hai anusandhan ne chand ko kahin ka nahi chhoda!!!
जवाब देंहटाएंक्या शब्द और भाव हैं आपकी रचना में रश्मि जी...अद्भुत...आपको पढना एक सुखद अनुभव से गुजरने जैसा है...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत ही सुन्दर रचना....रोम रोम को झंकृत कार देने वाला...इतनी कुशलता से मन के भावों को व्यक्त करने का हुनर बहुत कम लोगों में होता है...सलाम है इस हुनर को :)
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka dhanyawad
जवाब देंहटाएंAADUNIKTA KI DOUD MEIN HAM JAZBAATON KO, KOMAL BHAAVNAAON KO SHODTE JAA RAHE HAIN .... SUNDAR ABHIVYATI HAI ...
जवाब देंहटाएंkhubsurat andaaj me kahi gayi kavita
जवाब देंहटाएंachchhi lagi
Bas moun hi ho gayi......
जवाब देंहटाएंAtisundar !!!!Waah !!!
aakhri kuchh panktiyaan shaandar hai .chaand se ru-b-ru hona aur usse dukh sanjha karna ye anubhav bahut alag raha ,khoobsurat rachna .
जवाब देंहटाएंmaine suna hai kuch salaon baad chand par ek resturant khulega.. ajib-o-garib lagti hain ye sab batain magar koi kar kya sakta hai uchit aur anuchit ka faisla aage badne ki daud main nahi kar paa rahe..chand bana hai chandni ke liye aur chandni dharti k liye kam se kam use to chod do...kabhi kabhi jyada chamak bhi andha bana deti hai.......
जवाब देंहटाएंaapne bilkul sahi kaha....aur likha hai....
jis tarhaan se apne bhavon ko darshate huye is vishay par aaye wo bahut accha laga....
haan...shayron ke pass ek chaad hi to tha ...is chaand par kya-kya aur kitni baatein nahi kahi gayi......anusandhano ne bhi nai-nahi baatein ujagar ki hai.......Koi nahi ham aasma par doosra chaand bana denge without any spot...technology se :-)
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहराई के साथ आपने बेहद सुंदर, रोचक और भावपूर्ण रचना लिखा है! आपकी रचना की हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंjane kya dushmani hai mujhse is comments-box ko ,accept karta hi nhi ,bhaiyaji !please ek baar unki is rachna par apne views un tk pahuchane do, mithai khilaungi, mere dada box!
जवाब देंहटाएंaapki kavita padhi, 'moon-tears'....nhin unme mere, aapke hm sbhi ke 'tears' the
जवाब देंहटाएंvhan chand khud par kisi ke anadhikrit pravesh sedukhi aansuon se bhiga huaa tha,yhan.......
chand ko chhune ki aakanksha aur kshmataa hm me sda se thi mgr ....
sbhi ne kbhi sidhi hta di,kbhi chheen li aur kbhi tod hi di
mgr chand ko chhune se hme koi nhi rok paya....'usne 'chandni ki sidhi jo ltka di, kaun rok sakataa thaa ab chand ko chhune se
sambandhon ki parakashtha to dekhiye jis se milne se bhi roka ja rahaa tha wo hi banhon me aakar phoot phoot kar rone lga
apne kisi bhi priy ka rona mujhse sahn nhi hota.
mere blog par har kahin chand ko dekha hoga. 'INDU' KA SHBDARTH BHI CHAND HI HOTA HAI.
indu chand ko rote kaise dekh sakatee hai. bda purana rishta hai usse hmara,nanee chhoti thi tb wo unka'mama' tha, fir maa ka bna ,bchpan me hmara, baad me hmare bchchon ka .......jnmo aur pidhiyon ka rishtaa hai hmara.
aapki kavita me sb simt aaya .
kya likhun aapki is kavita ke baare me ?
ankahaa bhi padh,sun,smjh leti hain aap . aisi hi kavitayen mujhe psnd hai jo aa kar bheetar tk aapko chhu jaye .
ise padhne ke baad .....samne hoti to aapke gle lag jatee aur phoot phoot kar khoob roti ......chand ki hi tarah....
आपको पढ़ते से पहले और पढ़ने के बाद भी मुझमे एक उत्तेजना रहती है कि आज आपमें क्या कड़्कपन होगा जो मुझे आकर्षित करेगा... जिससे मुझे सोचने और बोलने का एक नया ढ़ग मिलेगा।
जवाब देंहटाएंतो मैं आशा करता हूं कि आप सदेव एसे ही उत्तेजना को बरकरार रखे और लिखती रहें।
गर्म दूध ही नहीं, ठंडी आहों का भी असर होता है
जवाब देंहटाएंबुरे लोगों की तरह
, भले लोगों का भी डर होता है
्बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति --।
जवाब देंहटाएंपूनम
सच है इस मशीनी युग में चाँद की पीड़ा समझने की फ़ुर्सत किसे है... अब ना तो किसी को चाँद में परियाँ नज़र आती हैं ना चरखा कातती बुढ़िया... आज लोगों के लिये चाँद सिर्फ़ एक उपग्रह है ना की चन्दा मामा :-)... समय के साथ ये भावनात्मक रिश्ते कट से गए हैं शायद... जावेद अख्तर जी की लिखी हुई ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं --
जवाब देंहटाएंमुझको यकीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
behad bhaawpurn abhivyakti, badhai sweekaren.
जवाब देंहटाएंबस इतना कहूंगा कि आप शब्द और भावना दोनों के मामले में बहुत धनी है
जवाब देंहटाएंRashmi Di,
जवाब देंहटाएंSach chaand ke saath ab koi rishta nahi banaata. Chaan ka naya roop dekhne ko mila. Bahut pyaari nazm kahi hai aapne.
--Gaurav
इतना गहरा और सुन्दर आप ही सोच सकती हैं मैम
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
चांद का यूं इस तरह से कविता में..ये नया रूप पहली बार देखा ... दूध-भात अब कोई नहीं खाता का दुख...आह!
जवाब देंहटाएंchaand ke dard ko bahut hi sundar shabd diye hain aapne........us dard mein gahre utarne par hi ye bhaav aa sakte hain..........badhayi
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !!!!
जवाब देंहटाएंवास्तव में ! अनुसंधानों ने भी अब उसे नहीं छोड़ा |
चांद हर रिश्तों से टूटा !!!
बहुत गहरे भाव
चंदामामा दूर के
जवाब देंहटाएंपुए पकाए पूर के
आप खाओ थाली में
और मुन्ने को दो प्याली में
बरबस ही यह गीत याद आ गया आपकी खुबसुरत और प्रभावी अर्थपूर्ण कविता पढ़कर
आभार
bilkul sahi kaha ki chand ab naya nahi ..research ne use bhi nahi chhoda.........
जवाब देंहटाएंभावो में डूबती उतरती कविता, बहुत सुन्दर !!!!!!!
जवाब देंहटाएंek ho sakne wali samasya ki taref behad hi poetic andaaz mei prshne uthaya hai.......rachna bahut masoom si lagi.......
जवाब देंहटाएंbahut hi umada abhi vyakti
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