माना - ज़िन्दगी भाग रही है
माना - कहीं कोई ठहराव नहीं है
माना - भौतिकवादी हो गए हैं सब
माना - good morning से good night तक कोई तालमेल नहीं रहा
माना - भावनाओं से पेट की आग नहीं बुझती
माना - "स्व" की संकुचित भाषा पैनी हो गयी है
पर मानो -
आज भी ॐ से शुभप्रभात की ज्योत जलती है
आज भी आशीर्वाद की ज़रूरत है
आज भी ज़रूरत है उन भावनाओं की
जो दूसरो की भूख को समझते हैं
आज भी, इस भाग-दौड़ में
कई विस्मित,खाली आँखें कुछ ढूंढ रही हैं
आज भी, मेहमान को देवता मानने वाले दुर्बल शरीर हैं
आज भी कुछ घरों से कोई खाली हाथ नही जाता
आज भी,
जिसे तुम राख मान रहे हो
उसके अन्दर अब भी चिंगारी है
संस्कारों के पदचिह्न आज भी हैं,
मूल्यांकन की तदबीर आज भी है
और मानो
आज भी इसमें ही कशिश है....