03 सितंबर, 2013

अम्मा



अब अम्मा का फोन नियम से नहीं आता 
'साईं समर्थ' 
गुड नाईट। … नहीं सुनती उनसे 
मैं कर देती हूँ आदतन मेसेज 
कोई जवाब नहीं आता 
कभी फोन करूँ भी 
तो अम्मा उठाती नहीं 
उठाया भी तो बगल में रख देती है 
झल्लाती है हौले से - "कुछ सुनाई ही नहीं देता"
…… 
कभी वो करती है तो लपककर उठाती हूँ -
'हाँ अम्मा बोल  …'
कराहती है अम्मा 
कभी कहती है - 'बहुत तकलीफ,बहुत तकलीफ  ….'
कभी - 'बुला लो,बुला लो  ….'
कभी - 'अह अह अह अह  ….'
कभी - '…………………….'
इधर दो तीन दिनों से 
हर दिन (करीबन 3 बजे)
आधी रात को मोबाइल बजने लगा है 
देखती हूँ,सुनती हूँ - ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन 
नहीं उठाती  - 
घबराहट होती है…… 
वो घुटी घुटी कराहट मैं बर्दाश्त नहीं कर पाती 
………………। 
उम्र के इस पड़ाव पर 
अम्मा बहुत कमज़ोर,बीमार है 
और हम  - अपनी अपनी जिम्मेवारियों में अवश-शिथिल !
मेरी बाह्य दिनचर्या से 
मेरी आंतरिक दिनचर्या मेल नहीं खाती 
मैं ही क्या 
हमसब अपनी अपनी जगह बाह्य से परे जी रहे हैं 
……… 
ऊपर से संवेदनहीन दिखते  
अन्दर किसी पिजड़े में पंख फड़फड़ाते 
मुक्ति की कामना लिए 
अव्यक्त भय से ग्रसित !

38 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब रश्मि जी .....

    माँ विषय पर एक काव्य संग्रह निकाल रही हूँ उसके लिए आप दो रचनायें , परिचय और तस्वीर भेज दें तो आभारी रहूंगी ....!!

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  2. ऊपर से संवेदनहीन दिखते
    अन्दर किसी पिजड़े में पंख फड़फड़ाते
    मुक्ति की कामना लिए
    अव्यक्त भय से ग्रसित !--------

    "अम्मा"ने जीवन भर सुना सहा,अब जब वाकई सुनने का समय आया तो
    नहीं सुनती,अब "अम्मा"खीझने लगी हैं और अपन घबड़ाने लगे हैं .
    यह आपकी और मेरी नहीं यह उन सभी की है, जिनके जीवन में "अम्मा"
    भीतर तक रची बसी है-------

    आदरणीया,आप जब भावुक होकर लिखती हैं, तो स्वयं का मन नम तो करतीं ही हैं,
    पाठक का भी कर देती हैं,आज मन नम तो हुआ ही आँख से भी बह गया------

    मार्मिक,भावुक रचना "अम्मा"का सच
    आपको, आपकी लेखनी को साधुवाद
    प्रणाम




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  3. महसूस कर सकती हूँ ये तिलमिलाहट....
    :-(


    सादर
    अनु

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  4. @हमसब अपनी अपनी जगह बाह्य से परे जी रहे हैं

    बिलकुल सही कहा है, बहुत सटीक सार्थक लगी रचना !

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  5. इस उम्र की ये छटपटाहट ...बहुत कुछ बदलता है बहुत कुछ टूटता है ...महसूस कर सकते है हम सब

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  6. सच कहा आपने ऐसे मैं हम अक्सर खुद को बहुत ही असहज या शायद हेल्प लेस महसूस करते है।

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  7. ये सहज भाव मुक्ति के क्षणों में ही जागृत होता है

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  8. अनुभूत सच्चाईयां आपकी कलम से अभिव्यक्त हुई हैं...
    मन इन्हें महसूस कर अपनी विवशता थाहता है और बस उदास हो कर रह जाता है...

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  9. मुझे थोड़ा सुकून है
    अम्मा के हांथ आशीर्वाद के लिए अपने सिर पर पाकर
    वो अनुभूति मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर पाऊँगी ...।
    आपके तड़प में क्या कहूँ ....

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  10. अपनी अम्मा को खोये सत्ताईस साल होने आये हैं रश्मिप्रभा जी लेकिन आज भी उनका कहा हर शब्द मन मस्तिष्क में उसी तरह प्रतिध्वनित होता रहता है जैसे आज कल ही की बात हो ! आपकी रचना की आँच ने मर्म को छुआ है और जाने कितना कुछ अंतर में पिघल कर बह गया है ! आपकी 'अम्मा' के स्वास्थ्य की कामना करती हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वे आपके मन के पंछी की छटपटाहट को कम करें ! मन को भिगोती एक अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना !

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  11. ऊपर से संवेदनहीन दिखते
    अन्दर किसी पिजड़े में पंख फड़फड़ाते
    मुक्ति की कामना लिए
    अव्यक्त भय से ग्रसित !

    ....बहुत मर्मस्पर्शी..आँखें नम कर गयी..

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  12. उम्र के इस पड़ाव पर
    अम्मा बहुत कमज़ोर,बीमार है
    और हम - अपनी अपनी जिम्मेवारियों में अवश-शिथिल !
    मेरी बाह्य दिनचर्या से
    मेरी आंतरिक दिनचर्या मेल नहीं खाती
    मैं ही क्या
    हमसब अपनी अपनी जगह बाह्य से परे जी रहे हैं
    ………
    ऊपर से संवेदनहीन दिखते
    अन्दर किसी पिजड़े में पंख फड़फड़ाते
    मुक्ति की कामना लिए
    अव्यक्त भय से ग्रसित !
    ati sundar rachna ,sari prishtbhumi
    par anmol moti saje hai ,is rachna ne aankhe nam kar di ,aap wakai bahut achchha likhti hai .

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  13. ऊपर से संवेदनहीन दिखते
    अन्दर किसी पिजड़े में पंख फड़फड़ाते
    मुक्ति की कामना लिए
    अव्यक्त भय से ग्रसित !


    कभी कभी सच ही ऐसे में मुक्ति की कामना करने लगते हैं .... हृदयस्पर्शी

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  14. संवेदनाओं का संसार सब कुछ सामने रख देता है जो दुर्निवार दर्द बन जाता है..

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  15. माँ मोबाइल पर आवाज़ नही सुनती , एहसास करती है

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  16. उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
    कभी यहाँ भी पधारें

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  17. ईश्वर के बाद माँ ही हमारे जीवन की मुख्य आस्था होती है जो जीवन भर हमें आशीष व् दुलार दे कर हमारे जीवन को सींचती है मैं जानता हूँ इस दर्द को.आपकी माँ के प्रति इस दर्द भरी अभिव्यक्ति
    को समझ सकता हूँ बहुत गहन है जो मन को छू जाती है

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  18. दो तीन बार पढ़ा ....
    बस जैसे छूकर निकल रही हो हमारे अंतर में छिपे माँ के प्रति एक कोमल एहसास को

    उम्र का एक पड़ाव जहाँ माँ तो कष्ट झेल रही होती है और संतान बस उसके दुःख के एहसास से दुखी होती रहती है

    सादर!

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  19. इस गहरे एहसास को झेलना तो सभी को पड़ता है ... मन चाहता है उड़ के उनके पास पहुँच जाना ... निःशब्द हूं इन शब्दों पे ...

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  20. बहुत गहन है जो मन को छूती

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  21. जीवन के जिस पड़ाव पर हम खड़े हैं...हमें अपने आप को इस अनहोनी के लिए तैयार करना होगा ...क्योंकि कटु ही सही लेकिन यही जीवन का शाश्वत सच है

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  22. मेरी ही भावनाओं को अभिव्यक्ति दे दी आपने ......मन पर ये बोझ बढ़ता ही जाता है

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  23. हम सभी को इस परिस्थिति से दो-चार होना पड़ता है...वृद्धावस्था का कोई इलाज भी नहीं है...और सिर्फ आहें सुन कर कुछ न कर पाएं तो मलाल होता है...

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  24. मन बहुत बेचैन होता है जब उनके लिए कुछ कर ना पायें !

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  25. एक अज्ञात भय होता है, हर अनुत्तरित फोन की घंटी में।

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  26. मार्मिक...... कितने मजबूर हो जाते हैं हम अपनों की कराहें भीतर से हिला देती हैं

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  27. बहुत सुन्दर रश्मि .....
    अभी 3 साल पहले अपनी माँ को खोया है .....
    फिर से आँखें नम हो गईं ......
    कुछ ऐसा ही मेरा भी अनुभव रहा है .....
    आज भी उस फ़ोन का इंतज़ार रहता है .....
    जो अब कभी नहीं आएगा .....

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  28. :(
    ऊपर से संवेदनहीन दिखते
    अन्दर किसी पिजड़े में पंख फड़फड़ाते
    मुक्ति की कामना लिए
    ....

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  29. har samvedansheel man ki vyatha .....
    bahut gahan anubhooti ki marmsparshi abhivyakti ...di ...

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...