लड़ने से रिश्ते नहीं खत्म हो जाते ...
शिकायत होती ही रहती है आपस में
उसे मन में रखना
सड़ांध पैदा करता है …
अगर नहीं कह सके अपनी बात
रोकर-झगड़ कर
तो मन के अंदर विषबेल फैलता है ....
यूँ भी
विष के बीज मन कभी नहीं बोता
उसे दूसरा कोई बोता है
....
ऐसे में छानबीन तो होनी चाहिए न
किसने भेजा,किसने लगाया
नाम मिल जाए तो पूछो उससे
सम्भव है, सारी बातें झूठी हों
और हम-तुम दूर हो गए हों !!
....
भाई बहन
माँ बच्चे
दोस्त
पति-पत्नी
प्रेम
…… इनसे ही तो लड़ाईयाँ होती हैं
क्योंकि इनसे प्यार होता है
ख़्वाबों जैसे प्यार की उम्मीद होती है
……
(बकवास करते हैं लोग
कि प्यार में उम्मीद नहीं होनी चाहिए )
रूठना-मनाना, फिर खिलखिलाना
इसकी साँसें होती हैं
किसी तीसरे की ज़रूरत नहीं होती
तीसरा !!!
सारी बातें बिगाड़ देता है
………
पर बातों को लड़कर
सवालों से
ठीक कर सकते हैं हम
कर भी लेते हैं
यही नोक-झोंक तो अनुपस्थिति में गहराती है
!!!
ज़िंदगी सवालों का पन्ना है
जो सबसे तेज होता है
उसी से हम सवाल पर सवाल करते हैं
उसकी हार पर खुश होते हैं
अपनी जीत पर इतराते हैं
!!! पन्ना गुम होते
न जीत,न हार .... किससे लड़ें !
तो मानो -
लड़ना स्वास्थ्य के लिए दवा है
जो जोड़ता है
तोड़ता नहीं
जो तोड़ दे वह लड़ाई नहीं
एक विध्वंसात्मक सोच है !!!
....
इसी फर्क को समझना है
जुड़ने और तहस-नहस करके मिटा देने का !!!!!!!!!!!!!!!
……… लड़ने से रिश्ते खत्म नहीं होते
न कोई गाँठ पड़ती है
मीलों की दूरी में भी नज़दीकियाँ होती हैं
जब हम एक कॉल,
मेसेज
और चिठ्ठी के लिए लड़ते हैं …
लड़ना प्यार है
सिर्फ प्यार !
और ये प्यार बढ़ता ही रहता है.. सुन्दर कहा है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना …
जवाब देंहटाएं…… लड़ने से रिश्ते खत्म नहीं होते
जवाब देंहटाएंन कोई गाँठ पड़ती है
मीलों की दूरी में भी नज़दीकियाँ होती हैं
जब हम एक कॉल,
मेसेज
और चिठ्ठी के लिए लड़ते हैं …
लड़ना प्यार है
सिर्फ प्यार !
isi pyar ke liye tarasate hain
लड़ना प्यार है
जवाब देंहटाएंसिर्फ प्यार !
सीधी औ' सच्ची बात
प्यार को परिभाषित करती तकरार ..... बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबुनियाद प्रेम का हो तो लड़ाइयों के बस की बात नहीं कि कुछ कर पाए. सैलाब बन आती है और प्रेम की उष्णता में भाप बन उड़ जाती है. लेकिन इन्ही रिश्तों में जब प्रेम नहीं होता तो यही लड़ाइयाँ जीवन के कडवे अनुभवों का हिस्सा बन टीस देती रहती है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना. लड़ाइयों की अलग नज़रिए से देखना अच्छा लगा.
khubsurat....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
खूबसूरत उदगार
जवाब देंहटाएंलड़ लो अपनों से मगर जब कदम बढ़े तो इस गठरी का सामान कूड़ा जान फेंक कर आगे बढ़ना .........बहुत सही सीख है .
जवाब देंहटाएंलड़ने से रिश्ते खत्म नहीं होते
जवाब देंहटाएंन कोई गाँठ पड़ती है
मीलों की दूरी में भी नज़दीकियाँ होती हैं
जब हम एक कॉल,
मेसेज
और चिठ्ठी के लिए लड़ते हैं …
...बिल्कुल सच कहा है....एक सार्थक द्रष्टिकोण...बहुत सुन्दर...
सही तो है लड़े बिना भी तो पता नहीं किया जा सकता न कि प्यार क्या है।
जवाब देंहटाएंऔर अब हम लड़ें आप से ...:-) कितने दिन हो गए, आपने तो आना ही छोड़ दिया मेरे ब्लॉग पर यह सही नहीं है हाँ !!! :-)
थोड़े शिकवे भी हों कुछ शिकायत भी हों तो मज़ा जीने का और भी आता है...
जवाब देंहटाएंलड़ाइयाँ ...मतभेद.... हमें कुछ समय के लिए अलग कर देते हैं ...उनसे ...जिनके बगैर हम रह नहीं सकते ....और वह समय होता है भीतर झाँकने का ...यह जानने का कि वाकई हम इनके बगैर नहीं रह सकते ...तो फिर लड़ाइयाँ अच्छी है न ....क्योंकि उसके बाद हम और करीब हो जाते हैं.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर उदगार !
जवाब देंहटाएंमित्रों ! 18 नवम्बर से २३ नवम्बर तक नागपुर प्रवास में था ! इसीलिए ब्लॉग पर उपस्थित नहीं हो पाया !अब कोशिश करूँगा कि अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहचुं!
बहुत खुबसूरत रिश्तों की बुनियाद ..... बहुत खुबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंचुप रहने में गांठें बनी रह जाती है मन में , लड़ने से मन साफ़ हो जाता है। लड़ने का मनोविज्ञान यह भी है !
जवाब देंहटाएंफिर तो हम लड़ाका ही ठीक हैं :)
गलतफहमी रिश्तों को उलझा देती है साफ बात चाहे लड झगड कर करें तो मन व रिश्ते दोनों साफ रहते हैं।
जवाब देंहटाएंसच कहा है ... मेरा भी मानना है की रिश्ते लड़ने से खत्म नहीं बल्कि ग़लतफ़हमी दूर करते हैं ... फिर प्यार होगा तो झगडा भी होगा ...
जवाब देंहटाएंदीदी, एक बार फिर आपने पारिवारिक/सामाजिक संबंधों को मनोवैज्ञानिक स्तर पर व्याख्यायित किया है और हर बार की तरह आपकी कविता मात्र सन्देश ही नहीं देती, विचार करने और एक नयी सोच के लिये प्रेरित करती है!! सलाम!!
जवाब देंहटाएंकाफी सुंदर चित्रण ..... !!!
जवाब देंहटाएंकभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारे.....!!!
खामोशियाँ
लड़ना ठीक है मगर रोज रोज नहीं...खाने में नमक की तरह थोड़ा सा...
जवाब देंहटाएंलड़ना प्यार है ... कितनी प्यारी बात :)
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा..रश्मि जी ....लड़ना प्यार ही तो है ..
जवाब देंहटाएंसही कहा लड़ने से मन का मैल निकलता रहता है |
जवाब देंहटाएंप्यार में अपनों से ही लड़ा-झगड़ा जाता है ..दूसरे कहाँ लड़ने झगड़ने के बाद पहले जैसा रिश्ता रख पाते हैं ..एक कसक कहीं न कही बाकी रह जाती नज़र आती हैं /...
जवाब देंहटाएंरिश्तों की बहुत बढ़िया विवेचन भरी प्रस्तुति ....
निर्भर करता है कि लड़ने से सुलझन हो या उलझन?
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