रात गए नींद नहीं आती
उम्र का असर है
या अनुभवों का तनाव
घड़ी की टिक टिक की तरह
हर दौर की सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती हूँ
साँसें चढ़ जाती हैं
तो बचपन के तने से टेक लगा
बैठ जाती हूँ
आँखें दूर कहीं लक्ष्य साधती हैं
कभी चेहरे पर मुस्कान तैरती है
कभी भय
कभी उदासी
कभी … निर्विकार होना ही पड़ता है !
.... !
बचपन के तने से टिके शरीर के मन में
कई सवाल उठते हैं
एक के बाद एक .... लहरों की तरह !
मन से बड़ा समंदर और कहाँ
और उसमें मोती मिल जाए
तो बात ही अलग है !
हाँ तो इस समंदर की कई लहरों के बीच
एक लहर करती है तुमसे सवाल
- तुम तो बिना हाथ पकड़े नहीं चल पाती थी
तो गई कैसे ?
कितनी सीढ़ियाँ उतरनी पड़ी होंगी
डर भी लगा होगा
.... दूर दूर तक …
हम होकर भी नहीं थे
फिर भी -
तुम चली गई !
साँस रुक जाने से कहानी खत्म हो जाती है क्या ?
साँसों को रोकने का खेल तो हम बचपन से खेलते आये हैं
फिर ये क्या बात हुई
और कैसे - कि अब तुम नहीं कहीं !
मुझे शक़ होता है
तुम हमें जाँच रही हो ....
मुझे विश्वास है - तुम पास में रहती हो खड़ी
कभी झुककर अपने मोबाइल पर लिखती हो कुछ
सेंड' नहीं कर पाती
हाथ हिलता है न तुम्हारा
तो ऑफ बटन दब जाता है
और तुम उकताकर लेट जाती हो …।
…
सवाल सवाल सवाल …… एक आता है
एक जाता है
कभी कुछ सकारात्मक ले जाता है
कभी कुछ नकारात्मक से ख्याल ले जाता है !
मन के समंदर के इस किनारे मैं
- चाहती हूँ
बन जाऊँ गोताखोर
सम्भव है मेरे ही मन के एक सीप में तुम मिल जाओ
और -
ज़िन्दगी फिर से चले !
इस बार हम एक एक कदम
सोच-समझकर उठायेंगे
उन लोगों से कोसों दूर रहेंगे
जिनका मन हम सा नहीं था
थोड़ी व्यवहारिकता भी लाएँगे अपने व्यवहार में
सिर्फ मन से चलते रहने पर
बहुत ठोकर लगती है
और खामखाह बीमारी
इलाज़
और अंत में - सबकुछ मानसिक कहा जाये
इस बात का एक भी मौका हम नहीं देंगे
आओ अब सो जाएँ !
जो बीत गया वो फिर लौटता नहीं
जवाब देंहटाएंन बीते दिन .....न बीते लोग
बस संग बीते लम्हों में जीते रहते हैं हम
यही नियति है .......हम सब की
इस बार हम एक एक कदम
जवाब देंहटाएंसोच-समझकर उठायेंगे
उन लोगों से कोसों दूर रहेंगे
जिनका मन हम सा नहीं था
थोड़ी व्यवहारिकता भी लाएँगे अपने व्यवहार में
सिर्फ मन से चलते रहने पर
बहुत ठोकर लगती है
और खामखाह बीमारी
इलाज़
और अंत में - सबकुछ मानसिक कहा जाये
इस बात का एक भी मौका हम नहीं देंगे
आओ अब सो जाएँ !!
काश ऐसा हो पाता
जवाब देंहटाएंमैं ३७ साल वापस जाती
बहुत ज्यादा तो नहीं
इस बार हम एक एक कदम
जवाब देंहटाएंसोच-समझकर उठायेंगे
उन लोगों से कोसों दूर रहेंगे
जिनका मन हम सा नहीं था
थोड़ी व्यवहारिकता भी लाएँगे अपने व्यवहार में
सिर्फ मन से चलते रहने पर
बहुत ठोकर लगती है
और खामखाह बीमारी
इलाज़
और अंत में - सबकुछ मानसिक कहा जाये
इस बात का एक भी मौका हम नहीं देंगे
सटीक आकलन खुद ही कर सकता है इंसान अपना और अपने वजूद का ………बचपन के तने ………खूबसूरत बिम्ब प्रयोग्।
इतना सब जान लेने के बाद अब नींद कहाँ आएगी ??????
जवाब देंहटाएंइतना सब कुछ जान लेने के बाद अब नींद कैसे आएगी ???
जवाब देंहटाएंमन को साम्य चाहिये, स्वयं से। तभी मन शान्त हो सो पाता है। सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंनींद नहीं आती...बड़ी लम्बी रात है
जवाब देंहटाएंसही कहीं सकारात्मक और नकारात्मक ख्याल तो चलते ही रहते है...लेकिन पॉजिटिव सोच के साथ हमें चलना है.......
जवाब देंहटाएंइस बार हम एक एक कदम
जवाब देंहटाएंसोच-समझकर उठायेंगे
उन लोगों से कोसों दूर रहेंगे
जिनका मन हम सा नहीं था...ये प्रण तो दूसरे ही भूल जाता है इंसान...आप भी भूलती होंगी...
बहुत अच्छा लिखा है दी
बहुत सुंदर यथार्थ पूर्ण उत्कृष्ट रचना ....!
जवाब देंहटाएं==================
नई पोस्ट-: चुनाव आया...
वक्त के साथ कोई चला भी जाता है पर उसकी यादे हमेशा दिल को रोशन रखती है...कोमल,भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है
जवाब देंहटाएंसब सोये हुऐ हैं
और मैं भी
किसी दिन शायद
नींद खुलेगी
किसी की कभी
और
सुनने को मिलेगा
उठो उठो सुबह
हो ही गयी है आंखीर
पर कहाँ मालूम था
कोई सोये हुऐ को
भी सुलाने आ जायेगा
और सुनने को मिलेगा
आओ सो जायें :)
नींद नहीं आती की जगह लिखना होगा नीद नहीं जाती..यादें भी तो एक आवरण हैं नींद का..विचार भी..जब सब अनावृत हो जायेगा तब जो जागरण होगा उसके बाद ही कुछ हो सकता है...
जवाब देंहटाएंविछोह की पीड़ा को आसानी से कहाँ सह पाता है मन ! हर बार आस-पास एक साया सा महसूस होता है जिसे हम अपनी गिरफ्त से छूटने नहीं देना चाहते ! लेकिन जिस अमूर्त को हम प्राण प्राण से बाँध कर रखना चाहते हैं वह हमसे बहुत दूर जा चुका है इसे स्वीकार कर पाना भी तो बहुत मुश्किल होता है ! बहुत मार्मिक रचना रश्मिप्रभा जी ! मन भर आया !
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी को प्रणाम दी ... और क्या कहूँ हर बार दिल छु जाती है आपकी हर रचना और अपनी बात कहने को सही शब्द ही नहीं मिलते...मन के समंदर में यादों के हिलोरे मारती कश्ती जो मोती के रूप में फिर पा लेना चाहती है अपने अपनों का साथ ... उत्कृष्ट भाव संयोजन से सजी बेहतरीन भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहाँ! अपने ही सैलाब के आगोश में सो जाएँ..अति सुन्दर भाव...
जवाब देंहटाएंकभी सोचता हूँ कि बचपन के दिन जब इतनेआनन्दमय थे तो वर्त्तमान तक पहुच्न्हाते पहुंचते यह आनन्द न जाने कितने गुणा बढ़ जाना चाहिए था.. लेकिन ऐसा अन्हीन हो पाता.. कहीं हमरा ही तो दोष नहीं? हमने खो दिया कुछ बेमतलब पाने के लालच में!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना दीदी!! हमेशा की तरह!!
साँस रुक जाने से कहानी खत्म हो जाती है क्या ?
जवाब देंहटाएंहॉं जिस दिन विचारों की सॉंस रूक जाती है उस दिन ऐसा ही होता है
बीते दिन और जहाँ से गए लोग कभी नहीं मिलते ,यही सत्य है .सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबीते दिन और जहाँ से गए लोग कभी नहीं मिलते ,यही सत्य है .सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअपने अनुभवों की जब समीक्षा हो तो अक्सर लगता है कि फिर से वही बचपन आये जहाँ कितने पेड़ खड़े होते हैं छाया देने के लिए. पेड़ तो शायद फिर भी स्थावर रह जाता है पर हमारे जीवन की गति अलगाव कर देता है उन पेड़ों से. पर .....वही ज़िन्दगी को चलना है. उन्ही सुखद स्मृतियों की कानों पर थपकी लेकर सो जाना होता है. भाव-प्लावित अति सुन्दर कृति.
जवाब देंहटाएंमुझे शक होता है तुम हमें जांच रही हो …
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ से आते हैं सब , जाने कहाँ जाते हैं , विचार यूँ ही झिंझोड़ते हैं !
हृदय की अथाह गहराई से निकले शब्द !
कहते हैं बचपन और बुढ़ापा एक सा होता है लेकिन बहुत अन्तर है, बचपन असहाय होने के बाद भी विकासोन्मुखी है और बुढ़ापा अन्त।
जवाब देंहटाएंथोड़ी व्यवहारिकता भी लाएँगे अपने व्यवहार में
जवाब देंहटाएंसिर्फ मन से चलते रहने पर
बहुत ठोकर लगती है
कितना कुछ है इन लफ़्ज़ों में ……… गहन अत्यंत गहन |
सम्भव है मेरे ही मन के एक सीप में तुम मिल जाओ
जवाब देंहटाएंऔर -
ज़िन्दगी फिर से चले !
anginat siip hain ......maa sada sath hai ....tabhi zindagi chal rahii hai .....sundar abhivyakti di ....!!
चाहता तो हर कोई है सोच के कदम उठाना ... पर मुमकिन कहां रह पाता है ... पाना और छूटना सहज प्रक्रिया है पर मन कहां मान पता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमन का अंतर्द्वंद कितने खूबसूरत तरीके से बयां किया है क्या कहूं ,
जवाब देंहटाएंकई बार पढते हुए कुछ पंक्तियों पर मन भर आया है आँखे भर आयी है !
अतीत के तने हमें सहारा देते हैं...ज़िन्दगी को चलाये रखते हैं...
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