अम्मा का लिखा हर दिन टाइप करती हूँ …
जितनी बार किसी किताब को पढ़ो
अर्थ उतने ही स्पष्ट होते हैं !
एक क्षण में हम निर्णयात्मक धारणा नहीं बना सकते
यूँ वह तो वर्षों तक नहीं बनाया जा सकता
क्योंकि हमारी किसी भी सोच में
कई सोच का छौंक लगा होता है
.... !!! पर, जब पूरी पुस्तक खत्म हो जाती है
तो एक सार जो रह जाता है
वह सिर्फ अपना होता है
और वही सार उस व्यक्ति,उसके व्यक्तित्व की
असलियत होती है - हमारे लिए !
हाँ तो रोज एक याद को टाइप करते
मैं स्वतः अम्मा बन जाती हूँ (अगर तुम टाइप करो तो तुम भी बन जाओगे)
और साल 64 से
एक विक्षिप्त माँ की सोच को
जिसका 4 साल का बेटा
कहकर गया -'ठहरो माँ,मैं अभी आया'
और …
हर सुबह,हर दिन
हर शाम,हर रात महसूस करती हूँ !
....
ज़िन्दगी में जब हम किसी गहरे आघात से गुजरते हैं
तो उसके छींटे
ख़ुशी,दुःख सबमें नज़र आते हैं
नहीं चाहते हुए भी कई बार मुँह से निकल जाता है !
इसमें सही-गलत की परिभाषा नहीं लागू हो सकती
क्योंकि थोडा-बहुत हर कोई इस रास्ते पर होता है
....
पापा कहते थे -
किसी गहराई को मापने के लिए
उस जगह खुद को रखो
रखते रखते उम्र निकल गई
और हम वहीँ अडिग नहीं खड़े रह सके
जहाँ होना चाहिए था
उल्टे हम उन लोगों की तरफ से बोलने लगे
जिनकी नियत थी - हम उलझ जाएँ !
आह -
हम उलझते गए
और अपना मूल्यवान वक़्त खोते गए
और सबकुछ होते हुए भी
अम्मा की तरह खोने के गम जैसे धागे से
कुछ बुनते गए
यह कुछ - कितना खोखला है
इससे न ठण्ड जाती है
न ओढ़कर मीठे सपने आते हैं
....
अब जाना,
तुम भी जानो
(सम्भवतः जानते भी होगे)
कि लीपापोती एक ज़रूरी पूजा है
झूठ के अर्घ्य से यदि हम खुलकर हंस लेते हैं
तो हर्ज ही क्या है मान लेने में
!
ज़िन्दगी की चाल बड़ी तेज और रहस्यात्मक है
कहीं जगमगाती धरती मिलती है
तो कभी - एक क्षण में पैरों के नीचे से धरती हट जाती है
किस उहापोह में हम अपने ही आगे मकड़ जाल बुन रहे हैं
कौन फँसेगा ?
फंस भी गया तो न हर्ष मना सकोगे
न दुःख …
क्योंकि फिर हम तुम
किसी और धारा में बह जायेंगे !!!!!!!!!!!!!!!!!!
श्रेष्ठता की चाभियों का गुच्छा
कमर से लगाकर क्या होगा
यदि एक झूठ को झूठ जानते हुए भी
सच मानकर
हम गले लगकर रो नहीं सके
तो - सबकुछ व्यर्थ है
रिश्तों की मजबूती धैर्य देती है
और इसके लिए कुछ झूठ
कुछ लीपापोती सबसे बड़ी पूजा होती है
अब जाना,
जवाब देंहटाएंतुम भी जानो
(सम्भवतः जानते भी होगे)
कि लीपापोती एक ज़रूरी पूजा है
झूठ के अर्घ्य से यदि हम खुलकर हंस लेते हैं
तो हर्ज ही क्या है मान लेने में
!
बहुत सुंदर , बहुत सुंदर
"हम गले लगकर रो नहीं सके
जवाब देंहटाएंतो - सबकुछ व्यर्थ है "
.........
आपकी अनुभूतियों को प्रणाम... सुन्दर जीवन दर्शण बुनती आपकी लेखनी को नमन !
मन के गहन द्वंद्व को दर्शाती बहुत ही अर्थपूर्ण रचना ! जीवन में कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती है जब सत्य को स्वीकारना असह्य हो जाता है तब झूठ की गोद में शरण लेना ही श्रेयस्कर लगता है चाहे अस्थाई रूप से ही सही कुछ समय के लिये मन मस्तिष्क को विश्राम मिल जाता है और कुछ समय पाकर असह्य सत्य भी ग्राह्य और सुपाच्य हो जाता है ! मननीय रचना !
जवाब देंहटाएंजितना समझती हूँ
जवाब देंहटाएंउतना ही
समझ से परे हो जाती है
आपकी लिखी बाते
सारगर्भित रचना
!!
हम गले लगकर रो नहीं सके
जवाब देंहटाएंतो - सबकुछ व्यर्थ है
रिश्तों की मजबूती धैर्य देती है
और इसके लिए कुछ झूठ
कुछ लीपापोती सबसे बड़ी पूजा होती है
बहुत सुन्दर रचना.
नई पोस्ट : आंसुओं के मोल
आत्मसात कर रही हूँ बस .....
जवाब देंहटाएंसार्थक...लीपापोती से मन शांत हो जाए तो जरूरी है यह...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अलग हटकर रचना...
दी कितनी अर्थपूर्ण कितनी गहन बातें हैं.....
जवाब देंहटाएंबार बार पढ़ रही हूँ.....इसे अपनी रचना बना रही हूँ......
सादर
अनु
अम्मा सोच लेना
जवाब देंहटाएंही बहुत होता है
अम्मा बनना
होता होगा आसान
किसी केलिये पर
मेरे बस में नहीं होता है
कैसे सोच सकता हूँ
कैसे हो सकता हूँ
इस जनम क्या
सात जनम तक भी
नहीं हो सकता हूँ
पूरा आकाश कैसे
मैं तो उसका एक
टुकड़ा भी कभी
नहीं हो सकता हुँ ! :(
बहुत कुछ कहती सारगर्भित रचना .......
जवाब देंहटाएंझूठ अच्छाई के लिए हो तो उस सत्य से बेहतर हैं , जिससे किसी का भी भला न हो !
जवाब देंहटाएंमाँ जानती है यह !
प्रशंसा से परे अमूल्य जीवन-दर्शन है आपकी यह रचना.
जवाब देंहटाएंमाँ और पिताजी दोनों सही है | हम अपने को पीड़ित की जगह पर रखकर ही उसकी पीड़ा को महसूस कर सकते हैं ,तटस्थ होकर नहीं|
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट नेता चरित्रं
नई पोस्ट अनुभूति
रिश्तों की मजबूती धैर्य देती है
जवाब देंहटाएंऔर इसके लिए कुछ झूठ
कुछ लीपापोती सबसे बड़ी पूजा होती है
SACH YAHI TO KATU SATYA HAI ...RASHMI JEE ...
रिश्तों की मजबूती धैर्य देती है
जवाब देंहटाएंऔर इसके लिए कुछ झूठ
कुछ लीपापोती सबसे बड़ी पूजा होती है
और ऐसे झूठ , को सत्य मानने में कोई हर्ज नहीं है..
गहन अनुभव लिए रचना..
आपकी रचना को सुन्दर है कहूं तो बात छोटी लगती है !
जवाब देंहटाएंगहरा अनुभव होता है हर बार आपकी रचना में, दो तिन बार रचना शब्द न शब्द पढ़ती हूँ
देर तक सोचते रह जाती हूँ ! उथला उथला पढना समझ में कहाँ आता है शब्दों के भीतर डुबकी लगानी पड़ती है तभी अर्थ स्पष्ट होते है !
is rachna ko padhkar lagta hai....jeevan ka saar...jeevan jeenay ki kala padh li.....shabd nahi mere pass....mehsus jaroor kar sakti hun
जवाब देंहटाएंरचना के माध्याम से गहरी बात कही आप ने | बधाई आप को इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना
जीवन की गहरी अनुभूतियाँ जी कर ही कही और सही जाती हैं ...
जवाब देंहटाएंदेखिये अमा जाते जाते भी कितना कुछ करा रही है ... कर्मयोगी की तरह ...
ज़िन्दगी की चाल बड़ी तेज और रहस्यात्मक है
जवाब देंहटाएंकहीं जगमगाती धरती मिलती है
तो कभी - एक क्षण में पैरों के नीचे से धरती हट जाती है
किस उहापोह में हम अपने ही आगे मकड़ जाल बुन रहे हैं
कौन फँसेगा ?
फंस भी गया तो न हर्ष मना सकोगे
न दुःख …
क्योंकि फिर हम तुम
किसी और धारा में बह जायेंगे !!!!!!!!!!!!!!!!!!
वाह ! जीवन के सनातन दर्शन को निचोड़ कर चाँद पंक्तियों में रख दिया .. बहुत बढ़िया ..
श्रेष्ठता की चाभियों का गुच्छा
जवाब देंहटाएंकमर से लगाकर क्या होगा
यदि एक झूठ को झूठ जानते हुए भी
सच मानकर
हम गले लगकर रो नहीं सके
तो - सबकुछ व्यर्थ है
रिश्तों की मजबूती धैर्य देती है
और इसके लिए कुछ झूठ
कुछ लीपापोती सबसे बड़ी पूजा होती है
कमाल कर दिया..जिस फ्लो में कविता जा रही थी उसे देख लगा नहीं कि अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचेगी...लेकिन जिस तरह से काव्य की धारा को मोड़कर आपने गहरे अर्थ के समंदर में पहुंचाया है वो बरबस ही वाह कहने को मजबूर करता है..लेकिन वाह कहने के बाद ये शब्द भी नाकाफी लगता है...अद्भुत, गहन अर्थलिये हुई रचना।।।
विगत को पुनः जीना और उसे इस प्रकार एक अभिव्यक्ति देना वास्तव में बड़ा कठिन होता है. लेकिन आपकी कवितायें सदा यह साहस करती हैं. दीदी, बस मन से महसूस करता हूँ!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,प्रेरक रचना...
जवाब देंहटाएंअधिकतर रिश्ते निभाये जा रहे हैं ! माँ के प्रति श्रद्धा को नमन !!
जवाब देंहटाएंहम्म्म ……… कुछ उलझी कुछ सुलझी सी एक अबूझ पहेली सी ज़िंदगी कभी झूठ के सहारे झूलती तो कभी सचाई का दामन पकड़ घसीटती ये ज़िंदगी |
जवाब देंहटाएंगहन अनुभव को प्रेषित करती आपकी यह रचना ..... ज़िंदगी में कुछ पल हंस या रो सकें भले ही झूठ के सहारे ....
जवाब देंहटाएंअम्मा का लिखा हर दिन टाइप करती हूँ …
जवाब देंहटाएंयदि एक झूठ को झूठ जानते हुए भी
जवाब देंहटाएंसच मानकर
हम गले लगकर रो नहीं सके
तो - सबकुछ व्यर्थ है
रिश्तों की मजबूती धैर्य देती है
और इसके लिए कुछ झूठ
कुछ लीपापोती सबसे बड़ी पूजा होती है .....वाह!!! दी क्या बात है। देखा जाए तो सच ही तो है बिना झूठ और लीपापोती है के भी ज़िंदगी चल नहीं सकती।
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंसंबंध स्थिरता दें, स्थायित्व दें, कुछ व्यक्त करें, कुछ लुप्त करें।
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