मौसम ....!
और आदमी !
हर साल गर्मी,बारिश और ठण्ड का कहर होता है
टूटी झोपड़ियाँ,
फुटपाथ पर ठिठुरती ज़िन्दगी
हर साल की खबर है
मरनेवाला यूँ ही बेनाम मर जाता है …
म्युंसिपैलिटी वाले ले जाते हैं लाश को
कई चेहरों की कोई शिनाख्त नहीं होती
ना ही होती है कोई फ़ाइल
जिसमें कोई पहचान हो
किसी गटर में होता है रोता हुआ बच्चा हर साल
लोग भीड़ लगाकर देखते हैं
बुद्धिजीवी बने कहते हैं
- लावारिस, होगा किसी का नाजायज पाप !
क्या सच में ?
बच्चे नाजायज होते हैं क्या ?
ओह ! यह प्रश्न मैं किसी से भी नहीं उठा रही
कर रही हूँ प्रलाप
क्योंकि हर साल जो घटित होता है
उसपर चर्चा कैसी !
बात तो इतनी है
कि गरीब न हो तो अमीर की पहचान कैसी
फुटपाथ पर कोई बेसहारा न हो
तो विषय क्या
बच्चे को नाजायज न कहें
तो नाजायज पिता की शादी कैसे होगी
जायज बच्चों की परवरिश कैसे होगी
और नाजायज माँ का जनाजा कैसे निकलेगा
या फिर वह नई नवेली अल्हड दुल्हन कैसे बनेगी !
घोटाले मौसम और आदमी के
हर साल होते हैं
बस आकड़े बढ़ते-बढ़ते हैं
घटने के आसार न कभी थे,न होंगे !!!
घोटाले मौसम और आदमी के
जवाब देंहटाएंहर साल होते हैं...
हर मौसम हर बार ना जाने कितने ही चीख पुकार को जन्म देता है..और ऐसी ही मंजर खामोश कर जाते है..
भावपूर्ण रचना...
भाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसटीक समसामयिक.... सम्भवतः ये कभी घटेंगें भी नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST =: एक बूँद ओस की.
घोटाले मौसम और आदमी के
जवाब देंहटाएंहर साल होते हैं
बस आकड़े बढ़ते-बढ़ते हैं
घटने के आसार न कभी थे,न होंगे !!!
....बिल्कुल सच कहा है...बहुत भावमयी रचना...
भाव पूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंBhavpurn rachna.......saach har saal kuch nahi badalta........na nazariya na log
जवाब देंहटाएंकुछ घटनाएं निरंतर घटती है ,रूकती नहीं है ,उस पर वार्ता ,चर्चा ,बहस सब निरर्थक है |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट विरोध
new post हाइगा -जानवर
मौसम का कोई कसूर
जवाब देंहटाएंकहीं भी नजर नहीं आता
आदमी की आदतों से है
बस वो अब कुछ कुछ
मजबूर नजर है आता
करने बहुत कुछ औरत
भी लगी है धीरे धीरे
यहाँ भी आदमी ही है
पता नहीं क्यों घेर
दिया है जाता :)
कोई नहीं ऐसा भी
कभी कभी है हो जाता !
बात तो इतनी है कि गरीब न हो तो अमीर की पहचान कैसी....
जवाब देंहटाएंसही तो अमीर गरीब, जायज़ नाजायज़, सच जूठ, अच्छा बुरा, सुख दुख, देखा जाये तो सभी एक दूसरे के पूरक ही तो हैं एक बिना दूसरा कैसे हो सकता है फिर भी सोच में बदलाव का कहीं कोई नमो निशान नहीं सब बढ़ ही रहा है घटता कुछ भी नहीं नहीं न गरीबी न बेरोजगारी न जनसंख्या न घोटाले कुछ भी तो नहीं...अगर कुछ है तो केवल विलाप और फिर भी ज़िंदगी चले जा रही ढर्रे पर...सटीक बात कहती समसामयिक रचना।
जवाब देंहटाएंठंड कुछ के लिए कहर है, बाकियों के लिए महज एक खबर भर ...
जवाब देंहटाएंBILKUL SAHI
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-12-13) को "आप का कनफ्यूजन" (चर्चा मंच : अंक-1463) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-12-13) को "आप का कनफ्यूजन" (चर्चा मंच : अंक-1463) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बात तो इतनी है गरीब न हो तो अमीर की पहचान कैसी !
जवाब देंहटाएंइसलिए ही अमीर और गरीब का फासला मिटता नहीं !
बहुत मार्मिक रचना...
जवाब देंहटाएं..फिर खाप का अस्तित्व कैसे होगा..फिर चिताओं की ज्वाला कैसे धधकेगी...
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ .
समाज का बहती पीड़ा।
जवाब देंहटाएंसमाज की बहती पीड़ा।
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ्फ़ ! बहुत ही गहन और सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंकुछ भी नहीं कहा जा रहा दी ...
जवाब देंहटाएंघोटाले मौसम और आदमी के
जवाब देंहटाएंहर साल होते हैं
बस आकड़े बढ़ते-बढ़ते हैं
घटने के आसार न कभी थे,न होंगे !!!
बिलकुल सही कहा है सार्थक रचना !
सच कहा ... ये घाट नहीं सकते ... एक बढ़ेगा तो दूसरे भी ... और अब तो संवेदनहीन भी हो गए हैं इनके प्रति ...
जवाब देंहटाएंआदमी की गल्तियों को बड़ी सहजता से आपने मौसम पे मढ़ दिया
जवाब देंहटाएंमैंने ऐसा तो नहीं किया .... !
हटाएंगटर में रोता बच्चा मौसम का अन्याय नहीं
अगर आदमी सही कोशिश करता तो क्या ये आंकड़े कुछ कम नहीं हो जाते
हटाएंये अंतर्वेदना सबकी है..
जवाब देंहटाएंshi to kha hai
जवाब देंहटाएंगहन संवेदना भरी प्रेरक रचना ...
जवाब देंहटाएं