22 दिसंबर, 2013

प्राकृतिक उद्देश्य




मैं जमीन पर ही कल्पना करती हूँ 
जमीन पर ही जीती हूँ 
यूँ कई बार 
हौसलों की खातिर 
क्षितिज से मिल आती हूँ :) … 
ले आती हूँ थोड़ी चिंगारी 
जंगल में फैली आग से 
समेट लाती हूँ कुछ कतरे 
जमीन पर खड़े रहने के लिए 
जल,वायु,अग्नि,धरती - आकाश से  
सूरज से वाष्पित कर अपने को 
मैं आकाश से जमीन पर उतरती हूँ 
और गंगा बनने का हर सम्भव प्रयास करती हूँ  … 
क्षितिज खुले आकाश में 
धरती के सीने से दिखता है 
सूरज को मुट्ठी में भरने की ख्वाहिश 
धरती से होती है 
तो जमीनी कल्पना में ही 
मुझे जमीनी हकीकत मिलती है 
जमीनी ख़ुशी जमीनी दुःख 
जमीन से जुड़ा ज़मीर 
जमीन से उगती तक़दीर 
यही मेरी सम्पत्ति है 
इसी सम्पत्ति से मैं स्वयं का निर्माण करती हूँ 
और शिव की जटाओं से निःसृत होती हूँ 
……… धरती के गर्भ में पावन गंगा सी बहती हूँ 
जमीनी हकीकत जब पवित्र नहीं रह जाती 
तब काल्पनिक पाताल में अदृश्य हो 
शिव तांडव में प्रगट होती हूँ 
न स्वयं को खोती हूँ 
न स्वयं में खोती हूँ 
मैं जमीनी कल्पना और हकीकत के बीच 
निरंतर जागती हूँ 
भयाक्रांत करती लपटों से घिरकर 
अविचल 
कल्पनाओं का जाप 
हकीकत के तपिश में करती हूँ 
हकीकत का जीर्णोद्धार 
कल्पनाओं के रंगों से करते हुए 
सृष्टि के गर्भ में अदृश्य कारीगरों का आह्वान करती हूँ 
कल्पना और हकीकत को एकसार करने में 
मैं पल पल जीती हूँ 
पल पल अपने जन्म को एक काल्पनिक सार्थकता देते हुए 
मैं हकीकत के ऐतिहासिक पन्नों में उतरती हूँ 
कल्पना को हकीकत 
हकीकत को कल्पना 
- जमीन से जुड़ा मेरा प्राकृतिक उद्देश्य है 

24 टिप्‍पणियां:

  1. Poori kavita ek oorja se paripoorn hai.. Prerit karti hai vaastavikata aur kalpana ko tolkar zameen se judne ko.. Ek ojaswi rachna.. !!

    जवाब देंहटाएं
  2. Poori kavita ek oorja se paripoorn hai.. Prerit karti hai vaastavikata aur kalpana ko tolkar zameen se judne ko.. Ek ojaswi rachna.. !!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (23-12-13) को "प्राकृतिक उद्देश्य...खामोश गुजारिश" (चर्चा मंच : अंक - 1470) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  4. ज़मीनी हक़ीक़त आपको जोड़े रखती है ज़मीन से...अक्सर ख्वाब देखने वाले अपने ही जाले में उलझ जाते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर रचना और प्रभावशाली प्रस्तुति .....

    जवाब देंहटाएं
  6. कल्पनाएँ हकीकत में बदलती रहें . . .

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह !
    हमें भी सीखना है
    धरातल की हकीकतों
    को कैसे कोई अपनी
    कल्पना में साकार
    करता है यहाँ
    कल्पना को हकीकत
    हकीकत को कल्पना
    कैसे कर लिया जाता है
    हर जगह यहाँ और वहाँ
    ये बात है मगर कुछ
    अलग सी बात है
    आपकी कल्पना
    और हकीकत भी
    काश होती सबकी कल्पना !

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह ! बहुत ही सुंदर ! प्रकृति के हर तत्व से निर्मित ऐसी कृति ही वन्दनीय है !

    जवाब देंहटाएं
  9. गंगा के जन्म, जीवन और उद्देश्य को सम्मुख रख कर लिखी गयी सशक्त रचना...जहाँ कल्पना और हकीकत एक हो जाते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  10. धरती सा ठोस व्यक्तित्व, आकाश सी उन्मुक्त कल्पना, जीवन क्षितिज सा।

    जवाब देंहटाएं
  11. जमीं से जुड़े जुड़े क्षितिज से जुडना ही तो जीवन है ...
    उत्साह का संचार करती हैं ऐसी रचनाएं .. आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  12. अनीता जी की बात से शत प्रतिशत सहमत दी...जीवन और उद्देश्य को सम्मुख रख कर लिखी गयी सशक्त रचना...जहाँ कल्पना और हकीकत एक हो जाते हैं...बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  13. संगीत की श्रुति भी प्रकृती मे ही मौजूद हैं .....हमें उसी मे अपना स्वर मिलना है .....और कल्पना साकार करना है ....बहुत सुंदर रचना दी ...!!

    जवाब देंहटाएं
  14. जमीनी हकीकत कल्पना से मिलकर जीवन को चलायमान रखता है।
    याद आई एक पंक्ति … दूर दूर तक रहा सहरा , मगर कोई था जो मन रखने को कहता रहा मंजिल दूर नहीं।
    कल्पना भी थी जरुरी जीवन की पथरीली सच्चाई को !

    जवाब देंहटाएं
  15. कल्पना को हकीकत
    हकीकत को कल्पना
    - जमीन से जुड़ा मेरा प्राकृतिक उद्देश्य है
    उत्तप्त रवि किरणों से बूंद का भाप बनना
    आकाश से धरती पर बादल बनकर बरसना
    गंगा का गंगासागर होना एक मात्र उद्देश है
    बहुत सटीक चित्रण , सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  16. आसमान से धरती पर उतारकर गंगा बनना चाहती हूँ ..........सुन्दर कल्पना ...कल्पना होगी तभी तो कार्य की दिशा निश्चित होगी !
    नई पोस्ट चाँदनी रात
    नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )

    जवाब देंहटाएं
  17. पल पल अपने जन्म को एक काल्पनिक सार्थकता देते हुए
    मैं हकीकत के ऐतिहासिक पन्नों में उतरती हूँ
    कल्पना को हकीकत
    हकीकत को कल्पना,,

    सुंदर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
    =======================
    RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.

    जवाब देंहटाएं
  18. जीवन का सच्चा आनंद तो जमीन पर रहकर ही है. बहुत वक़्त लग जाता है इसे समझने के लिए. और आपने उसे बहुत अच्छे से कहा है. अति सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...