24 अप्रैल, 2014

ये जीना भी कोई जीना है !!!




हम जो बोलते हैं
उसे तौलते भी जाते हैं
मन इंगित करता रहता है
-ये है सही और ये गलत
गलत को दिखाती मन की ऊँगली
हम धीरे से हटा देते हैं
या फिर तर्कों से भरा ज़िद्दी अध्याय खोल लेते हैं
अपनी बात रखते हुए
सही को काटते हुए
अंततः हम वहाँ पहुँच जाते हैं
जहाँ से लौटना अपमानजनक लगने लगता है !
तटस्थता में हम घुटने लगने लगते हैं
'यह मेरी गलती थी' - इसे कहने में वर्षों लगा देते हैं
जानते हुए भी
कि इसकी घुटन हमें ही जीने नहीं दे रही !!
गलती का एक रास्ता भारी पड़ता है
फिर क्यूँ दोराहे, चौराहे बनाना ?
ज़िद्द की कोई उम्र नहीं होती
वह तो वही दम तोड़ देती है
जहाँ वह जन्म लेती है !
मृत भावनाओं को पालने से
उसकी राक्षसी भूख मिटाने से
कुछ नहीं मिलता
सिवाए बंजर जमीन के
और वहाँ कोई मृगतृष्णा भी नहीं होती
सारे जीवनदायी भ्रम तक खत्म हो जाते हैं
साँसें चलती हैं
तो जी लेते हैं
पर ये जीना भी कोई जीना है !!!

20 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी गलती मानने की गलती कहाँ कर पाते हैं .......... !!

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  2. जी रहे हैं जीने का अर्थ जाने बिना....बहुत सटीक चिंतन और उसकी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.....

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  3. ज़िद्द की कोई उम्र नहीं होती
    वह तो वही दम तोड़ देती है...बहुत सटीक...

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  4. उन्हें ये ज़िद थी कि हम बुलाते/ हमें ये उम्मीद वो पुकारें
    है नाम होठों पे अब भी लेकिन आवाज़ में पड़ गयी दरारें!
    ये अहम है, ज़िद्द है जो दीवर खड़ी कर देता है, दूरियाँ पैदा करता है!!
    बहुत सुन्दर ढंग से आपने इसे रेखांकित किया है!!

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  5. अपनी गलती मानने जैसा बड़प्पन होना आसान कहाँ है ...
    सुन्दर भाव!!

    सादर
    अनु

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  6. पर जीना है और इसी तरह जीना है :)
    बहुत सुंदर !

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  7. धीरे से ऊँगली का हटाना ही तो अपनी आग में घी जैसा है..

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  8. सिर्फ साँसों का चलना , सुबह और शाम का ढलना ही तो जीवन नहीं , कई बार एक पूरी उम्र समझते नहीं है लोग !

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  9. खुद की गलती होते हुये भी गलती न मानने की कोशिश करना, और उसके फेवर मे सारे तर्क जुटाकर उन तर्कों के सहारे मै ही सही दूसरा गलत होने का ज़ी जान लगाकार सेल्फ डिफेन्स करना, जिद्द ऐसी ही एक चीज है जिससे अहंकार को पोषण मिलता है, खुद की गलती मान लेना उतना सरल नही है मन को, क्योंकि मान लेने मे उसकी हार है और मन हर हाल मे जितना चाहता है !

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  10. अति सुन्दर खूबसूरत कथ्य...

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  11. गलती माने ...... ये कहाँ सीख पाते है हम जीवन भर

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  12. सही कहा...विचारणीय प्रश्न है ये।।।

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  13. वाजिब प्रशन है ... प्रभावी तरीके से रचना में उतारा है आपने ...

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  14. अहंकार ही यह सब करवाता है..शरण में आये बिना यह गलता नहीं है..

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  16. Sabse jyada agar himmat lagti hai to sach ko accept karne ke liye

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