मैं चाहती हूँ अपने को लिखना
लिख नहीं पाती …
खोल सकती हूँ मैं मन की हर परतों को
लेकिन सिर्फ मैं' हूँ कहाँ !
चेहरे से निकलते चेहरे
जितने चेहरे उतने उद्धृत रूप -
श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण रस
रौद्र रस, वीर रस, भयानक रस
वीभत्स रस, अद्भुत रस,शांत रस
जाने-अनजाने पात्र
रसों की अलग अलग मात्राएँ !
सोचती रही …
भयानक रस लिखूँ
करुण रस लिखूँ
या वीभत्स !!
या फिर वह अद्भुत शांत रस
जो समानांतर जीवन का आधार रहा
जिसने श्रृंगार रस की उत्पत्ति की
हास्य रस का घूंट लिया
और रौद्र रस के आगे
वीर रस का जाप किया !
रसों के तालमेल को हूबहू लिखना
संभव नहीं होता
जीवन के वृक्ष में कई फल लगते हैं
मैं' तो सिर्फ जड़ें हैं
और जड़ों की मजबूती में
आग,पानी,तूफ़ान,बर्फ सब होते हैं
तो,
किसे लिखूँ
किसे रहने दूँ !
मन का सब कुछ वैसे भी कहाँ हो पाता है ... जो हो सके उसको जरूर लिख जाना चाहिए ... मन की गठरी खोलते शब्द ...
जवाब देंहटाएंकुछ भी लिखें
जवाब देंहटाएंकिसी के लिये भी लिखें
बस लिखें लिखती रहें
जिसे जरूरत होती है
वो निचोड़ लेता है
अपने हिसाब से
अपने लिये रस ।
कशमकश रहती ही है क्या लिखा जाये, क्या छोडे.
जवाब देंहटाएंमनोदशा का सही चित्रण है .
जवाब देंहटाएंतुलसी ने कहा है..हरि अनंत हरि कथा अनंता...नानक ने कहा है..मत करो वर्णन वह बेअंत है..कबीर कहते हैं अकथ कहानी बखानी न जाये..आप सही निष्कर्ष पर पहुँची हैं..
जवाब देंहटाएंखुद ही खुद को शब्दों में अभिव्यक्त कर पाना असंभव है
जवाब देंहटाएंसिर्फ प्रयास मात्र कर सकते है !
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरणीया।
जवाब देंहटाएंक्या लिखूँ कहकर मन के सभी रंगों को खोलकर रख दिया आपने।
चन्द पंक्तियों में सबकुछ बयां कर दिया आपने।
जीवन वृक्ष में लगे हर फल को चखते जाना, स्वाद बताते जाना। जहर अमृत सब पीते जाना, मार्ग दिखाते जाना... यही तो कवि कर्म है। किंकर्तव्यविमूढ़ता भी आनी है। इसे भी अभिव्यक्त करना है...
जवाब देंहटाएंमनोभावों के जरिये साहित्य के सभी रसों को समझा दिया इस रचना ने। बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसच्ची व अच्छी मनोभूति
जवाब देंहटाएंसच कहा , मुसकिल होता है अपने बारे मे लिखना , चाहते हुये भी नही लिख पाते सटीक शब्द , शुद्ध वर्णन ....
जवाब देंहटाएंसुन्दरपंक्तियाँ
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