08 जून, 2015

माँ' की पुकार ॐ की समग्रता से कम नहीं









ऐसा नहीं था
कि अपने "मैं" के लिए
मुझे लम्हों की तलाश नहीं थी
लेकिन इस "मैं" के आगे
'माँ' की पुकार
ॐ की समग्रता से कम नहीं थी
और जब "मैं" ॐ में विलीन हो
तो सम्पूर्ण तीर्थ है  …

लोग अच्छा दिन
बुरा दिन मानते हैं
मुझे वह हर दिन पवित्र लगा
जब बच्चों के नाम मेरी ज़ुबान पर रहे

दायित्वों की परिक्रमा पूरी करते हुए मुझे लगा
ब्रह्मा विष्णु महेश
दुर्गा,सरस्वती,लक्ष्मी,पार्वती  ....
सब मेरे रोम रोम में हैं

जब कभी मेरे आगे धुँआ धुँआ सा हुआ
मैं जान गई - बच्चे उदास हैं
सहस्त्रों घंटियों की गूँज की तरह
उनकी अनकही पुकार
मेरे आँचल को मुठी में पकड़ खींचती रही
और मेरा रोम रोम उनके लिए दुआ बनता गया 

मेरा घर, मेरा मंदिर,
मेरी ख़ुशी, मेरी उदासी
मेरे बच्चे  … 

10 टिप्‍पणियां:

  1. विस्तृत होते हुए भी एक ही केंद्र तक सिमटा माँ का अस्तित्व … सुन्दर रचना

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  2. सुंदर जज्बाती रचना माँ के हृदय को परिभाषित करते हुये बधाई

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  3. भावुक कर देने वाली रचना ... माँ के दिल को लिखा है ...

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  4. माँ का दिल ऐसा ही होता है...जैसे माँ के दिल की सीमा नहीं वैसे ही उसके सान्निध्य में पनाह लेने वाले बच्चों की भी नहीं...

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  5. क्या बात है। दिल को छू गयी आपकी रचना

    यहाँ भी पधारें
    http://chlachitra.blogspot.in/

    http://cricketluverr.blogspot.com

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  6. माँ और पिता
    दोनो में यहीं
    पर एक बड़ा
    फर्क हो जाता है
    पिता कैसा भी
    हो जाये
    कितना भी
    हो जाये
    माँ के साथ का
    ऊँ कभी भी
    नहीं हो पाता है ।

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  7. दायित्वों की परिक्रमा पूरी करते हुए मुझे लगा
    ब्रह्मा विष्णु महेश
    दुर्गा,सरस्वती,लक्ष्मी,पार्वती ....
    सब मेरे रोम रोम में हैं

    माँ ऐसी ही होती है। सुंदर रचना।

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  8. माँ की महिमा अपरंपार है तभी तो देवता भी जन्म लेने को तरसते है इतिहास गवाह है !
    काश की हर माँ अपने मै को बाजु में रखकर अपने बच्चों को ईश्वर का उपहार मान कर
    उनका लालन पालन करती घर को मंदिर समझती तो घर के एक कोने में मंदिर बनाने की जरुरत ही नहीं पड़ती ! बहुत ही सुन्दर रचना प्रेरक लगी !

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  9. माँ के आगे हर शब्द बौना हो जाता है

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...