कलयुग में सबने सीख दी - "सीता बनो"
यह सुनकर
स्त्री या तो मूक चित्र हो गई
या फिर विरोध किया
"क्यूँ बनूँ सीता ?
राम होकर पुरुष दिखाये !"
....
एक उथलपुथल ही रहा यह सुनने में
!!!
आज इस सीख का गूढ़ रहस्य समझ आया
...
सीता महल में लौट सकती थीं
अपने अधिकारों की माँग कर सकती थीं
पर स्वर्ण आभूषणों को त्याग कर
फूलों के गहने पहन
उन्होंने अपने स्वाभिमान का मान रखा
मातृत्व की गंभीरता लिए
लव-कुश का पालन किया ...
प्रश्नों के विरोध में
उन्होंने जीतेजी
धरती में समाना स्वीकार किया
रानी कहलाने का कोई लोभ उनके भीतर नहीं था !
...
सीता होना आसान नहीं
आर्थिक मोह सेअलग हौवा आसान नहीं
बच्चों के लिए ज़िन्दगी न्योछावर करना आसान नहीं
एक कठिन तपस्या है !
यदि सच में स्वाभिमान है
तो सीता बनो
प्रेम,त्याग,परीक्षा,कर्तव्य
... इनका अनुसरण करो
पर अति का विरोध करो !!
कलियुग में हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सारी सीतायें
राम भी बहुत हैं
त्याग की सूची
बहुत लम्बी है
उसमें से एक
स्वाभिमान भी है ।
बहुत सुन्दर रचना ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 17 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसही कहा रश्मि जी ,राम बनना फिर भी आसान है पर सीता बनना बहुत कठिन है . सीता का चरित्र भारत की नारी का वास्तविक चरित्र है .यही सब मैं सोचती ही रह गई और आपने यह बहुत ही सुन्दर और प्रेरक कविता लिख भी डाली .
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंआज इस गूढ रहस्य का सीख समझ ...
सच्च है की सीता होना बहुत मुश्किल है इस दुनिया में ... सीता जैसा त्याग विरला ही मिलता है युगों में ...
जवाब देंहटाएंआज राम और सीता एक कल्पना भर हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चिंतनशील रचना
बहुत सुन्दर रचना | हम महिलाओं के लिए बहुत अच्छा सन्देश दिया है आपने कि अति का विरोध जरुर करना चाहिए |
जवाब देंहटाएंसटीक और सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसीता ही क्यूँ, एक नारी का जन्म लेना ही बहुत दुर्लभ है. नारी के तमाम रूप पूज्य हैं!
जवाब देंहटाएंस्वाभिमाननी का सत्य है यह ।
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