बक बक बूम बूम
रजाई धुनता हुआ
धुनिया
किसी संगीत निर्देशक से
कम नहीं लगता था !
बर्फ के फाहे जैसी उड़ती
छोटी छोटी रूइयाँ
नाक,कान,आँख,सर पर
पड़ी होती थीं
जितनी हल्की होती रूइयाँ
उतनी बेहतर रजाई !
उसके ऊपर
मारकीन के कपडे का खोल
रजाई की आयु बढ़ जाती थी
एक अलग सी गंध आती थी
उस रजाई से
पूरे परिवार की सुरक्षा होती थी
उसकी गर्माहट में
भारी रजाई के नीचे से
निकलने का
मन नहीं होता था !
बड़े शहरों में होता है धुनिया
लेकिन,
वेलवेट की रजाई
एक से एक दोहर का आकर्षण
कमरे की रुपरेखा बदल गई
... ...
कुछ भी कहो
वो गर्माहट नहीं मिलती
ना वह धुन सुनाई देती है
बक बक बूम बूम ...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 21 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ नया
जवाब देंहटाएंसुनाई देने के लिये
बहुत कुछ पुराना
नहीं सुनना पड़ता है
धुने समय के साथ
बदल रही होती हैं
वही बक बक
बूम बूम होता है
मगर आवाजें कान के
पर्दे फाड़ रही होती हैं ।
सुन्दर ।
सिमट गयी अब वो पुरानी रजाई
जवाब देंहटाएंअब कहाँ वो गर्म रजाई
बहुत सुंदर शब्द चित्र..रजाई ही नहीं बदली बहुत कुछ बदल गया है...
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