23 दिसंबर, 2016

इससे ऊपर कोई परिचय क्या ?





मैं कौन हूँ ?
अपने पापा की बेटी
माँ की बेटी
बहन हूँ
माँ हूँ
और सबसे बड़ी बात
नानी और दादी हूँ
....
इससे अलग
कमल की सीख पापा ने दी
कलम को आशीष माँ से मिला
सूखे पत्ते में जीवन है
ढूँढने का साहस मिला
सबसे छोटी बहन होने से
बड़ों से बहुत कुछ सीखने को मिला
कुछ यूँ :)
"हर अगला कदम पिछले कदम से
खौफ खाता है
कि हर पिछला कदम अगले कदम से बढ़ गया है"
...
माँ होकर
मैंने जीवन को परतों में जाना
अतीत का मर्म भी समझ में आया
बदहवास धुंध में गुम आवाज़ें
मुखर होने लगीं
...
अपनी करवटों से अनभिज्ञ होते
मैंने बच्चों की करवटों से तादात्म्य जोड़ा
दूर होकर भी
उनकी पदचाप सुनती रही
दिल दिमाग की बेचैनी
समझती रही
खुशियों के झरने में भीगती रही  ...

अब तो मैं इनदिनों तोतली भाषा हूँ
अनोखे बोल हूँ
किलकारियों की प्रतिध्वनि हूँ
खिलौनों की पिटारी हूँ
कहानियों की किताबें हूँ
लोरी हूँ
...
इससे ऊपर कोई परिचय क्या ?

9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नहीं इतना होना ही अपने आप में मील का पत्थर है ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-12-2016) को "हार नहीं मानूँगा रार नहीं ठानूँगा" (चर्चा अंक-2567) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. रश्मि प्रभा की कविता सुन्दर है पर एक नारी के लिए रिश्तों में ही खुद की तलाश, खुद की पहचान वाली बात मुझे स्वीकार्य नहीं है. क्या कोई पुरुष बेटा, भाई, पति, पिता या दादा, नाना मात्र की पहचान से खुश रह सकता है?

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  5. बहुत बढियाँ..
    "हर अगला कदम पिछला कदम से खौफ खाता है..."
    उम्दा वक्तव्य..

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  6. आपका परिचय इन शब्दों में कब बांधा जा सका है दीदी! कितना कुछ कहा हुआ, कितना अनकहा. जितना प्रभावित करता है उससे कहीं अधिक उदास कर जाता है!!

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...