"पिंक" एक बहुत अच्छी फ़िल्म !
जो प्रश्न उसमें उठे,
वे झकझोर गए,
लेकिन ... !!
समाज को हटा दो
तथाकथित रिश्तों की बात हटा दो
खुद अपना मन
अपना मस्तिष्क
उस हादसे से नहीं उबरता !!!
कोई देखे
ना देखे
देखते हुए नज़र आते हैं !
परिस्थिति की माँग के अनुसार
उद्देश्य से परे
यदि अपने हाथों हत्या हो गई
तब तो एक चुप दहशत
आस-पास
साथ साथ होती है !!
बहस से
मन नहीं उबरता ...
बहस
दूसरे लोग करते हैं
पक्ष-विपक्ष से बिल्कुल अलग-थलग
हादसे से गुजरी मनःस्थिति
जुड़कर भी
नहीं जुड़ती !
हादसा होना
हादसे पर बात करना
दो अलग स्थिति है !!
सही आकलन ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी की 120वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजो भभोगताहैपीड़ाउसकीहोतीहै... सुधार पर बात करने से ज्यादा जरूरी है कि घटना होने ही नहीं दी जाए
जवाब देंहटाएंसही
जवाब देंहटाएंसत्य ।।।।
जवाब देंहटाएंसत्य ।।।।
जवाब देंहटाएंसही कहा है जिस्पे बीतती है वही जानता है ...
जवाब देंहटाएंसही कहा..
जवाब देंहटाएं"हादसा होना हादसे पर बात करना दो अलग स्थिति है !!"