30 जनवरी, 2017

समय पर घोंसले में लौटना ज़रूरी है





विचारों की अभिव्यक्ति की
अनुभवों की
स्वतंत्रता ज़रूरी है
लेकिन,
बिना पतवार के
नदी पार करने की ज़िद
स्वतंत्रता नहीं
...
मुमकिन है
हवा के अनुकूल बहाव के साथ
किनारा मिल जाए
लेकिन,
यह संभावना भी हो सकती है
किनारा पतवार के साथ भी आसान नहीं होता !
या तो प्रारब्ध किनारे पर लौटना होता है
या नज़दीकी किनारे तक की यात्रा होती है
एक किनारे से
वास्तविक दूसरे किनारे तक
... दुर्लभ ही होता है !

गिरना
गिरकर उठना एक सीख है
अनुभव है
पर सिर्फ गिरने की मंशा
सही नहीं  ...
बरगद की कथा
यूँ ही नहीं लिखी जाती
कहानियों
कविताओं
सूक्तियों से गुजरना होता है
सोना बनने के लिए तपना होता है
चाक पर चढ़ने के लिए
खुद को कुम्हार के हवाले करना होता है
उड़ान कितनी भी ऊँची हो
समय पर घोंसले में लौटना ज़रूरी है
महत्वपूर्ण है
आँधियों का कोई भरोसा नहीं होता
...

6 टिप्‍पणियां:

  1. सूक्तियों से गुजरने जैसा ही है यहाँ ।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुरैया जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. उड़ान कितनी भी ऊँची हो
    समय पर घोंसले में लौटना ज़रूरी है
    महत्वपूर्ण है
    आँधियों का कोई भरोसा नहीं होता
    ..सच समय और मौसम का कोई भरोसा नहीं।
    बहुत सुन्दर रचना
    वसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

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एहसास

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