17 फ़रवरी, 2017

जो है सो है !



मैं सोना चाहती हूँ
लेकिन रात के आने की आहट नहीं होती
घड़ी देखकर जान पाती हूँ
रात हो गई है
बहुत हो गई है
सोना चाहिए
और गुटक लेती हूँ
ब्लड प्रेशर की दवा के संग
सोने की दवा !
... नींद नहीं आती
नसों को दवा की थपकी देनी पड़ती है
थपकी देते देते
घड़ी की सूई
1 तक तो चली ही जाती है
नींद आती है
कब
पता नहीं  ...

सुबह हर करवट पे
देखती हूँ घड़ी
साढ़े छह
ओह, अभी तो बहुत सवेरा है
सोने के लिए काफी वक़्त है
...
साढ़े सात,
ऊँहुँ - इतनी जल्दी नहीं
नींद की दवा भी क्या कहेगी
हाथ-पाँव भी दुःख रहे
सोती हूँ   .......
साढ़े आठ,
अब थोड़ी देर में उठ जाऊँगी
चाय चढ़ाकर
कपडे धोने के लिए डाल दूँगी
...
अरे आज कौन सा दिन है ?
बुधवार या शनिवार तो नहीं न
सूखा कचरा लेने आएगा
 निकाल देती हूँ
...
बहुत भारी काम लगता है
लेकिन काम करना ही है  ...

चाय लेकर बैठती हूँ कुर्सी पर
मोबाइल उठाकर
गुड मॉर्निंग के मेसेजेज भेजती हूँ
फिर  ...
पूरा दिन कब निकल गया,
पता नहीं चलता
रात आ जाती है
मैं दिन के एहसास में ही होती हूँ
अब इसे उम्र कहो
या समय
जो है सो है !


4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-02-2017) को
    "उजड़े चमन को सजा लीजिए" (चर्चा अंक-2595)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. शरीर भी मौसम की तरह एक जैसा नहीं रहता हालांकि जब मौसम अच्छा होता है ऐसा नहीं सोचते हैं हम कि मौसम को भी एक दिन बदलना जाना है

    जवाब देंहटाएं
  3. सुबह अगर चार से पांच बजे के मध्य हो तभी न रात नौ से दस के मध्य घटेगी..

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...