रूठते हुए
वचन माँगते हुए
कैकेई ने सोचा ही नहीं
कि सपनों की तदबीर का रुख बदल जायेगा
दशरथ की मृत्यु होगी
भरत महल छोड़
सरयू किनारे चले जायेंगे
माँ से बात करना बंद कर देंगे ... !
राजमाता होने के ख्वाब
अश्रु में धुल जायेंगे !!
मंथरा की आड़ में छुपी होनी को
बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं समझ पाए
तीर्थों के जल
माँ कौशल्या का विष्णु जाप
राम की विदाई बने !!!
एक हठ के आगे
राम हुए वनवासी
सीता हुई अनुगामिनी
लक्षमण उनकी छाया बने ...
उर्मिला के पाजेब मूक हुए
मांडवी की आँखें सजल हुईं
श्रुतकीर्ति स्तब्ध हुई ...
कौशल्या पत्थर हुई
सुमित्रा निष्प्राण
कैकेई निरुपाय सी
कर न सकी विलाप
इस कारण
और उस कारण
रामायण है इतनी
होनी के आगे
क्या धरती क्या आकाश
क्या जल है क्या अग्नि
हवा भी रुख है बदलती
पाँच तत्वों पर भारी
होनी की चाह के आगे
किसी की न चलती ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"कोविन्द है...गोविन्द नहीं" (चर्चा अंक-2650)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
sundar rachna .........badhai
जवाब देंहटाएंhttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
हमेशा की तरह सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंकैकेयी ने इतना कुछ किया, सहा.. पर उसी के कारण राम, राम बने..
जवाब देंहटाएंरामायण इतनी सी में सब समाहित है ...
जवाब देंहटाएं