जब मैं पहली बार गिरी
तो सुना
कोई बात नहीं ...
होता है,
गिरकर उठकर फिर से चलना होता है !
मैंने बड़ी बड़ी आंखों से
अपने अबोध मन में
इसे स्वीकार किया
गिरी,
उठी ...
और बढ़ती गई !
एक दिन मेरे आगे पहाड़ आ गया
अब ?!?!
तब भी पांव बढ़ाया
डगमगाई
एक नहीं
कई बार गिरी
चोट नहीं
बहुत चोट आई
लेकिन नहीं घबराई
पार कर गई पहाड़ !
जब उतरी
तो पाँव के नीचे धधकते अंगारे थे
चीख निकली
पार करने को हाथ बढ़ाया
... ओह !
जिसने पकड़ा
उसकी पकड़ रावण से भी मजबूत थी
क्योंकि मंदोदरी भी साथ थी
तृण मेरा मन था
मैंने सारे सच सामने रख दिये
और देखनेवाले
सुननेवाले कानून की देवी बन गए
साथ ही ज़ुबान पर भी पट्टी बांध ली
अंततः मैं ही
सामाजिक,पारिवारिक कोर्ट से भाग गई
कैक्टस से भरे रास्तों को
नन्हें नन्हें हाथों की सहायता से साफ किया
तुलसी का पौधा लगाया
साई विभूति से कोना कोना सुवासित किया
रक्षा हेतु त्रिशूल रखा
वक़्त को स्फटिक में देखते हुए
उसे रक्षा मन्त्र से भर दिया
....
इससे परे -
तोड़ने की
आग लगाने की
शह और मात चलती रही
अपशब्दों के कचरे से
मन के सुवासित कमरों में
दुर्गंध भरने लगी
और साफ करते करते
सच बोलते बोलते
अकस्मात बिलखकर रोते हुए
मैंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली
होठों को सख्ती से सी दिया
..
करने लगी मनन
नींद की दवा को भी बेअसर बनाकर
जागने लगी
और जाना
तर्क, कुतर्क से
सत्य,असत्य से
तप से ... जो भी निष्कर्ष निकला है
वह है शून्य
!!!
यदि शून्य में तुमने जीना सीख लिया
तो शून्य से बेहतर
कोई सहयात्री नहीं
कोई सच नहीं
कोई धर्म नहीं
कोई न्याय नहीं
कोई सुकून नहीं
...
वाह।
जवाब देंहटाएंशून्य में जीना सीखते सीखते शून्य में विलीन हो जायें आओ शून्य हो जायें।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-01-2018) को "कुहरा चारों ओर" (चर्चा अंक-2846) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धा-सुमन गुदड़ी के लाल को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंआत्मबोध करता है शून्य
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
शून्य ही पूर्ण है और पूर्ण ही शून्य...
जवाब देंहटाएंबहुत हि गहन रचना
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