गुल्लक को हिलाते हुए
चन्द सिक्के खनकते थे
उनको गुल्लक के मुंह से निकालने की
जो मशक्कत होती थी
और जो स्वाद अपने मुंह में आता था
उसकी बात ही और थी
वह रईसी ही कुछ और थी !
....
अब 50 पैसे की क्या बात करें
5, 10 रुपये के सिक्के
भिखारियों को देने होते हैं
!!!
गुल्लक में अब रुपए डाले जाते हैं
उसमें भी
50, 100 में मज़ा नहीं आता
जितना भी निकले कम ही लगता है
अब यह बात भी बेमानी हो गई है
कि बूंद बूंद से घट भरत है
बेचारा घट !
या तो खाली का खाली रहता है
या फिर सांस लेने को उज्बुजाता है
बेचारा गुल्लक !
पहले कितना हसीन हुआ करता था
!!!
गुल्लक जिन्दगी हो गया
जवाब देंहटाएंजिन्दगी गुल्लक हो गयी
खनक भी एक सी हो गयी वाह
behtarin
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंगुल्लक अब बेमजा हो गया. हम ढूंढ कर खरीदते थे बढ़िया गुल्लक.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमन खुश गया पढ़कर
बहुत बहुत बधाई
सच्ची दी ,बचपन के दिन याद दिला दिए आपकी इस गुल्ल्क ने ..... :)
जवाब देंहटाएंगुल्लक की खनक कहीं गुम हो गई है .... सच्ची बात
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंगुल्लक और न जाने कितनी चीजें आज आप्रासंगिक हो गयी हैं..समय बदल रहा है और जीवन मूल्य भी..
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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