14 अगस्त, 2018

अकेलापन ही सही, इस खुद्दारी में अपना अर्थ नज़र आया ।



प्रेम एक ही बार होता है
या कई बार,
किताबी या फिल्मी बातों से इतर,
मैंने,
हाँ मैंने,
एक बार नहीं,
दो तीन बार प्यार किया ...
क्यूँ का क्या जवाब ?
और क्यूँ ?
किसे देना है जवाब ?
कौन व्याख्या करने की,
तराज़ू पर तौलने की सामर्थ्य रखता है !
यह मेरा मन जानता है,
और यह मन की स्वीकृति है
कि मैंने प्यार किया ।
जब भी किया,
सामनेवाला उसका सही पात्र नहीं निकला,
कहा जा सकता है,
मैं सही पात्र नहीं निकली ।
उसे शरीर की तलाश थी,
मुझे मन की !
यकीनन,
स्पर्श प्रेम का माध्यम है,
पर,
जहाँ मन नहीं,
वहाँ शरीर छल है,
न दर्द ,न ख़ुशी
कुछ भी नहीं ।
...
फिर, मैंने मन की तलाश से ख़ुद को विमुख कर लिया,
मेरे एकाकी क्षणों में ,
मैंने एक बार नहीं,
कई बार ख़ुद की व्याख्या की,
और जाना,
मेरा प्रेम कभी भी स्वार्थी नहीं हुआ,
यदि स्वार्थ प्रबल होता,
तो मैं सिर्फ शरीर हो सकती थी,
लेकिन मुझे मन होना रास आया,
अकेलापन ही सही,
इस खुद्दारी में अपना अर्थ नज़र आया ।



3 टिप्‍पणियां:

  1. अकेलापन भी खुद्दारी की निशानी है...ये मेरे अपने विचार है।
    लेख की मुबारक हो������

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  2. स्वीकारना ही साधुवाद है।
    मगर क्षमा करें ।
    ये अस्थिर मन कब किस का हुआ,इससे तो शरीर ही अच्छा जड़ रहकर कुछ साथ तो रहता । मन! तो पल भर में कहां-कहां उड़ जाता कोई पकड़ न पाया। ....'अशु'

    जवाब देंहटाएं

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