एक था बालमुकुंद
परियों की कहानी
सिंड्रेला के जादुई जूत्ते
आलू के कारनामे सुनकर
आखिर में अपनी दोनों बाहें
बेफिक्री से ऊपर उठाकर कहता
"सब झूठ है"
सुनकर हँसी आ जाती ....
झूठ से ही तो कल्पनायें निकलती हैं
सच की ईंट रखी जाती है
बच्चे इन्हीं कहानियों से
अपनी नई कहानी के रास्ते खोलते हैं
लेकिन बालमुकुंद तठस्थ था
झूठ है, फिर क्या मानना
क्या सोचना !
जज़्बा तैयार करना बहुत कठिन है
जब ना मानने के पुख्ता कारण हो !
क्योंकि हम जो लकीर खींचते हैं
वह आगे ही जाएगी
एक ही परिणाम होगा
यह तय नहीं है
तभी तो बचपन से
गाजर से
शकरकंद से
हम किला बनाते हैं
तोप की रचना करते हैं।
और दुश्मनों को मार गिराते हैं !
ये नन्हे नन्हे खेल
बड़े बड़े कारनामे
झूठ होकर भी
बहुत सच होते है बालमुकुंद
कुछ कर दिखाने का प्रतीक होते हैं ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-08-2018) को "दुआ करें या दवा करें" (चर्चा अंक-3066) (चर्चा अंक-3059) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र तय करने वाले सर्वप्रिय अटल जी को सादर नमन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंEn Son Çıkan Perde Modelleri
जवाब देंहटाएंsms onay
mobil ödeme bozdurma
nft nasıl alınır
Ankara Evden Eve Nakliyat
trafik sigortası
DEDEKTOR
KURMA.WEBSİTE
aşk kitapları
özel ambulans
जवाब देंहटाएंen son çıkan perde modelleri
en son çıkan perde modelleri
nft nasıl alınır
lisans satın al
uc satın al
yurtdışı kargo
minecraft premium