02 सितंबर, 2018

प्रभु, मैं याचक हूँ, माँगती रहूँगी ...




बिना फूल,
अगरबत्ती,
चढ़ावे के,
मैं तुम्हें घर में ही
झाँक झाँक कर देखती रही,
टॉफी चाहिए हो,
कोई जादू देखना हो,
कह दिया तुमसे ...
कुछ लोगों ने कहा,
यह पूजा करने का ढंग है भला !
ढंग ?
कहा,
क्या लालची की तरह हर वक़्त माँगती हो,
दूसरे की लिखी पंक्तियों को हिकारत से सुनाया,
बिन माँगे मोती ..."
 प्रभु,
मैंने देखा उनको कीमती वस्त्र चढ़ाते,
...
कम उम्र थी मेरी
तब बड़े यत्न से मैंने भी कुछ कुछ लिया,
लेकिन बड़ा अटपटा लगा ।
तुम दोगे या मैं !!
तुम तो जानते ही हो
कि एक सुबह से सोने तक
मैं निरंतर तुमसे माँगती हूँ,
एक अलादीन का चिराग दे दो,
यह परिणाम सुंदर होना ही है,
लक्ष्मी स्वयं आ जायें मेरे पास,
बजरंगबली संजीवनी रख दें मेरी मुट्ठी में,
सारे भगवान मेरे सिरहाने रखे सपनों को पूरा कर दें  ...
कृष्ण एक बार माँ यशोदा की तरह मुझे ब्रह्माण्ड दिखा दें,
मेरे आशीष में. तुम्हारे आशीष सी अद्भुत ताकत हो।

प्रभु,
मैं याचक हूँ,
माँगती रहूँगी  ...
तुम दाता हो,
देते रहना।
तुमको दे सकूँ अपनी निष्ठा,
पुकारती रहूँ प्रतिपल,
यह सामर्थ्य देते रहना,
आते-जाते जब भी तुमको देखूँ,
झट से आशीष दे देना,
हर हाल में मेरे साथ रहना ... 

12 टिप्‍पणियां:

  1. हम सब याचक हैं और वो देता भी रहता है सभी को पर सब के पास कहाँ होती है निष्ठा उसे देने के लिये। बहुत सुन्दर।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-09-2018) को "योगिराज का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3083) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    श्री कृष्ण जन्मोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 04/09/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  4. हर हाल में वह साथ ही रहता है..उसके पास इसके सिवा कोई चारा ही नहीं है..वही तो है जो अपने चाहने वालों और भक्तों के हाथ बिक जाता है..

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  5. दाता वही एक है इंसान को तो भरम रहता है उसने कमाया, उसका है, उसने किया।
    बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति

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  6. कृष्णा तो हैं उन सब के साथ जो चाहते हैं इन्हें ...
    इनकी माया से कौन बच सका ...
    बहुत सुंदर याचना ... जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ...

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  7. किसी एक परिवेश प्रभावित और घिरी रचना.
    लेखन सुंदर.

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  8. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन प्रेम-संगीत मिल के सजाएँ प्रिये - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  9. बहुत सुन्दर रश्मि प्रभा जी. बहुत आशावादी कविता. पर हमेशा दरवाज़ा खुला रखने पर सिर्फ़ लक्ष्मी जी ही नहीं, कभी-कभी चोर भी घर में प्रविष्ट हो जाते हैं.

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  10. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। ....

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...