11 अगस्त, 2020

क्या खोया,क्या पाया !

 


(लिखती तो मैं ही गई हूँ, पर लिखवाया सम्भवतः श्री कृष्ण ने है )


भूख लगी थी,

मगर रोऊं ...

उससे पहले बाबा ने टोकरी उठा ली !

घनघोर अंधेरा,

मूसलाधार बारिश,

तूफान,

और उफनती यमुना ...

मैं शिशु से नारायण बन गया

घूंट घूंट पीता गया बारिश की बूंदों को,

और कृष्णावतार का दूसरा चमत्कार हुआ

अपनी तरंगों से बादलों को छूती यमुना

सहसा शांत हो गईं

मुझे देखा,

श्यामा हुई,

गोकुल को जाने की राह बन गई

मैं जा लगा

मइया यशोदा के उर से,

मेरी भूख क्या मिटी

मैं गोपाल, कन्हैया, कान्हा ...

जाने कितने नामों से सज गया

उत्सव का नाद मेरे कानों में गूंजा

झूल रहे थे वंदनवार,

नंद बाबा के द्वार

मां की गोद क्या मिली

मुझे मेरा खोया वह ब्रह्मांड मिल गया

जिसे छोड़ आया था मैं

या यों कहूं

जो मुझसे छूट गया था

मथुरा के कारागृह में ...

गोकुल में मिला तभी,

हां, हां तभी

मैं सुरक्षित रहा

पूतना के आगे

कर सका कालिया मर्दन

उठा सका गोवर्धन ......

तो ईश्वर कौन था ?

मैं ?

या सात नवजात बच्चों की हत्या देखकर भी

मुझे जन्म देनेवाली मां ?

संतान को जीवित रखने का साहस जुटाकर

मुझे गोकुल ले जानेवाले पिता वासुदेव ?

पुत्री का दान देकर मुझे स्वीकार करनेवाले

नंद बाबा ?

या अपने पयपान से

मेरी बुभुक्षा को तृप्त कर

मुझे संजीवित करनेवाली

मां यशोदा ?

यह कौन तय करेगा

क्योंकि मैं स्वयं अनभिज्ञ हूँ ...

इस गहन ज्ञानागार में मैंने जाना ...

तुम क्या लेकर आए जिसे खो दोगे ?

तुम्हारा जब कुछ था ही नहीं

तो किसके न होने के दुख से रोते हो ?

मिट्टी से भरे मेरे मुख में

मां ने ब्रह्मांड देखा था

या कर्तव्यों का ऋण चुकाते हुए,

तिल तिलकर मेरे मरने का सत्य ...

किसी ग्रंथकार या लेखाकार को नहीं मालूम

यह सारा कुछ तो

मेरे और मेरी जीवनदायिनी के मध्य घटित

हर छोटे - बड़े संदर्भों की कथा है

जिसे वह जानती है

या फिर मुझे पता है.....

मेरे मथुरा प्रस्थान पर

विस्मृति का स्वांग ओढ़ना

उसकी वैसी ही विवशता थी

जैसे गोकुल का चोर,

ब्रज का किशोर

और फिर,

द्वारकाधीश बनना मेरी विवशता रही ...

मैं !

जिसे सबने अवतार माना,

अबतक नहीं जान पाया

कि मैंने क्या खोया, क्या पाया !

पर एक सत्य है

जो मुझे प्रिय है ...

गोकुल, यमुना, वृंदावन की तरह

मां की फटकार और

मुंह से लगे चुगलखोर माखन की तरह

पीताम्बर, मोरपंख और गोधन की तरह

बरसाने, राधा, बंसी और मधुबन की तरह

जिसके दर्शन

हर बरस होते हैं मुझे

भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, रोहिणी नक्षत्र में पड़ी

अष्टमी तिथि की अर्धरात्रि को

चहुंओर बिखरे

अपने जन्मोत्सव के उल्लास में,

ममता से भरी खीर में,

प्रेम की दहीहांडी में,

गलियों के बीच मचे हुड़दंग में...

उस रात के हर प्रहर में

मैं याद रखकर भी भूल जाता हूं

कि सदियों पूर्व क्या हुआ था

इस रात को ...

और सुनता हूं

मुग्ध होकर,

तुम्हारे घर में गूंजते

अपने लिए गाए जा रहे

क्षीरसागर में डूबे

सोहर के मीठे, सरल शब्दों को

और अपने जन्म की खुशी को जीता हूं।

और अपने जन्म की खुशी को जी भर के पीता हूं,

जी भर के जीता हूं

 ...कि यह रात!फिर आएगी 

मगरपूरे एक बरस के बाद।

12 टिप्‍पणियां:

  1. जन्माष्टमी की शुभकामनाएं। सुन्दर सृजन ।

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  2. वाह!!!
    सम्भवतः ही नहीं यकीनन ....
    ऐसी असाधारण रचना प्रभु कृपा से ही लिखी जाती है
    नमन आपको और नमन आपकी लेखनी को।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 12 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जय श्री कृष्णा जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
    सुन्दर रचना

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति । श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर प्रस्तुति । आपको श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  8. कान्हा के मन को माँ ही पढ़ सकती हैं .... अद्भुत भाव
    जय गोपाल कृष्ण की

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  9. आप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।

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