मैं राधा
माता कीर्ति
पिता वृषभानु की बेटी !
कृष्ण की आदिशक्ति
नंदगाँव और बरसाने की प्रेमरेखा !
मैं कृष्ण की आराधिका थी
या उनकी बाँसुरी
यमुना का किनारा
या कदम्ब की डाली
गोकुल की पूरी धरती
या माखन
उनके मुख में चमकता ब्रह्माण्ड
या उनको बाँधी गई रस्सी
या !!! ...
जो भी मान लो
मैं थी - तो कृष्ण थे
कृष्ण थे - तो मैं !
०००
जिस दिन कृष्ण ने जन्म लिया
उस दिन मैं अमावस्या थी
कारागृह के द्वार मैंने ही खोले थे
टोकरी की एक एक बुनावट में मैं थी
मूसलाधार बारिश की बूंदों में मैं थी
यमुना की उठती हिलोरों में मैं थी
पाँव छूकर मैंने ही अपने होने का हस्ताक्षर किया था ...
बरसाने में जन्म लेकर मैं
गोकुल की प्रतीक्षित देहरी बन गई !
माँ यशोदा के आँगन में कृष्ण के जो नन्हें पाँव मचले थे
उसके मासूम निशानों में मैं तिरोहित हो गई ....
रास की इस पहेली को समझ सका है कोई !?
०००
सिर्फ ज्ञान ... मात्र एक भ्रम है
जो मान लेता है खुद को सर्वस्व !
इसीलिए कृष्ण ने उद्धव को अपने ज्ञान का प्रतिरूप बनाकर
अहम से परे
मोह में स्वयं को उलझाकर
हर रिश्ते के मध्य प्रेम क्या है
यह समझने के लिए भेजा
क्योंकि, गीता सुनाने के लिए
उसे समझने के लिए
पहले प्रेम और रिश्तों को जीना होता है
पाने से कहीं अधिक खोना पड़ता है !!
गोपिकाओं के निकट
उद्धव के शरीर में
दरअसल कृष्ण ने स्वयं को प्रस्तुत किया
जहाँ प्रत्येक गोपिका में मैं समाहित थी
कृष्ण ज्ञान बनकर प्रज्ज्वलित थे
मैं प्रेम की मूक आँखों से बरस रही थी
तभी तो गोकुल में कृष्ण का एक रूप ठिठक गया
रास के इस रहस्य को समझ सका है कोई !?
०००
मिट्टी का स्वर्णिम शरीर थे वासुदेव,
देवकी
नंदबाबा,
यशोदा
रुक्मिणी,
सत्यभामा
बलराम,
सुदामा,
रसखान,
सूरदास
मीरा ....
मैं थी मिट्टी
जिसमें अपनी आँखों का पानी मिलाकर
कृष्ण ने मुझे बनाया - राधा !!!
साधारण स्तर पर
हर किसी ने सोचा कृष्ण ने मुझे छोड़ दिया ...
यदि यही बाह्य सत्य था
तो देवकी और मथुरा के लिए
वासुदेव ने
कृष्ण को तूफानों के मध्य जो गोकुल पहुँचाया वह क्या था ?
माँ यशोदा
पूरे गोकुल को छोड़कर
अधर्म के नाश के लिए
कृष्ण जो मथुरा पहुँचे
वह क्या उनका स्वार्थ था ?
यदि साधारण
या असाधारण रूप से ऐसा नहीं होता तब ???
तब क्या होता ?
क्या होना चाहिए था ?
रास के इस त्याग को समझ सका है कोई !?
०००
कुरुक्षेत्र के मैदान में
जिस विद्युत गति से रथ को दौड़ाया कृष्ण ने
उसकी रास मैं थी
कृष्ण के अकेलेपन की सम्पूर्ण वेदना मैं थी
उनके विराट स्वरुप का चमत्कृत रूप मैं थी
उनके और द्रौपदी के मध्य चीर मैं थी
अनहोनी अपनी जगह थी
उसकी सकारात्मक होनी मैं थी
इस अद्भुत रास को समझ सका है कोई !?
०००
मैं बड़ी भी हूँ
छोटी भी हूँ
ज्ञानी भी हूँ
अज्ञानी भी मैं हूँ
शरीर कृष्ण का
और आत्मा हूँ राधा की
कृष्ण हैं मेरे रोम रोम में
तो कृष्ण में लय राधा भी है
तुम सबको किस बात का विस्मय है ?!
तुम नहीं हो सकते कृष्ण
कभी नहीं मिल सकती कोई राधा
जिस रास का अर्थ तुम समझ ना सके
वहाँ कैसा रिश्ता
कौन सा त्याग
और कैसी बाधा !
सोचो खुद में
और कहो जरा
इस रास को समझ सका है कोई !?
०००
हमारा एकांत
हमारा अध्यात्म था
हमारा रास
जीवन का सार था
अतिरिक्त कल्पना तो मानव मन की उत्पत्ति है !
विवाह में सिर्फ सात वचन नहीं होते
जीवन के समस्त मंत्र इसकी समिधा होते हैं
जहाँ सिर्फ दो व्यक्ति नहीं मिलते
पूरा संसार एक होता है
राधेकृष्ण संसार की एकता का प्रतीक हैं ...
वसुधैवकुटुंबकम "रास" है
गहरे उतरो
ज्ञान और प्रेम के
अथाह सिंधु में
युगों से सीप में
प्रतीक्षारत पड़ा है
प्रीत की कोख से जन्मा वह मोती
उसे निकालो
और पा लो अर्थ
राधेकृष्ण का
हरे कृष्णा, हरे रामा का।
ज्ञान, आध्यात्म और प्रेम सब एक में समाहित वह है कृष्ण, वही है राधा 💐
जवाब देंहटाएंराधा और कृष्ण, कृष्ण और राधा .. दो देहें एक आत्मा, आपके शब्दों ने उसे पकड़ा है जो अशरीरी है, जो छिपा है पर वही तो प्रकट करने योग्य है
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुन्दर।
जवाब देंहटाएंदूसरे लोगों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी किया करो।
आपके यहाँ भी कमेंट अधिक आयेंगे।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमैं बड़ी भी हूँ
जवाब देंहटाएंछोटी भी हूँ
ज्ञानी भी हूँ
अज्ञानी भी मैं हूँ
शरीर कृष्ण का
और आत्मा हूँ राधा की
कृष्ण हैं मेरे रोम रोम में
तो कृष्ण में लय राधा भी है
तुम सबको किस बात का विस्मय है ?!
तुम नहीं हो सकते कृष्ण
कभी नहीं मिल सकती कोई राधा
जिस रास का अर्थ तुम समझ ना सके
वहाँ कैसा रिश्ता
कौन सा त्याग
और कैसी बाधा !
सोचो खुद में
और कहो जरा
इस रास को समझ सका है कोई !? इस कविता की समीक्षा करना मुश्किल है
रश्मि जी, मैंने इस कविता को बुकमार्क कर लिया है ...बहुत अंतर तक समा गई है राधा आपकी इस अभिव्यक्ति से
कृष्ण हैं मेरे रोम रोम में
जवाब देंहटाएंतो कृष्ण में लय राधा भी है
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन