02 सितंबर, 2020

#कुछचेहरे




#कुछचेहरे



अभिनय की दुनिया हो,या लेखन की दुनिया _ कुछ चेहरे किताब के पन्ने लगे, जिनको देखते हुए उनको पढ़ने सा एहसास हुआ । गौरैया सी मासूमियत, हिरणी सी चंचलता, राहुल की माँ यशोधरा सी तटस्थता, हवाओं की तरह मंज़िल को पाने का प्रयास, घर का पूजा घर, धुला हुआ आँगन, धधकता चूल्हा, आग की तेज लपटें, चाभी का गुच्छा, दरवाज़े की सांकल, बेचैनी में भी एक सुकून भरी गुनगुनाहट ...। परिचय इनका अपनी जगह है, इनकी पहचान है - मेरी दृष्टि का एक हस्ताक्षर ये तस्वीरें, जिनको देखते, संजोते,प्रस्तुत करते हुए एक वक्त,जिसे हम गुजरा हुआ कहते हैं, मेरे साथ गोलंबर पर बैठ जाता है, या किसी अमरूद के पेड़ के नीचे या किसी मिट्टी के दालान में ...










 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. बहुत ही मनमोहक संकलन और जानकारियाँ ...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...