सुना तुमने ?
गणपति ने महीनों से मोदक को हाथ नहीं लगाया है
माँ सरस्वती ने वीणा के तार झंकृत नहीं किये
भोग से विमुख हर देवी देवता
शिव का त्रिनेत्र बन
माँ दुर्गा की हुंकार बन
दसों दिशाओं में विचर रहे ...
फिर नीलकंठ बनने को तत्पर शिव
देव दानव के मध्य
एक मंथन देख रहे
विष निकलता जा रहा है
शिव नीले पड़ते जा रहे हैं
माँ पार्वती ने अपनी हथेलियों से
विष का प्रकोप रोक रखा है
मनुष्य की गलती की सज़ा
मनुष्य भोग रहा है
अभिभावक की तरह अश्रुओं को रोक
देवी देवता अपने कर्तव्य को पूरा कर रहे
रात के सन्नाटे में
शमशान के निकट
उनकी सिसकियां ...
सुनी तुमने ???
सच है देवी-देवता भी मानवों की पीड़ा से अछूते कैसे रह सकते हैं, वे जो प्रेम और ममता के सागर हैं, अति भावपूर्ण सृजन !
जवाब देंहटाएंअभिभावक की तरह अश्रुओं को रोक
जवाब देंहटाएंदेवी देवता अपने कर्तव्य को पूरा कर रहे .
बस मन में आस्था बानी रहे . वरना तो हर और अँधेरा ही फैला है .
बहुत ही गहरी बात कही है दीदी! परमपिता है जब वो, तो अपनी संतान की अकाल मृत्यु पर, चाहे वह उसी की सुनिश्चित की हुई क्यों न हो, रोएगा कैसे नहीं!! कविता की व्यथा हर पाठक के हृदय को कचोटती है !
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगवार(१७-०८-२०२१) को
'मेरी भावनायें...'( चर्चा अंक -४१५९ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत अच्छी और गहन रचना...।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा एक लम्बे समयान्तराल के बाद आपका चिट्ठा सूची मैं फिर दिखा|
जवाब देंहटाएंवाह जनाब वाह !!अंदाज ए बयाँ बेहद खूबसूरत । मेरी जानिब से बेशुमार दाद आओके लिए आदरणीय👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंहरएक मन यही सोच रहा, यही दशा है सबकी। विचलित कर रहे है घटनाक्रम। कोई इसे प्रकृति का न्याय कह रहा है तो कोई युग परिवर्तन का दौर.... ना जाने ईश्वर रूपी माँ ने अपनी संतानों की दुर्दशा देखकर भी कैसे मन कठोर कर रखा है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमानवता को तड़पता देख ईश्वर भी दुखी हो रहे है पर क्या कर सकते हैं हम अपनी गलतियों की सजा भुगत रहे है।
जवाब देंहटाएंमार्मिक सृजन ,सादर नमन रश्मि जी
अद्भुत!!
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी।