तो बड़ी घबराहट
अकबकाहट होती है
लेकिन उस बेचैन स्थिति में भी
सारथी बने हरि साथ होते हैं
मन के रूप में ।
मन कहता है,
लौट यहां से
अभी इसी वक्त
स्पष्टीकरण की ज़रूरत नहीं
पता तो है तुझे
कि बात जब स्पष्टीकरण पर आ जाए
तो मानो,तुम गलत हो चुके हो
कुछ भी कहना जब समय की मांग नहीं,
तो बेहतर है एक लंबी ख़ामोशी
और ख़ामोशी की प्रतिध्वनि में
अपने 'अति' का मूल्यांकन !
. . .
मूल्यांकन करो,
तीव्रता से महसूस करो उन पलों को,
जहां से तुम्हें नियत समय पर हट जाना चाहिए था
न कि उसकी अवधि बढ़ाकर
रिश्तों का हवाला देना था ।
रिश्तों का कोई हवाला नहीं होता
गर हो तो बेहतर है
इस हाले की घूंट से दूर
उस मधुशाला में जाओ
जहां तुम खुद को मिल सको
खुद को पा सको ।
ऐसी मधुशाला में जाओ जहां खुद को पा सको । कितनी सार्थक बात कही ।
जवाब देंहटाएंसच है कि स्पष्टीकरण क्यों देना ? कोई मतलब नहीं होता उस सबका ।
बात जब स्पष्टीकरण पर आ जाए
जवाब देंहटाएंतो मानो,तुम गलत हो चुके हो
कुछ भी कहना जब समय की मांग नहीं,
सटीक
सादर नमन
खुद से मिल सको| सुन्दर |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-8-21) को "कटु यथार्थ"(चर्चा अंक 4166) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा है आपने, जब कोई देखकर नि:शब्द को नहीं सुन पाता तो शब्दों को कहाँ सुन पायेगा, बाहर हो या भीतर हर सवाल का जवाब मौन में ही मिलता है
जवाब देंहटाएंसारगर्भित कथ्य।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
नीयत समय पर हट जाना चाहिए था। मुश्किल तो होता है।
जवाब देंहटाएंसच्चाई यही है। कटु सत्य!--ब्रजेंद्रनाथ