जो रिश्ता रिश्तों के नाम पर
एक धारदार चाकू रहा,
उसे समाज के नाम पर
रिश्तों का हवाला देकर खून बहाने का हक दिया जाए
अपशब्दों को भुलाकर क्षमा किया जाए,
कुरुक्षेत्र की अग्नि में घी डाला जाए _ क्यों ?
यह कैसी अच्छाई है !!!
क्या शकुनी बदल जाएगा
धृतराष्ट्र की महत्त्वाकांक्षा बदल जाएगी
गांधारी अपनी आँखों की पट्टी खोल देंगी
फिर द्युत क्रीड़ा नहीं होगी
द्रौपदी के चीरहरण के मायने बदल जाएंगे
अभिमन्यु जीवित हो जाएगा ...
इस बेतुकी सीख का अर्थ क्या है ?
अगर सम्मान नहीं है एक दूसरे के लिए
आँख उठाकर देखने की भी इच्छा नहीं
तो किसी तीसरे की यह सीख
कि भूल जाइए
क्षमा कर दीजिए
आप ही बड़प्पन निभा दीजिए... आग में घी ही है !
सूक्ति बोलनेवाले को अपना वर्चस्व दिखाना है
वरना सोचनेवाली बात है
कि कोई महाभारत को भुलाकर
चलने की सलाह कैसे दे सकता है !
यूँ भी किसी रिश्ते की बुनियाद समझ है,
स्नेह है
सम्मान है ...
क्षमा के लिए,
कुछ भूलकर चलने के लिए,
-इसी बुनियाद की जरूरत है !
रश्मि प्रभा
महाभारत कभी खत्म नहीं होना है | सुन्दर |
जवाब देंहटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंक्षमा करना आसान है अगर पात्र कोई और.हो शायद...।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंतो किसी तीसरे की यह सीख
जवाब देंहटाएंकि भूल जाइए
क्षमा कर दीजिए
आप ही बड़प्पन निभा दीजिए... आग में घी ही है !
बिल्कुल सही कहा, ये आग में घी ही है । ऐसा बड़प्पन निभाने वाला तंज से भरा होता है जो बार बार महाभारत की शुरुआत करता है ।
क्षमा करने की सीख आहत मन के जख्मों पर मरहम नहीं लगा सकती और बदला लेने की भावना मानवता के प्रतिकूल है .
जवाब देंहटाएंइन दोनों विचारों का शाश्वत संघर्ष ही महाभारत है .
रिश्तों का विश्लेषण करती अत्यंत गहन रचना . ..
बहुत सुंदर।
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