पैसा बड़ा घृणित होता है
पैसे की भाषा दिल की भाषा से
पैनी और लज़ीज़ है
हर दर्द पैसे पर आ कर
मटमैला हो जाता है
सारे संबंध ठंडे हो जाते हैं
पैसों की गर्मी में !!!
क्या छोटा ,क्या बड़ा ,क्या तबका ......
सब पैसों से है
गीता का सार भी सुनना सुनाना
पैसों की खनक पर ,
बाह्य चकाचौंध पर निर्भर है
जो सच में सार को जाना
तो विरक्ति ......
बहुत सच्ची और चुभती हुई पंक्तियाँ . बहुत खूब . जितने सुंदर शब्द उतने ही सुंदर भाव. बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
पैसो की भाषा पैनी और लज़ीज़ होती है, पर दिल की भाषा से बड़ी नहीं ...! संबध जो पैसो की नींव पर बने वो खोखले होते है, वहा सिर्फ दिखावा होता है, अंतरंगता नहीं...Ilu..!
जवाब देंहटाएंjab ki dil ye jaanta hai ki paisa chhadik hai....fir bhi....
जवाब देंहटाएंsundar
आज लोग पैसों से ही सम्बन्ध जोडते हैं ... सार्थक चिंतन
जवाब देंहटाएंगीता का सार भी सुनना सुनाना
जवाब देंहटाएंपैसों की खनक पर ,
सच है विरक्ति तो आनी ही है
विरक्ति ही ज्ञान चक्षु है.गूढ़ रचना.
जवाब देंहटाएंकोई कहता है विरक्ति के लिए भी पहले पैसा चाहिए ...सोचने को मजबूर करती पंक्तियाँ
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