14 मार्च, 2009

मैं और आत्मा !


कई बार ......
मैं अलग होती हूँ,
मेरी आत्मा अलग होती है,
- हम अजनबी की तरह मिलते हैं !
मेरी आंखों से अविरल आंसू बहते हैं,
और आत्मा -
हिकारत से मुझे देखती है !
.......दरअसल, उसने कई बार मुझे उठाया है,
और मैं !
हर बार,
उद्विग्नता के घर जा बैठती हूँ !
आत्मा ने अक्सर
मेरे लड़खडाते क़दमों को
हौसले की स्थिरता दी है,
परमात्मा का रूप दिखाया है.....
पर मैं,
अक्सर अपनी कमज़ोर सोच लिए
उससे परे खड़ी हो जाती हूँ !
मुझे पता है ,
बिना उसके
मेरा कोई अस्तित्व नहीं ....

फिर भी-
अपनी नियति का बोझ
उस पर डाल देती हूँ.....
श्वेत पंखों के बावजूद
आत्मा अपनी उड़ान रोक
मेरे हौसले बुलंद करती है
और हिकारत से देखते हुए ही सही
मुझमें समाहित हो
मुझे एक मकसद दे जाती है..............

27 टिप्‍पणियां:

  1. kya kahu maun bhar diya is rachna ne mere andar..bhaut adbhut likha hai aatma ka andar samahit hona...
    kya kahun..bas sir jukati hun

    sakhi with lots of love

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  2. यह तो अस्तित्ववाद का नया भारतीय संस्करण गढ़ा जा रहा है.

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  3. आत्मा अपनी उडान रोक अपने हौसल ेबुलंद करती है। बहुत ही साथ्ज्र्ञक अभिव्क्ति बधाई
    अखिलेश शुक्ल

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  4. फिर भी-
    अपनी नियति का बोझ
    उस पर डाल देती हूँ.....
    श्वेत पंखों के बावजूद
    आत्मा अपनी उड़ान रोक
    मेरे हौसले बुलंद करती है
    bilkul sahi,aatma hi hame jeene ka sahi arth batati hai,sunder rachana,bahut pasand ayi.dil se.

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  5. attma ek maksad de jaati hai....bahut khoob.. jab bhi soch kamjor padati hai to hausala deti hai khud ki hi aatma...sundar prastuti

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  6. आत्मा के विपरीत जब हम कुछ करते हैं तो उस पल इंसान नहीं रह जाते

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  7. बहुत ही प्यारी और दिल को छू जाने वाली कविता , बधाई !

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  8. भावपूर्ण लिखा है आपने बहुत सी बाते हम कई बार यूँ समझ पाते हैं तभी जिन्दगी में आगे बढ़ते हैं

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  9. अच्छी कविता, आपकी आत्मा यू ही चिर आयु तक आपका मार्गदर्शन करती रहें और आपको जीवन के मायने और आगे बढ़ने की सही दिशा मिलती रहें |

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  10. आपकी आत्मा अजनबी नहीं - परमात्मा है ...
    इसी लिए तो " तुज में रब दीखता है " !
    ....Luvssss.

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  11. ek shaandaar v jaandaar kavita ,

    ssarvbhoumik kavita,
    sarvmaanya kavta ,
    sarvshreshth kavita ,

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  12. रशिम जी एक बहुत ही सुंदर रचना,
    धन्यवाद

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  13. बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आप ने...ऐसा होता है शायद हर किसी के साथ जब रूह जिस्म से जुदा होना चाहती है मगर ..ज़मीने हकीक़तें उसे बांधे रखती हैं या वह खुद बंधी रह जाती है...
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति लगी!बधाई!

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  14. आदरणीय रश्मि जी ,
    आत्मा, शरीर और मन तीनों ही एक दूसरे के पूरक हैं .मै यानि मन तो हर समय
    आत्मा की आवाज सुनता है .आत्मा ही तो उसे हर समय रास्ता दिखती है .......अपने तीनो को लेकर एक अच्छी कविता लिखी है .बधाई .
    पूनम

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  15. रश्मि जी ,
    आपकी कविता में काफी आध्यात्मिकता का पुट है ...लेकिन यही हमारे जीवन की सच्चाई भी है .अच्छी कविता .
    हेमंत कुमार

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  16. अवचेतन की बातों को यूं इतनी सहजता से शब्दों में उकेर देना मैम, आप ही कर सकती हो...
    मनभावन

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  17. कितनी कुशलता से आपने मन के भाव को शब्दों से सजाया है...अद्भुत रचना है ये आपकी...
    नीरज

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  18. कई बार ..
    मैं अलग होती हूँ
    मेरी आत्मा अलग होती है
    हम अजनबी की तरह मिलते हैं
    हमरी आँखों से अविरल आँसू बहते है
    और आत्मा हिकारत से मुझे देखती है
    दरअसल , उसने कई बार मुझे उठाया है
    और मैं
    हर बार
    उद्विग्नता के घर जा बैठती हूँ...

    Rasmi ji bhot gahri aur sundar rachna...!!

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  19. सही कहा-
    आत्मा एक मकसद दे जाती है.

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  20. लगातार लिखते रहने के लि‌ए शुभकामना‌एं
    सुन्दर रचना के लि‌ए बधा‌ई
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    http://www.rachanabharti.blogspot.com
    कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
    http://www.swapnil98.blogspot.com
    रेखा चित्र एंव आर्ट के लि‌ए देखें
    http://chitrasansar.blogspot.com

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  21. आध्यात्मिक अभिव्यक्ति ...
    शुभकामनायें...

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...