उन लम्हों का हिसाब हम क्यूँ करें
जिन पर होनी की पकड़ थी
हम कितना भी कुछ कहें
हमारी राहें जुदा थीं
तुम आकाश लिख रहे थे
मैं पिंजड़े की सलाखों से
आकाश को पढ़ना चाह रही थी ...
बिना स्याही
तुमने बहुत कुछ लिखा
और बन्द कमरे की स्याह घुटन में
मैंने बहुत कुछ पढ़ा
तुम लिखना नहीं भूले
मैं पढ़ना नहीं भूली
पर अतीत के वे पन्ने
जो अनचाहे लिखे गए
उनको मैं पढ़ना नहीं चाहती
क्या तुम उन शब्दों को मिटा सकते हो ?
यकीन करो -
अभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ...
यकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ...
bahut sunder.. eak aur taaja bimb.. naya sa... badhiya !
aap kavi log itni acchai kavita lika kaise lete ho.maine bahut kosis Ki par koi fayda nhi hua
जवाब देंहटाएंयकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
bahut khoob ek dam taaja
स्वच्छन्दता का लेखन जब स्वच्छन्द वातावरण में पढ़ा जायेगा तो ..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
आज तो बेहद सुन्दर भाव भर दिये…………सहेज लेने चाहिये ऐसे पल कल मिलें न मिलें।
जवाब देंहटाएंबिना स्याही
जवाब देंहटाएंतुमने बहुत कुछ लिखा
और बन्द कमरे की स्याह घुटन में
मैंने बहुत कुछ पढ़ा
तुम लिखना नहीं भूले
मैं पढ़ना नहीं भूली
पर अतीत के वे पन्ने
जो अनचाहे लिखे गए
उनको मैं पढ़ना नहीं चाहती
क्या तुम उन शब्दों को मिटा सकते हो ?
एकदम सही, सब कुछ हम कहाँ रच पाते हैं, लि्खाती कलम कुछ और है और लिखा कुछ और होता है.
काश ! मनचाहा जीवन में भी लिख पाया होता.
बहुत सुन्दर भावाभियक्ति.. बढ़िया रचना..आभार
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता में स्याही,स्लेट और खल्लियों को देखकर वे दिन याद आ गए जब लिखने की कोशिश में कितना समय केवल सोचने में लगाते थे। सचमुच जो लिखा नहीं गया उसे हम मन की भाषा से पढ़ लेते हैं। लेकिन जो लिखा जाता है उसे पढ़ते हुए दिमाग का भी उपयोग करते हैं और कभी कभी अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
जवाब देंहटाएंवाह ...मन चाह ही लिखना चाहिए.
जवाब देंहटाएंbahut khub....
जवाब देंहटाएंchaliye ab main bhi kuch manchaha hi likhoonga...
यकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें..
बहुत कुछ कहती नज़्म ...आकाश और पिजरे का बिम्ब भी बहुत अच्छा लगा ....
नज़्म है याकि अनचाही इबारतें मिटाते नम लफ्ज़....
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार प्रस्तुति...
काश, सहज लिख पाना कठिन न होता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! चित्र भी बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंतुम आकाश लिख रहे थे
जवाब देंहटाएंमैं पिंजड़े की सलाखों से
आकाश को पढ़ना चाह रही थी ...
बिम्बों का अनूठा प्रयोग।
bahut hi sundar rachna
जवाब देंहटाएंrshmi bhn ankhe shbdon kaa ehsaas or unke prstutikrn kaa yeh andaaz bhut bhut niraalaa he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपकी मनचाही हमारे मन को भी अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.............
बिना स्याही
जवाब देंहटाएंतुमने बहुत कुछ लिखा
और बन्द कमरे की स्याह घुटन में
मैंने बहुत कुछ पढ़ा
तुम लिखना नहीं भूले
मैं पढ़ना नहीं भूली
पर अतीत के वे पन्ने
जो अनचाहे लिखे गए
उनको मैं पढ़ना नहीं चाहती
क्या तुम उन शब्दों को मिटा सकते हो ?
hamesha padta hu aapko, kuch naya seekh k jata hu.....hamesha.
बिना स्याही
जवाब देंहटाएंतुमने बहुत कुछ लिखा
और बन्द कमरे की स्याह घुटन में
मैंने बहुत कुछ पढ़ा
तुम लिखना नहीं भूले
मैं पढ़ना नहीं भूली
पर अतीत के वे पन्ने
जो अनचाहे लिखे गए
उनको मैं पढ़ना नहीं चाहती
क्या तुम उन शब्दों को मिटा सकते हो ?
hamesha padta hu aapko, kuch naya seekh k jata hu.....hamesha.
तो लिखो कुछ मनचाहा
जवाब देंहटाएंताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ...
aapke manchahe lekhan ke hi to ham sab fan hain, aur isliye to aate hain yahan..........:)
बिना स्याही
जवाब देंहटाएंतुमने बहुत कुछ लिखा
और बन्द कमरे की स्याह घुटन में
मैंने बहुत कुछ पढ़ा....... bahut kuchh ankaha kahti rachna... dil ko chhu gai.....
@पर अतीत के वे पन्ने
जवाब देंहटाएंजो अनचाहे लिखे गए
उनको मैं पढ़ना नहीं चाहती
क्या तुम उन शब्दों को मिटा सकते हो ?
मुश्किल है ...
काश कि जिंदगी का भी कोई रिवर्स गीअर होता ...
@ तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ....
मासूम सी ख्वाहिश है या मनुहार ..
मगर जो भी लिखेगा ...
अब मनचाहा ही लिखेगा ...
सुन्दर ..!
तो लिखो कुछ मनचाहा
जवाब देंहटाएंताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ...
कितनी सरल सी ख्वाहिश है...पर पूरी हो पानी कितनी मुश्किल..
rashmi ji,
जवाब देंहटाएंbahut gahri sanvednaayen, kuchh nirasha ke baad asha ki ummid...bahut khoob, badhai aapko.
पर अतीत के वे पन्ने
जवाब देंहटाएंजो अनचाहे लिखे गए
उनको मैं पढ़ना नहीं चाहती
क्या तुम उन शब्दों को मिटा सकते हो ..
अतीत का लिखना चाहे मिटा दिया जाए पर दिल पे लिखे अतीत को मिटाना सच में आसान नही होता ... उसकी स्याही अमिट रहती है ...
तुम आकाश लिख रहे थे
जवाब देंहटाएंमैं पिंजड़े की सलाखों से
आकाश को पढ़ना चाह रही थी ...
---बस्स!! सब कुछ तो कह दिया!
यकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये
bahut sunder bhaav h...badhai..
यकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ...
वाह बहुत सुन्दर ,हर बार कुछ नया सा मिलता और मन पर अपनी छाप छोड देता है .कितनी हल्की फ़ुल्की इच्छा मगर कितनी सुन्दर .
बलिहारी जाऊं ऐसी कविता पर.. लेकिन सुना है आजकल आप बीमार चल रही हैं मम्मी जी.. हुआ क्या है?
जवाब देंहटाएंअहसास का प्रतिबिंब...
जवाब देंहटाएंएक गरिमापूर्ण रचना.
आप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
तुम आकाश लिख रहे थे
जवाब देंहटाएंमैं पिंजड़े की सलाखों से
आकाश को पढ़ना चाह रही थी ...
kya keh diay Rashmi di
aapki samvednaye dil andar tak chhu gayi
एहसास में डूबी रचना जो दिल को छु गयी ..बेहतरीन बहुत पसंद आई
जवाब देंहटाएंman ko sakoon deti rachna
जवाब देंहटाएंman ko sakoon deti rachna
जवाब देंहटाएंयकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये
कितने गहरे भाव और व्यथा सहेजे हुए ये प्रस्तुति भावुक कर गई
यकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ...
rashmi di bahut hi gahari avam bhavnatmak abhivyakti liye hue aapki rachna bahut khchh anchahe hi kah gai.
ati sundar---------
poonam
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
जवाब देंहटाएंसबकुछ सहज हो जाये ..।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
यकीन करो -
जवाब देंहटाएंअभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
ताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ...
...sundar abhivykti...
ati sundar bimb chitran ...
समुद्र पर हो रही है बारिश !
जवाब देंहटाएंमैं पिंजड़े की सलाखों से
आकाश को पढ़ना चाह रही थी!!
स्त्री मन की कसक उभारी है आपने !
बहुत सुंदर कविता ! आभार !
तो लिखो कुछ मनचाहा
जवाब देंहटाएंताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
-सुन्दर
bahut sunder likhti hain aap.
जवाब देंहटाएंaap ke blog par aakar mai bhavnatam ho jaata hon sundar
जवाब देंहटाएंDIDI , DERI SE AANE KE LIYE MAAFI CHAHUNGA .. HAMESHA KI TARAH AAPNE BAHUT HI SUNDAR RACHNA LIKHI HAI JO DIL KO CHOO LETI HAI ..
जवाब देंहटाएंBADHAI
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
Bahut hi badhiyan likha hai....
जवाब देंहटाएंkya khoob kehne-
अभी भी मेरे पास खाली स्लेट है
और कुछ खल्लियाँ
और कुछ मनचाही इबारतें
वक़्त भी है -
तो लिखो कुछ मनचाहा
"तो लिखो कुछ मनचाहा
जवाब देंहटाएंताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
सबकुछ सहज हो जाये ..."
sahaj bibm yojna ke madhyam se unmukt hone ki chahat ka adbhut udaharan hai aapki rachna;
rashmiji
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat bhav nishbd kar gai kavita
वाह रश्मि जी वाह !!
जवाब देंहटाएंक्या बात है...!!
दिल से कही गई बातें ही दिल को छू पाती है शायद...,
वर्ना मौसम का हाल तो टीवी पर वो दडियल भी सुना जाता है...!!
तो लिखो कुछ मनचाहा
जवाब देंहटाएंताकि इस बार
खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ
दुआ है आपको जल्द ही ऐसा कुछ लिखा मिले .....!!