बहुत बड़ी धरती मुझे मिली है
मिला है बहुत बड़ा आकाश
इस छोर से उस छोर तक
क्षितिज का साथ है !
शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है
मैंने महसूस किया है कि तुम देख रहे हो मुझे अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...
भावपूर्न कविता……………॥अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंसारा आकाश....सारी धरती हमारी है| खूबसूरत पंक्तियाँ|
जवाब देंहटाएंसुन्दर पंक्तियाँ! भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंbahoot sundar kavita hai
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ हैं
जवाब देंहटाएंsundar - ati - sundar
जवाब देंहटाएंchar line aur vishaal kalpna .
yeh dharti teri yeh ambar mera
tune bhi udna chaha aur mene bhi chlna-----
tere pankh nahin thy aur mene kadam...
वाकई बहुत कुछ मिला है... ये धरती... ये आकाश... सूरज, चाँद और अनगिनत टिमटिमाते तारे... और ये भ्रम कहाँ है इस नश्वर संसार में यही कुछ साथी हैं जो अनश्वर हैं.. हमेशा साथ रहते हैं...
जवाब देंहटाएंनिदा फाज़ली जी की कुछ लाइंस याद आ गयीं...
छोटा कर के देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार...
इस छोर से उस छोर तक
जवाब देंहटाएंक्षितिज का साथ है !
...bhaavpurn.
bahut sundar
जवाब देंहटाएंmain bhi haanth failaakar apna aakash maapne ki koshish kar rahi hoon
aap bhi........:)
जवाब देंहटाएंaap bhi Sangeeta di ki tarah do lines me sab kuchh kah dena chahti hain......:)
बहुत सुन्दर। बधाई ये धरती आकाश आपको नई उडान दे।
जवाब देंहटाएंलेकिन यहां सब कुछ समय के हाथ है।
जवाब देंहटाएंएहसास इस मंदिर मे जीवन के सत्य को समझने का प्रयास मैंने भी किया है.
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म विश्लेषण. सुन्दर रचना.
वाह ...आपको क्षितिज का साथ मिला ..फिर भ्रम कैसा ...
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है ...
धरती भी
मेरी अपनी है
आसमां भी
अपना है
पर क्षितिज
तो बस
मेरे लिए
एक सपना है .....
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
जवाब देंहटाएंक्षितिज भ्रम है, इस सत्य को सार्थक शब्द दिए हैं ...बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंप्रणाम के साथ शुभकामनाएं.......
दीदी प्रणाम !
जवाब देंहटाएंछोटी कविताए अधिक प्रभाव छोडती है जो मेरी पसंदीदा है , अपनी एक बानगी आप के सामने रखना चाहुगा --
'' तुम्हे छोड़ कहा जाऊ
ये सिरा यही ख़तम होगा वापिस ,
पृथ्वी गोल जो है ''
एक सुंदर रचना के लिए आप का आभार !
सादर !
बस इसी भ्रम मे ज़िन्दगी गुजार जाते हैं……………सही कहा।
जवाब देंहटाएंजब सारी धरती और आकाश का साथ हो तो भ्रम कैसा? जहाँ भी अपने अस्तित्व को समाहित कर लीजिये वही अपना है और अपनी सीमा है.
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में दिल की बात उतार दी...मनभावन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं___________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
... बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंgagar mein sagar
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सुन्दर भाव...आभार
जवाब देंहटाएंसच में...?
जवाब देंहटाएंफिर भ्रम कैसा?
या यह भ्रम ही है...
सुन्दर पंक्तियाँ! भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंजब आकाश मिला है फिर भ्रम कैसा.. या फिर आकाश मिलने का ही भ्रम है.. चार पंक्तियों में जीवन दर्शन..
जवाब देंहटाएंजो कुछ जीवन में पाया है, उसके प्रति आभार व्यक्त करने की इस प्रकार की सकारात्मक सोच बहुत शुकून देती है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव .. पर इस क्षितिज को नापना बहुत ही कठिन है ....
जवाब देंहटाएंchand pankityun me di aapne, pura brahmmand apne nam kar lar liya
जवाब देंहटाएंwaoooooooooooo
gr8 4 liners
Yahi to bhram ki baat hai :)
जवाब देंहटाएंमेरी तो सदा ही क्षितिज छू लेने की आस रही है।
जवाब देंहटाएंbahut badi baat kah di chhoti si dikhne wali kavita ne....
जवाब देंहटाएंha, kisi ko bhi aisa sath mile to kya baat hai...!!!!
bahut badi baat kah di chhoti si dikhne wali kavita ne....
जवाब देंहटाएंha, kisi ko bhi aisa sath mile to kya baat hai...!!!!
क्षितिज के हरदम का साथ होने का एहसास ...!
जवाब देंहटाएंसंबल नहीं, भय देता है।
भावपूर्ण ओर सुंदर कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरचना में भाव स्पष्ट हैं...
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाई.
सत्य :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर पंक्तियाँ!
जवाब देंहटाएंवाह ..चलो भ्रम से दूर छूलें इस क्षितिज को ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय एकता और विकास का आधार हिंदी ही हो सकती है।
अच्छी पंक्तिया है ......
जवाब देंहटाएंhttp://thodamuskurakardekho.blogspot.com
अद्भुत रचना...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
धरती, आकाश ...क्षितिज , पर भ्रम
जवाब देंहटाएंक्षितिज सामने है , पर जितना आगे बढ़ो वह आगे ...
क्षितिज दूर सही ...पास लगता है मगर पास आने पर और दूर...
मगर क्षितिज तक का यह अनवरत सफ़र कई बार क्षितिज को छू लेने से भी बेहतर लगता है ...उसे छूने की ख्वाहिश ही मिट जाती है ...
मंजिल से बेहतर लगने लगे हैं ये रास्ते ...!
Gahan gambheer chintan.....
जवाब देंहटाएं..sateek ukti..
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
gagar me sagar
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