31 अगस्त, 2010

भ्रम !


बहुत बड़ी धरती मुझे मिली है
मिला है बहुत बड़ा आकाश
इस छोर से उस छोर तक
क्षितिज का साथ है !

47 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्न कविता……………॥अति सुन्दर

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  2. सारा आकाश....सारी धरती हमारी है| खूबसूरत पंक्तियाँ|

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  3. सुन्दर पंक्तियाँ! भावपूर्ण रचना!

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  4. sundar - ati - sundar
    char line aur vishaal kalpna .

    yeh dharti teri yeh ambar mera
    tune bhi udna chaha aur mene bhi chlna-----
    tere pankh nahin thy aur mene kadam...

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  5. वाकई बहुत कुछ मिला है... ये धरती... ये आकाश... सूरज, चाँद और अनगिनत टिमटिमाते तारे... और ये भ्रम कहाँ है इस नश्वर संसार में यही कुछ साथी हैं जो अनश्वर हैं.. हमेशा साथ रहते हैं...

    निदा फाज़ली जी की कुछ लाइंस याद आ गयीं...
    छोटा कर के देखिये जीवन का विस्तार
    आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार...

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  6. इस छोर से उस छोर तक
    क्षितिज का साथ है !
    ...bhaavpurn.

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  7. bahut sundar
    main bhi haanth failaakar apna aakash maapne ki koshish kar rahi hoon

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  8. aap bhi........:)

    aap bhi Sangeeta di ki tarah do lines me sab kuchh kah dena chahti hain......:)

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  9. बहुत सुन्दर। बधाई ये धरती आकाश आपको नई उडान दे।

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  10. एहसास इस मंदिर मे जीवन के सत्य को समझने का प्रयास मैंने भी किया है.
    सूक्ष्म विश्लेषण. सुन्दर रचना.

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  11. वाह ...आपको क्षितिज का साथ मिला ..फिर भ्रम कैसा ...

    मुझे तो लगता है ...

    धरती भी
    मेरी अपनी है
    आसमां भी
    अपना है
    पर क्षितिज
    तो बस
    मेरे लिए
    एक सपना है .....

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  12. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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  13. क्षितिज भ्रम है, इस सत्य को सार्थक शब्द दिए हैं ...बहुत सुन्दर!

    प्रणाम के साथ शुभकामनाएं.......

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  14. दीदी प्रणाम !
    छोटी कविताए अधिक प्रभाव छोडती है जो मेरी पसंदीदा है , अपनी एक बानगी आप के सामने रखना चाहुगा --
    '' तुम्हे छोड़ कहा जाऊ
    ये सिरा यही ख़तम होगा वापिस ,
    पृथ्वी गोल जो है ''
    एक सुंदर रचना के लिए आप का आभार !
    सादर !

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  15. बस इसी भ्रम मे ज़िन्दगी गुजार जाते हैं……………सही कहा।

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  16. जब सारी धरती और आकाश का साथ हो तो भ्रम कैसा? जहाँ भी अपने अस्तित्व को समाहित कर लीजिये वही अपना है और अपनी सीमा है.

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  17. कम शब्दों में दिल की बात उतार दी...मनभावन प्रस्तुति.
    ___________________
    'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)

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  18. हमेशा की तरह सुन्दर भाव...आभार

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  19. सच में...?
    फिर भ्रम कैसा?
    या यह भ्रम ही है...

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  20. सुन्दर पंक्तियाँ! भावपूर्ण रचना

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  21. जब आकाश मिला है फिर भ्रम कैसा.. या फिर आकाश मिलने का ही भ्रम है.. चार पंक्तियों में जीवन दर्शन..

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  22. जो कुछ जीवन में पाया है, उसके प्रति आभार व्यक्त करने की इस प्रकार की सकारात्मक सोच बहुत शुकून देती है ...

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  23. सुंदर भाव .. पर इस क्षितिज को नापना बहुत ही कठिन है ....

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  24. chand pankityun me di aapne, pura brahmmand apne nam kar lar liya

    waoooooooooooo
    gr8 4 liners

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  25. मेरी तो सदा ही क्षितिज छू लेने की आस रही है।

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  26. bahut badi baat kah di chhoti si dikhne wali kavita ne....

    ha, kisi ko bhi aisa sath mile to kya baat hai...!!!!

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  27. bahut badi baat kah di chhoti si dikhne wali kavita ne....

    ha, kisi ko bhi aisa sath mile to kya baat hai...!!!!

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  28. क्षितिज के हरदम का साथ होने का एहसास ...!
    संबल नहीं, भय देता है।

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  29. भावपूर्ण ओर सुंदर कविता, धन्यवाद

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  30. रचना में भाव स्पष्ट हैं...
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाई.

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  31. वाह ..चलो भ्रम से दूर छूलें इस क्षितिज को ...

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  32. अच्छी पंक्तिया है ......

    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

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  33. धरती, आकाश ...क्षितिज , पर भ्रम
    क्षितिज सामने है , पर जितना आगे बढ़ो वह आगे ...

    क्षितिज दूर सही ...पास लगता है मगर पास आने पर और दूर...
    मगर क्षितिज तक का यह अनवरत सफ़र कई बार क्षितिज को छू लेने से भी बेहतर लगता है ...उसे छूने की ख्वाहिश ही मिट जाती है ...
    मंजिल से बेहतर लगने लगे हैं ये रास्ते ...!

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  34. ..sateek ukti..
    आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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