20 अक्टूबर, 2010

फिर उलझन कैसी ?



तुम्हें जन्म दिया माँ ने
सिखाया समय ने
तराशा खुद को तुमने
तेज दिया ईश्वर ने
यूँ कहो अपना प्रतिनिधि बनाया ...
इसलिए नहीं कि तुम सिर्फ निर्माण करो
अनचाहे उग आए घासों को हटाना
यानि नेगेटिविटी को मारना भी तुम्हारे हाथों में दिया ...

'निंदक नियरे राखिये'
क्रिमिनल सोचवालों को नहीं
....
उसकी पूरी ज़मीन काँटों से भरी होती है
उसे सींचना
तुम्हारा बड़प्पन नहीं
अन्याय को बढ़ावा देना है !

तुमको गुरु ने जो दिया
लड़कर, सहेजकर ....
उसमें फिर से गिद्ध दृष्टि ?
अपनी ताकत को अपने सुकून में लगाओ
एक और लड़ाई में नहीं
तुम्हारे पदचिन्ह तभी गहरे होंगे ...
जब तुम सत्य का साथ दोगे
तो इन चिन्हों के अनुयायी होंगे
ये बात और है कि संख्या कम होगी
क्योंकि सत्य की राह को
कम लोग ही अख्तियार करते हैं !

क्या गुरु के इस वचन में सारे अर्थ नहीं निहित हैं ---
'कृष्ण को पाना है
तो अर्जुन बनो
राधा बनो
सुदामा बनो '...

कृष्ण दुर्योधन के सारथी नहीं बने
दुर्योधन ने चाहा भी नहीं ...
सत्य जानते हुए भी पितामह
कर्तव्य की दुहाई देकर कौरवों के साथ रहे
तो परिणाम ???

कर्तव्य और अधिकार का एक व्यापक अर्थ है
दोनों अकेले कभी नहीं चलते
ना एकतरफा कर्तव्य होता है
ना अधिकार !

तुम स्वयं वह आधार हो
जिससे अमरनाथ का शिवलिंग बनता है
स्मरण करो---
एक साल यह शिवलिंग नहीं बना ... क्यूँ ?
अन्याय के दृश्यों ने बर्फ को भी
मूक और अपाहिज बना दिया !

तुम अपने द्वन्द से
अनचाहे विषबेलों को सींच रहे हो
उनको उखाड़ोगे नहीं
तो ईश्वर की इच्छा ही अधूरी होगी ...

कुरुक्षेत्र के मैदान में
सब अपने ही औंधे पड़े थे
पर न्याय तो यही था ...
कुंती को युद्धिष्ठिर ने जो शाप दिया
वही सही था ...
कैकेयी को यदि भरत ने नहीं गलत कहा होता
तो कैकेयी को अपनी गलती का आभास न होता !
भरत ने उनका त्याग किया ...
कर्ण ने अपने तिरस्कार को याद रखा
... ५ पुत्रों का वरदान देकर
अपनी मृत्यु का दान दिया
पर दुर्योधन की मित्रता का मान रखा

ईश्वर ने सत्य का स्वरुप हर बार दिखाया है
तो फिर उलझन कैसी ?

29 टिप्‍पणियां:

  1. कर्तव्य और अधिकार का एक व्यापक अर्थ है
    दोनों अकेले कभी नहीं चलते
    ना एकतरफा कर्तव्य होता है
    ना अधिकार !
    बिल्कुल सही कहा है आपने! उम्दा रचना! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

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  2. "ईश्वर ने सत्य का स्वरुप हर बार दिखाया है
    तो फिर उलझन कैसी ?"
    बहुत सुंदर रचना! जीवन के सार को रच दिया है आपने !

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  3. बाप रे दी ! इतने सारे सवाल एक ही कविता में ? वो भी ऐसे जिनका कोई जबाब नहीं .
    बहुत अच्छा लिखा है.

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  4. awesome... again...
    par mujhe lagta haiki uljhan ki wajah hai ye man... jo na to sunta hai na maanta hai... bas wahi chahta hai jo iskee chahat hai...

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  5. वाह!!!!! क्या कहने रश्मि जी, कविता पढ़कर ही उलझन में आ गयी हूँ, बहुत गूढ़ बातें कह गईं आप तो वो भी इतनी सरलता से पर यहाँ तो समझने में ही उलझन आ गयी. अच्छा लगा इतनी गहरी बातों को पढ़ना

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  6. अपनी ताकत को अपने सुकून में लगाओ
    एक और लड़ाई में नहीं

    कितनी गहरी बात कह दी.

    सुंदर सशक्त रचना और सुंदर चित्र.

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  7. ... बहुत सुन्दर ... भावपूर्ण रचना !!!

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  8. कृष्ण को पाना है तो अहं तो खोना ही होगा।

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  9. बहुत सुंदर लगा आज की कविता को पढना ...
    धन्यवाद

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  10. कृष्ण को पाने की चाह तो हम सब में है पर कितने हैं जो अर्जुन, राधा और सुदामा बन पाये हैं... ये उलझन और दुविधा भी शायद इसी वजह से है कि हम इश्वर के दिखाए सत्य के स्वरुप को देखना और समझना चाहते ही नहीं... हम बस बिना कर्त्तव्य किये, बिना समर्पण दिये अधिकार पाना और हक़ जताना चाहते हैं.

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  11. आज तो अच्छी खासी क्लास लग गयी है ...
    कितने सवाल ...और जवाब भी ...

    अपनी ताकत को सुकून में लगाओ ...एक और लडाई में नहीं ...

    ये पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगी ..." कृष्ण को पाना है तो , राधा बनो , सुदामा बनो ,अर्जुन बनो "
    एकतरफा ना कर्त्तव्य होता है ना अधिकार ....

    ईश्वर ने सत्य का स्वरुप हर बार दिखाया है तो फिर उलझन कैसी ...
    और आखिर में हर द्वंद्व से मुक्ति भी ..

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  12. न जाने कितने आयामों पर खरी उतरती है ये रचना.... बधाई

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  13. कृष्ण को पाना है
    तो अर्जुन बनो
    राधा बनो
    सुदामा बनो '...

    वाह...बहुत प्रेरक पोस्ट...

    नीरज

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  14. कर्तव्य और अधिकार का एक व्यापक अर्थ है
    दोनों अकेले कभी नहीं चलते
    ना एकतरफा कर्तव्य होता है
    ना अधिकार

    रश्मि जी,

    इन पंक्तियों को यदि हम समझ लें तो आज पल रही सामाजिक विसंगतियां और परिवार जैसी संस्था के विघटन का इतिहास बदल जाए. लेने और देने दोनों के संयोग से ही रिश्ते बनते और चलते हैं. बिना दिए कुछ लेना भी तो बेमानी है. बहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति .

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  15. कर्तव्य और अधिकार का एक व्यापक अर्थ है
    दोनों अकेले कभी नहीं चलते
    ना एकतरफा कर्तव्य होता है
    ना अधिकार !

    आज की कविता बहुत गहरे भाव लिए हुए है. कई सवाल और उनके जबाब भी निहित मिले.
    एक सम्पूर्ण कविता.

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  16. बहुत सुंदर, कविता भी और विचार भी।

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  17. माफ करें रश्मि जी, पहली बार ऐसा लगा कि आप इस कविता में आरंभ से अंत तक कविता का निर्वाह नहीं कर पाईं। संभवत:कई सारी बातें बार में ही कह देने के मोह में।

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  18. इसमें क्षमा की क्या बात ......... ज़िन्दगी हर बार क्रमवार कविता नहीं होती... कई आयामों से विकल होकर गुजरती है और उलझनों को सुलझाती है, अपना अपना दृष्टिकोण होता है , बस !

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  19. ईश्वर ने सत्य का स्वरुप हर बार दिखाया है
    तो फिर उलझन कैसी ?
    दीदी प्रणाम !
    उलझन जीवन में हर जगह है बस कुसलाता से सुलझाने वाला होने वाला चाहिए , अच्छी कविता ,
    साधुवाद
    सादर १

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  20. बहुत खूब ... सच है सभी कुछ तो दिया है ईश्वर ने फिर काहे का संकोच ... कौन सी दुविधा .... किस बात की हाताशा ...

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  21. तुम अपने द्वन्द से
    अनचाहे विषबेलों को सींच रहे हो
    उनको उखाड़ोगे नहीं
    तो ईश्वर की इच्छा ही अधूरी होगी ...
    सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना। बधाई।

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  22. रश्मि जी, बहुत सारे सवालों को उठाने वाली आपकी यह रचना काफ़ी शक्तिशाली है-----। शुभकामनायें।

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  23. कविता का अध्यात्मिक पुट अच्छा लगा ।

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  24. sansaar ke uljhan ka jawab aapke in shabdon mein nihit hai...
    कर्तव्य और अधिकार का एक व्यापक अर्थ है
    दोनों अकेले कभी नहीं चलते
    ना एकतरफा कर्तव्य होता है
    ना अधिकार !
    ise samajh liya jaaye to koi uljhan nahin...par uljhan bhi yahi ki ise samajhna bahut kathin hota. saargarbhit rachna, shubhkaamnaayen.

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