19 अक्तूबर, 2010

सागर


खो देने का भय जब प्रबल होता है
तो सागर नाले की शक्ल में जीना चाहता है
...
पर उसकी उद्दात लहरें
उसका स्वाभिमान होती हैं
जो किनारे से आगे जाकर
अपना मुकाम ढूंढती हैं
...
उस खोज में
अगर वह कुछ देता है
तो कितना कुछ बहा ले जाता है
संतुलन सागर को नहीं
सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

35 टिप्‍पणियां:

  1. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...



    बहुत कुछ अनकहा कह दिया इन पंक्तियों मे……………बेहद उम्दा रचना।

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  2. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    बहुत ही सुन्दर ...

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  3. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    बस स्वाभिमान के जागने की देर होती है....उसकी उद्दाम लहरों से टकराना दुष्कर है.
    गहन अभिव्यक्ति

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  4. बहुत सुन्दर कविता.. सागर के स्वभिमान को सम्झाती कविता..

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  5. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...
    didi pranam !
    ye antim pantatiya bahut kuch kahti hai.
    sunder ,
    sadhuwad!
    saadar!

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  6. संतुलन सागर को नहीं ........ यह पंक्ति जाने कितना कुछ कहती हुई, बिल्‍कुल सागर की तरह गहरी बात, कही आपने ......आभार इस सुन्‍दर प्रस्‍तुति के लिये ।

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  7. संतुलन सागर तक जाने वाले को रखना पड़ता है ...

    शानदार ..!

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  8. उद्दात लहरें...उसका स्वाभिमान होती हैं
    जो किनारे से आगे जाकर...अपना मुकाम ढूंढती हैं
    ......
    संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    रश्मि जी, बहुत प्रभावित किया आपकी रचना ने.

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  9. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    खूबसूरत ..

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  10. बहुत ही ख़ूबसूरत रचना है रश्मि जी...
    मेरे नए ब्लॉग को अभी भी आपका इंतज़ार है....

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  11. सागर के पास जाकर भी अगर संतुलन रखा तो फिर जाना किस का काम का।

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  12. Well said mam...
    उस खोज में
    अगर वह कुछ देता है
    तो कितना कुछ बहा ले जाता है
    संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

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  13. बेमिसाल, सागर से भी गहरी बात
    संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

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  14. सागर के साथ संतुलन को क्या जोड़ा है ..बहुत सुन्दर.

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  15. क्या अद्भुत विडंबना है यह संसार
    जिस सागर में नदियाँ समाहित हो जाने को बेचैन बहती हैं
    और 'होकर' गर्व महसूस करती हैं
    वही सागर "खो देने का भय" महसूस कर
    एक नाले कि शक्ल में जीना चाहने लगता है.

    समझौता उसकी प्रकृति तो नहीं
    पर वो भी क्या करे?
    सागर होने की अपनी एक जिम्मेवारी है
    संतुलन बनाये रखने की उसकी ही लाचारी है

    - बहुत कि मार्मिक रचना

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  16. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    आपके शब्द और उनके अर्थ सब इतने गहरे होते हैं की पढने वाले को शब्द नहीं मिल पाते
    कुछ कहने को..... बेमिसाल रचना

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  17. खो देने का भय जब प्रबल होता है
    तो सागर नाले की शक्ल में जीना चाहता है
    सही कहा, बहुत सुंदर कविता

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  18. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    बहुत ही सुन्दर ...

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  19. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    ... क्या बात कही...

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  20. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...
    santulit rachna.. jeewan darshan ko samjhati..shubhkamna

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  21. rashmi di
    bahut hi gahan aur ek yathrth prerak rachna se paripurn behad bhav pravan prastuti.
    main to aapki rachnaoon ke shabdo mai hi kho jaati hun.
    sundar prastutikarn.
    poonam

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  22. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    aise gudhh arth walee panktiyan aap hi likh sakte ho........:)

    aameen!!

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  23. सागर न संतुलन रखता है न अपने तक आने वाले को रखने देता है..
    कम शब्दों में बहुत सारगर्भित रचना

    नीरज

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  24. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............मन को छू गई............

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  25. संतुलन सागर को नहीं
    सागर तक जानेवालों को रखना होता है ...

    कितनी ग़ूढ बात कर दी आपने ... सागर तो अपना कर्म कर रहा है ....

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  26. बहुत सुंदर लिखती हैं आप ,मज़ा आ जाता है । अनेक शुभकामनायें ।

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  27. आपकी हर बात सबसे अलग होती है..बहुत खूब...

    जवाब देंहटाएं

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