28 अक्टूबर, 2010

अस्तित्व


हम सच को नकार के
अपने बाह्य और अंतर को नकार के
एक दूसरा स्वरुप प्रस्तुत करते हैं
तो फिर हम हम नहीं रह जाते ...

हम कहते हैं
मृत्यु अवश्यम्भावी है
फिर भी इससे लड़के हम खुद को जीते हैं न
जो हमारे अंतर को ख़त्म करना चाहता है
उसके आगे
खुद को प्रोज्ज्वलित करते हैं न

पर जब हम उसकी रौशनी से प्रभावित होते हैं
तो हमारा कमरा स्याह हो जाता है
हम हम नहीं रह पाते

अपनी सोच को बनावटी मत बनाओ
जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत
ऐसे में
तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
तुम्हें जीने नहीं देगा
और तब तुम खुद के आगे ही नहीं
पूरे समूह में पागल घोषित किये जाओगे ...

क्या कहा ?
'क्या फर्क पड़ता है?'
पड़ता है -
आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
और आईना
वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !

30 टिप्‍पणियां:

  1. आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
    और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !अपने दोहरे व्यक्तित्व के पहचानने की जरूरत है। सुन्दर कविता। शुभकामनायें

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  2. sundar chintan Di,

    "Log kehte hain ki aaina sach bolta he
    muddaton se mujh us aaine ki talash he"

    जवाब देंहटाएं
  3. duron ke liye apna astitwa nahi khona mujhe...
    bahut hi achhi rachna,,,..

    जवाब देंहटाएं
  4. आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
    और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !
    aaj fir aapki rachna se kuchh khaas seekhne ko mila... thank you so much Mam...

    जवाब देंहटाएं
  5. दी! सच कहा आपने, जब रोने का दिल करे, तो हर वक़्त अपने को हंस कर तालो मत......अपने दुःख कभी कभी दुसरे को दिखाना भी चाहिए..:)

    वैसे दी, यथार्थ का आइना आपने बेहतर कौन दिखा सकता है

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  6. 'और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !
    ........
    क्या बात कही है!

    ..लेकिन वर्तमान में अपने अस्तित्व के बिना जीना कैसा जीना होगा?एक यही 'मैं' हूँ जो खुद के साथ रहता है.अपने खुद का एक हिस्सा अपने पास रहने देना चाहिए.
    शायद मैं गलत हूँ...हो सकता है..

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  7. आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
    और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !

    एक बेहद उम्दा सोच की परिचायक है ये रचना………………।बहुत सुन्दर्।

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  8. जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत
    ऐसे में
    तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
    तुम्हें जीने नहीं देगा

    मात्र दिखावे से ज़िंदगी नहीं चलती ..खुद को खोजने की और अपने अस्तित्त्व को बनाए रखने की सलाह देती सुन्दर प्रस्तुति

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  9. आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
    और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !
    क्या करें आज के ज़माने में सब कुछ नकली है जैसे असल इन्सान सोच प्रेम सौहार्द्र. क्या क्या बदलेंगे हम??

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  10. जिओ हमेशा यथार्थ के साथ. जीवन का हर पहलू अच्छा है और मुखौटा ओढ़ कर जीना तो और भी अपनए से दूर कर देता है. जो सच्छी है उसको स्वीकारो और फिर उसमें भी जीने का लुफ्तउठाओ.

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  11. अस्तित्‍व के लिए ही तो सारी जद्दोजहद है।

    सुंदर अभिव्‍यक्ति।

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  12. अपनी सोच को बनावटी मत बनाओ
    जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत
    ऐसे में
    तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
    तुम्हें जीने नहीं देगा
    और तब तुम खुद के आगे ही नहीं
    पूरे समूह में पागल घोषित किये जाओगे

    कितनी सच्ची बात अखी है आपने ..बेहतरीन.

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  13. अपनी सोच को बनावटी मत बनाओ
    जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत
    ऐसे में
    तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
    तुम्हें जीने नहीं देगा
    और तब तुम खुद के आगे ही नहीं
    पूरे समूह में पागल घोषित किये जाओगे ...

    बेहद उम्दा...बहुत कुछ सोचने पर विवश करती हुई रचना है रश्मि जी.

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  14. अपनी सोच को बनावटी मत बनाओ
    जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत
    ऐसे में
    तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
    तुम्हें जीने नहीं देगा
    क्या बात कह डाली...सोलहो आने सच....एक इमेज में कैद होने कि क्या जरूरत पर हर कोई इस छद्म को ओढना ही पसंद करता है

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  15. हम कहते हैं
    मृत्यु अवश्यम्भावी है
    फिर भी इससे लड़के हम खुद को जीते हैं न
    जो हमारे अंतर को ख़त्म करना चाहता है
    उसके आगे
    खुद को प्रोज्ज्वलित करते हैं न


    एकदम सही बात है ! बहुत सुन्दर आशावादी रचना !

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  16. rashmi ji,
    hamaare chintan par prabhaav chhodti darshanik soch kee rachna. shubhkaamnaayen.

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  17. वाह वाह .....बहुत सुन्दर आत्म अवलोकन

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  18. जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत ...

    kya baat keh di aapne....awwwesome...too good..!!

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  19. bahut badiya.......
    ye panktiya asr chod gayee manaspatal par...

    आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
    और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !
    Aabhar

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  20. क्या कहा ?
    'क्या फर्क पड़ता है?'
    पड़ता है -
    आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
    और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !
    didi pranam !
    bahur sunder panktiya hai ye .
    sadhuwad
    saadar

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  21. अपनी सोच को बनावटी मत बनाओ
    जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत
    ऐसे में
    तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
    तुम्हें जीने नहीं देगा
    ...sach ko sweekar karne mein bahut sukun hai...

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  22. असल में आईना ही सच बोलता है और हम मानते नहीं हैं।

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  23. अपनी सोच को बनावटी मत बनाओ
    जब रोने का दिल करे तो हर बार हंसो मत
    ऐसे में
    तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
    तुम्हें जीने नहीं देगा
    और तब तुम खुद के आगे ही नहीं
    पूरे समूह में पागल घोषित किये जाओगे ...
    .... jiwanseekh deti bhavpurn prastuti ke liye aabhar..

    जवाब देंहटाएं
  24. तुम्हारा अस्तित्व तुम्हारे एकांत में
    तुम्हें जीने नहीं देगा

    सही बात है ! बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  25. आईने में तुम खुद को ताउम्र ढूंढते रह जाते हो
    और आईना
    वह भी छद्म रूप धारण कर लेता है !


    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द लिये पंक्तियां ....।

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