ये बनाया मैंने बांहों का घेरा
दुआओं का घेरा
खिलखिलाती नदियों की कलकल का घेरा
मींच ली हैं मैंने अपनी आँखें
कुछ नहीं दिख रहा
कौन आया कौन आया
अले ये तो मेली ज़िन्दगी है ...
ये है रोटी , ये है दाल
ये है सब्जी और मुर्गे की टांग
साथ में मस्त गाजर का हलवा
बन गया कौर
मींच ली हैं आँखें
कौन खाया कौन खाया
बोलो बोलो
नहीं आई हँसी
तो करते हैं अट्टा पट्टा
हाथ बढ़ाओ .....
ये रही गुदगुदी
कौन हंसा कौन हंसा
बोलो बोलो बोलो बोलो
जल्दी बोलो
मींच ली हैं आँखें मैंने
गले लग जाओ मेरे
और ये कौर हुआ - गुटुक !
ale baap le main nannhi munni ban gai is rachna ko padh kar
जवाब देंहटाएंमींच ली हैं आँखें मैंने
जवाब देंहटाएंगले लग जाओ मेरे
और ये कौर हुआ - गुटुक !
कोमल अहसासों को जीवंत करते शब्द अनमोल प्रस्तुति ।
वाह वाह !
जवाब देंहटाएंइनसे निर्मल कोई नहीं , इस रचना से बढ़ कर कोई नहीं ! हार्दिक शुभकामनायें रश्मि जी
Aur ye Gatak liya Gutuk .... Ilu Maa ..!
जवाब देंहटाएं"मींच ली हैं आँखें मैंने
जवाब देंहटाएंगले लग जाओ मेरे
और ये कौर हुआ - गुटुक !
मीच ली हैं आँखें मैंने
गले लग जाओ मेरे
और ये कौर हुआ - गुटुक !"
चाची को देखा था छोटे भाई को खिलाते हुए.आत्मीयता से भरपूर है और आम जीवन से उठाकर इस बिम्ब को आपने गजब का विस्तार दिया है.अच्छी रचना से रूबरू कराने के लिए आभार.
didi prnam !
जवाब देंहटाएंkavita padhte padhte chehre pe swahtah hi muskaan aa gayi , behad pyaari , masoom kavita ke liye aabhar
sadhuwad .
OMG kitni pyaalee pyaalee kavita hai.:)
जवाब देंहटाएंbahut hi nirmal si.
इस रचना को पढकर फिर से जी करता है बन जाऊं एक छोटा सा बच्चा :)
जवाब देंहटाएंआ हा मीठी मीठी………………बहुत ही सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या पारदर्शिता, निर्मलता है... अभिनन्दन
जवाब देंहटाएंसुन्दर एह्साओं की रचना... बाल मन को खूब समझा है आपने.. जीवन का सबसे सुखद क्षण ...
जवाब देंहटाएं:) :) :) :) :)
जवाब देंहटाएं- ऐसा ही मुस्कान बना रहा पूरी कविता पढ़ते समय...बहुत बहुत प्यारी सी कविता..
और बच्चे का फोटो भी कितनी क्यूट है :) :)
कुछ और स्माइली ले लीजिए - :) :) :)
हा हा हा...नटखट सी कविता..खो गया कहीं बचपन में....
जवाब देंहटाएंकितने जतन और उसमे छुपा कितना प्यार...
मुट्ठी भर आसमान...
आपकी रचना ने तो अपना बचपन और अपने बच्चों का बचपन याद दिला दिया .....मैं बच्चों को खिलाती थी यह कह कर की ये चिड़िया का ..ये बन्दर का ..ये शेर का ....हा हा ....और बच्चे चिड़िया बन्दर बन कर खा लेते थे ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मन को प्रफ्फुलित करने वाली अभिव्यक्ति
और हुआ गुटुक।
जवाब देंहटाएंBahut pyari, nirmal, maasoom, sunder, rachna! mazaa aa gaya pad kar... din ban gay!!!!
जवाब देंहटाएंBAHUT BADHIYA MA'M..
जवाब देंहटाएंAAJ BACHPAN KI YAAD AA GAYI!!!!!1
... kyaa baat hai ... bahut badhiyaa !!!
जवाब देंहटाएंवाह वाह !! क्या बात है !!
जवाब देंहटाएंBahut hi pyaari rachna.........
जवाब देंहटाएंalle....shona ne itta sara kha liya....abhi bua ka hissa baaki hai....na pahle akkad..bakkad :-) I want to growup once again :-)
जवाब देंहटाएंएक प्यारी सी मासूम सी कविता ......
जवाब देंहटाएंह्म्म्म...लगता है कल मां ने खिला दिया है गुटक ...:)
जवाब देंहटाएंऔर हम अपने बच्चों को भी ऐसे ही खिला दिया करते हैं ...
पीढ़ी दर पीढ़ी नहीं बदलती माँ और माँ का खाना खिलाना ...
बच्चों के बचपन और मां का वात्सल्य एक साथ है कविता में ...!
बहुत प्यारी रचना ... सच ऐसा ही करना पड़ता है ..
जवाब देंहटाएंseedhi ,saral aur sunder bhawon se bhari hui kavita,bahut achchi lagi .
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंबस ऐसे ही उतरी कविता मन के अन्दर…… जैसे अम्मा के हाथों का एक कौर हो…… गुटुक !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिये मेरा शब्दकोष बहुत निर्धन है। बस नमन प्रेषित है।
गुटक ने सारे विषाद क्षण भर में दूर कर दिए...बहुत प्यारी राजदुलारी सी रचना...
जवाब देंहटाएंनीरज
वाह पढ़ कर कुछ पुरानी याद ताजा हो गई पर काश रश्मि जी की आज के बच्चे ऐसे करने से खाना खा लेते
जवाब देंहटाएंरश्मि जी बहुत ही प्यारी कविता. सुंदर जज्बात.
जवाब देंहटाएं.
उपेन्द्र
सृजन - शिखर पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना )
छोटे बच्चों की प्यारी -प्यारी बातों को बड़े सुन्दर ढंग से पिरोया है ,दोनों कविताओं में.पढ़ कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंbaal-mann par badi pyari kavita, badhai.
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