खंडहर को देख
कहते हैं सब ज्ञानी
' खंडहर गवाह है ...
ईमारत बुलंद रही होगी !'
ली जाती हैं कुछ तस्वीरें
कर देता है कोई बेतरतीब हस्ताक्षर
या एक लिजलिजा सा दिल बना देता है ...
......
क्या कभी कोशिश की है सुनने की
बुलंद ईमारत की खिलखिलाती हँसी की सिसकियाँ ?
क्या नज़र आया है कभी
खंडहर में दफ़न वह ईमानदार चेहरा
जो तुम्हारी चहलकदमियों में
उन क़दमों का इंतज़ार करता है
जो खंडहर को फिर से ईमारत कर जाए
पोछ दे बेतरतीब हस्ताक्षरों को
लिजलिजे दिल को खुरचकर फेंक दे
और फिर से
ज़िन्दगी गुनगुनाने लगे ....
vaah kyaa ashavaadi rachnaa hai badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील प्रस्तुति...कौन सुनता है आज खंडहरों की दास्तां...बहुत सुन्दर और भावमयी...
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील कविता...बहुत सुद्नर...
जवाब देंहटाएंप्रकृति में मानवीकरण जहाँ मन को मुग्ध कर जाता है यहाँ का भाव मन को बेचैन और उदास कर गया ..
जवाब देंहटाएंन जाने छिपे हैं कितने इतिहास इसमें।
जवाब देंहटाएंभाव मयी सुन्दर प्रस्तुति....आभार....
जवाब देंहटाएंवाह! खूब कहा आपने..
जवाब देंहटाएंआखिर यह खंडहर ...देखने में तो निर्जीव लगते हैं लेकिन इनके माध्यम से कई इतिहास के पन्ने हमारे सामने जीवंत होकर उपस्थित होते हैं .....!
जवाब देंहटाएंbhaut bhaut hi khubsurat rachna....
जवाब देंहटाएंअपने धरोहरों की हिफाज़त लाजिमी है...
जवाब देंहटाएंखंडहर के बहाने गहरा चिंतन...
अच्छी प्रस्तुति...
सादर....
बहुत संवेदनशील रचना ..खंडहर को जीवंत करने का विचार आशा जगाता हुआ प्रतीत हुआ ..
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील कविता.....
जवाब देंहटाएंखंडहर की कहानी इतिहास बन जाती है| बहुत सुंदर .......
जवाब देंहटाएंखंडहर को इमारत कर देने में...खंडहर तो खुश हो जाएगा पर वो लोग दुखी जिन्होंने इसे खंडहर किया है ...
जवाब देंहटाएंजिन्दगी सब जगह होती है..खंडहर में भी।
जवाब देंहटाएंखंडहर के मर्म को जानने के लिए दिव्य बुद्धि और नाजुक दिल की आवश्यकता होती है , सबके लिए आसान नहीं है इसे समझना ...
जवाब देंहटाएंगहन तथ्य है कविता में !
Kyun is khandar ki halat esi huyi hogi,
जवाब देंहटाएंkoi to ghatna waha ghatit huyi hogi.
Sanvedan shil rachna....
Jai hind jai bharat
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
पुरानी चीजों और रिश्तों को भी लोग खंडहरों सा ही देखते हैं। बहुत संवेदनशील रचना ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंकाश कि गया वक्त फिर वापस आ सकता !
अत्यंत भावपूर्ण और मार्मिक रचना. रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंजिन्दगी को तलाशती रचना... और तलाश में सफल भी होती... बहुत ही खुबसूरत....
जवाब देंहटाएंआज 14 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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दीदी नमन !
जवाब देंहटाएंकविता की माँग पूरी भी हो सकती है ... है ना ?
सादर
बहुत सुन्दर भाव संग्रह्।
जवाब देंहटाएंgehan soch ko sunder abhivyakti di hai.
जवाब देंहटाएंbahut khub.....
जवाब देंहटाएंखँडहर बोलते हैं...ईमारत बुलंद थी...इनमें कुछ साँसे भर दो...ज़िन्दगी फिर से जी उठेगी...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंआज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो.
जवाब देंहटाएंजो खंडहर को फिर से ईमारत कर जाए
जवाब देंहटाएंपोछ दे बेतरतीब हस्ताक्षरों को
लिजलिजे दिल को खुरचकर फेंक दे
और फिर से
ज़िन्दगी गुनगुनाने लगे ....
भावमय करते शब्दों के साथ सशक्त रचना ..।
खंडहर में दफ़न वह ईमानदार चेहरा
जवाब देंहटाएंजो तुम्हारी चहलकदमियों में
उन क़दमों का इंतज़ार करता है
जो खंडहर को फिर से ईमारत कर जाए !
सादर....
बेहतरीन कविता। इस पर एक कविता की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं- किसी ने बनवाया था ताज, किसी की रखने को यदि याद। न क्या हो जायेगा वह क्षीण, न क्या हो जायेगा बरबाद। ताज का एक-एक पाषाण, कहा करता दिन रात पुकार। मुझे खा जायेगी दिन एक, इसी यमुना की भूखी धार।
जवाब देंहटाएंbehad bhaavpurn rachna, badhai sweekaaren.
जवाब देंहटाएंप्रश्न तो वाजिब है ... पर खंडहरों के बारे में सच में कोई नहीं सोचता ...
जवाब देंहटाएंउन क़दमों का इंतज़ार करता है
जवाब देंहटाएंजो खंडहर को फिर से ईमारत कर जाए
पोछ दे बेतरतीब हस्ताक्षरों को
लिजलिजे दिल को खुरचकर फेंक दे
और फिर से
ज़िन्दगी गुनगुनाने लगे ....
बहुत कुछ बदलना होगा मुझे
इसलिए इंतज़ार है तेरा
भावपूर्ण रचना
क्या कभी कोशिश की है सुनने की
जवाब देंहटाएंबुलंद ईमारत की खिलखिलाती हँसी की सिसकियाँ ?
क्या नज़र आया है कभी
खंडहर में दफ़न वह ईमानदार चेहरा
जो तुम्हारी चहलकदमियों में
उन क़दमों का इंतज़ार करता है
जो खंडहर को फिर से ईमारत कर जाए....बहतरीन एवं बेहद संवेदनशील रचना...