17 अगस्त, 2011

सही पहचान



कई बार हमें पता होता है -कि सामनेवाला
हमें मौत के अंधे कुँए में ले जा रहा है
फिर भी ,
अपनी कमजोरी लिए हम
उधर बढ़ते जाते हैं ....
साथ में उम्मीदें भी रखते हैं -
कि' मौत देनेवाला बदल जाए '
..... इस मौत के ज़िम्मेदार हम
अपने हत्यारे हम
अपनी कमजोरी के आगे
व्यर्थ के संस्कार लिए हम
अपने आगत को गुमराह करते हैं
उनके आगे कई प्रश्नचिन्ह खड़े कर जाते हैं !
............
गर सचमुच तुम्हें प्यार है अपने आगत से
तो अपने पदचिन्हों को सही पहचान दो
'मौत तो आनी है ' कहकर
उसके लिए वह द्वार मत खोलो
जिसके दलदल से तुम वाकिफ हो !
...........

45 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति

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  2. बहुत सुन्दर भावमयी पंक्तियाँ.....

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  3. दिल के हांथो मजबूर हो तो क्या करे

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  4. सही कहा...आपने ,कि अपने आगत को बचाना चाहिए....हमारी ही ज़िम्मेदारी है...उससे हम मुंह नहीं मोड सकते ...सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति .

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  5. बहुत गहराई लिए हुए है दी आज की रचना ...!!
    सोच में डूब गया मन .....!!

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  6. दोहरे चरित्र वाले व्यक्तिव का सटीक चित्रण....बढ़िया कविता....

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  7. गर सचमुच तुम्हें प्यार है अपने आगत से
    तो अपने पदचिन्हों को सही पहचान दो
    'मौत तो आनी है ' कहकर
    उसके लिए वह द्वार मत खोलो
    बिल्‍कुल सही कहा है इन पंक्तियों में ...एक संदेश छिपा है इस अभिव्‍यक्ति में ..आभार ।

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  8. 'मौत तो आनी है ' कहकर
    उसके लिए वह द्वार मत खोलो...

    सच्ची बात कही दी...
    सादर...

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  9. गर सचमुच तुम्हें प्यार है अपने आगत से
    तो अपने पदचिन्हों को सही पहचान दो
    'मौत तो आनी है ' कहकर
    उसके लिए वह द्वार मत खोलो
    जिसके दलदल से तुम वाकिफ हो !....

    सच है, अपने कर्मपथ पर आगे बढते जाना और अपने पदचिन्हों को सही पहचान देना ही जिन्दगी है... आभार इन शब्दों के लिए...

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  10. हाँ कई बार होता है हम बहुत सी
    बातें अनदेखा कर देते हैं सिर्फ
    इसी भरोसे की जो होगा देखा जायेगा
    ऐसे में सोचने की शक्ति को खो बैठते हैं....
    उम्मीद रखते हैं दुःख देने वाला
    बदल जाये लेकिन कुछ नहीं हो पाता....
    आपने सही कहा जब तक खुद के
    पदचिन्हों को सही पहचान नहीं
    देंगे तब तक कुछ नहीं होगा
    बस दलदल में फसते जायेगे

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  11. बिल्‍कुल सही कहा, गहराई लिए रचना

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  12. ्वाह क्या बात कही है ज़िन्दगी को देखने का अलग नज़रिया दिया है।

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  13. नहीं बच सकते हैं क्योंकि जो निर्णय दिमाग से नहीं दिल से लेते हैं वे उसके आगे कुछ नहीं कर सकते हैं. ऐसे लोगों के लिए एक सार्थक सन्देश और यही आज के युग में सत्य है.

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  14. हा आपने सही कहा हम इससे नही बच सकते है जब की हमें इससे बचना चहिये.. अक्सर हम कोई निर्णय दिल से ही लेते है... जब तक दिमाग सब समझ पता है तब तक बहुत देर हो जाती है.... देर हो उससे पहले हमें समझना है...

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  15. गर सचमुच प्यार है अपने आगत से
    तो अपने पदचिन्हों को सही पहचान दो ........
    वाह क्या बात है सुंदर रचना !
    बहुत सारी रचनाये आपकी मैंने मिस की है
    सभी पढ़ते हुए जा रही हूँ :)

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  16. इस मौत के ज़िम्मेदार हम
    अपने हत्यारे हम
    मौत तो आनी है ' कहकर
    उसके लिए वह द्वार मत खोलो ! आभार !

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  17. आगत भी अपना
    और वो सामने वाला भी
    मौत तो आनी ही है
    तो क्यूँ न जिंदगी जी कर मरें

    संस्कार तब तक हैं......जब तक जीवन है

    पर जब मौत आती है
    तो सारे संस्कार धरे के धरे रह जाते हैं
    ज़िन्दगी को पूर्णरूपेण जीना...और दलदल में धंसना
    इक ही बात है
    और ये हर कोई चाहता है
    तो उसे खुले ह्रदय स्वीकार करने में
    कैसी कोताही.......?

    गुंजन

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  18. इक बार फिर से छोटी सी कोशिश की है......आपके लिखे पर लिखने की
    या कहें आपके प्रश्न का जवाब देने की ......

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  19. सही गलत का ज्ञान ही बुद्ध होने की पहचान है...

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  20. अपने पदचिन्हों को मुड़कर देखना चाहिये।

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  21. hmmm... padchinhon ko badalne kee koshish kee jaanee chachiye... aur ye zaroori bhi hai...

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  22. गर सचमुच तुम्हें प्यार है अपने आगत से
    तो अपने पदचिन्हों को सही पहचान दो

    दिल और दिमाग का संतुलन बहुत जरूरी है ...पद चिन्हों को सही पहचान देने के लिए

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  23. गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  24. सुंदर और सार्थक पोस्ट बधाई रश्मि जी

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  25. सुंदर और सार्थक पोस्ट बधाई रश्मि जी

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  26. 'मौत तो आनी है ' कहकर
    उसके लिए वह द्वार मत खोलो
    जिसके दलदल से तुम वाकिफ हो !

    बहुत खूब ! गहन सन्देश देती बहुत सार्थक प्रस्तुति..

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  27. आजका अंदाज़ पसंद आया ...
    शुभकामनायें आपको !

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  28. गर सचमुच तुम्हें प्यार है अपने आगत से
    तो अपने पदचिन्हों को सही पहचान दो
    'मौत तो आनी है ' कहकर
    उसके लिए वह द्वार मत खोलो
    जिसके दलदल से तुम वाकिफ हो !
    waah kya baat kahi hai aur aagaah bhi kiya hai ,sambhalna jaroori hai .sundar .

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  29. sahi hai rashmi ji , maut par to apna bas nahin , zindagi to jee lein

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  30. कल-शनिवार 20 अगस्त 2011 को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया अवश्य पधारें.आभार.

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  31. maut se kya khabrana ek din to aani hai..behtar hai ki jindagi ko is tarah jiyen ki yaadgar ban jaye..

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  32. रिश्तों में दिल और दिमाग की लड़ाई का बहुत सुंदर चित्रण ...

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  33. प्रेरक लिखा है ... सच है अपने पर विशवास होना चाहिए ...

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  34. ..... इस मौत के ज़िम्मेदार हम
    अपने हत्यारे हम
    गर सचमुच तुम्हें प्यार है अपने आगत से
    तो अपने पदचिन्हों को सही पहचान दो ! आभार...

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  35. 'मौत तो आनी है ' कहकर
    उसके लिए वह द्वार मत खोलो
    जिसके दलदल से तुम वाकिफ हो !
    ...........
    sahi kaha.....

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  36. Very well written. Please guide me on http://gargi-munjal.blogspot.com/

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  37. सत्य का सन्देश

    बहुत खुबसूरत रचना

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  38. वाह !!! अब और क्या कहूँ आप इतना सार्थक लिखती हैं की शब्द ही नहीं मिलते मुझे तो आपका शुक्रिया अदा करने के लिए.... कितनी अच्छी-अच्छी रचनायें आपने हमारे साथ बाँटी उस के लिए आपका बहुत-बहुत आभार

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