17 जनवरी, 2012

ठहरे हुए वक़्त ...


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सरगोशी तो यही रही
कि वक़्त ठहरता नहीं
पर जाने कितने वक़्त ठहरे हुए हैं ...

वो जो दहीवाला आता था हमारे घर
और हम उससे आँखें बचा सारी मलाई निकाल लेते थे
फिर भी वह हँस देता था ...

वो अमरुद के पेड़ की फुनगियों से
बतिये अमरुद तोड़ना
उसमें भी स्वाद पाना ...

वो बिना रिश्तों के रिश्ते
चाचा मौसा मामा .... चाची मौसी मामी
संयुक्त परिवार सा एहसास ...

वो बिसनाथपुर के एक घर तक सुबह की सैर
वहीँ दातुन करके चुड़ा दही खाना
और इत्मीनान महसूस करना ...
चेहरे , नाम याद नहीं -
पर वो छोटा सा घर , चांपाकल याद है ...

फूलों से सजा अपना घर
घुंघरू वाले परदे
वो खुले आकाश के नीचे चादर बिछा
हम भाई बहनों की बेसिर पैर की बातें
पापा के ऑफिस जाने का इंतज़ार
अम्मा के साथ गीत गीत खेलना
नुक्कड़ की दूकान से समोसे , बेसन के लड्डू मंगाकर खाना
मूंगफली के साथ नमक को चटखारा बनाना
बेबात हँसना , लड़ना और शिकायत करना ....

वो बच्चों के साथ गाना 
छुप्पाछुप्पी खेलें आओ  …

वो मिक्कू का मुडमा मोड से वाइपर के चलने पर हूँ हाँ हूँ हाँ करना
वो उसका ए दुल्हिन बुलाना
वो उसका कहना - पपलू धूप में गया है
और सोचना कि माँ बुद्धू बन गई ...

वो खुशबू का गाना -
मेरे अच्छे चंदा मामा कल घर मेरे आ जाना
प्रेयर सॉन्ग में गाना -
माना कि कॉलेज में ....
मेरा मुंह अपनी ओर खींचना
बारी बदलने पर भी मेरे पास सोना
......

वो अंकू का बुलाना - भाईईईईईईइ
स्कूल में रोना कि टीचर ने मेरा फोटो रख लिया
बाहर चलते हैं खाने - कहना ....

ऐसे जाने कितने वक़्त आज तक सिरहाने पड़े हैं !
चादर बदल दो तकिये का खोल बदल दो
दूसरी बातों में दिन गुजार दो
पर किसी शरारती बच्चे की तरह ये सारे वक़्त
गले में बाँहें डाल मुस्कुराने लगते हैं
...... जाने ऐसे कितने मोड हैं वक़्त के
जो ठहरे हुए हैं
ज़िक्र ज्यों हीं शुरू होता हैं
सबके चेहरे पर एक मीठी मुस्कान पसर जाती है
जाड़े की धूप सी
एक ही बात दुहराते दुहराते
कुछ भी तो पुराना नहीं लगता .....

वक़्त बीत जाता है
या
ठहर जाता है - कहिये तो .....

47 टिप्‍पणियां:

  1. ...... जाने ऐसे कितने मोड हैं वक़्त के
    जो ठहरे हुए हैं
    ज़िक्र ज्यों हीं शुरू होता हैं
    उन्‍हें हम फिर से लम्‍हा-लम्‍हा जी लेते हैं ...

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  2. ऐसे जाने कितने वक़्त आज तक सिरहाने पड़े हैं !

    सच! स्मृतियों में तो पल सदा ठहरे हुए ही रहते हैं!
    सुन्दर रचना!

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  3. वक्त का वो मोड तो
    आज भी उसी शाख पर ठहरा है
    बस तुमने ही मुडकर आवाज़ नही दी

    हसरतों के पांव मे जंजीर डाल दी.........

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  4. जाने ऐसे कितने मोड हैं वक़्त के
    जो ठहरे हुए हैं
    ज़िक्र ज्यों हीं शुरू होता हैं
    सबके चेहरे पर एक मीठी मुस्कान पसर जाती है

    ये ठहरे हुए वक्त ही हैं जो पुराने नहीं पड़ते...

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  5. वक़्त बीत जाता है
    या
    ठहर जाता है - कहिये तो .....

    रश्मि जी, आपकी यादों के झरोखों में झांक कर हम भी खो गए बचपन की स्मृतियों में... मुझे तो लगता है, वर्तमान अपने भीतर ही अतीत को भी छिपाए है और भविष्य को भी... सब कुछ एक विशाल कैनवास पर टंका हुआ है, हम मध्य को देख पाते हैं पर वहाँ आरम्भ भी है और अंत भी...

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  6. वक्त तो अपनी रफ़्तार से चलता है ..पर स्मृति में कुछ पल ठहर जाते हैं .. और लगता है की वक्त आगे बढ़ा ही नहीं ..बहुत प्यारी रचना

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  7. जिसे हम बीता हुआ वक्त कहते हैं वो तो हमारी यादों में ठहरा होता है.. बहुत भावपूर्ण रचना...

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  8. ये अतीत की यादें ....हमेशा हमारे साथ चलती हैं .. हम ही वर्तमान की दोड में इन्हें भूल जाते हैं |
    शुभकामनाएँ!

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  9. वक़्त ठहर ठहर कर चलता है हमारे साथ हमारा शाश्वत साथी बनकर ....हमारी आत्मा का साथी बनकर ...ताकि जब भी हमारी रफ़्तार धीमी हो ...तो हमें ताके ...हमें देखे और उस वक़्त की मांग के अनुसार दे हमें कुछ ऐसे लम्हों की यादें जो फिर हमें प्राणवायु दे दे और हम बढ़ चलें आगे .......ज़िन्दगी की जद्दोजहद फिर शुरू .....!!!
    कहाँ खो गयीं हैं आज आप ....?
    बहुत सुंदर मन के भाव ....!!

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  10. वक्त बीत जाता है मगर अपनी छाप छोड़ता जाता है..बीता कभी बीतता नहीं..

    बहुत सुन्दर ..
    एक बात बहुत बढ़िया लगी..
    "पापा के ऑफिस जाने का इंतज़ार"
    सभी करते है :-)

    सादर.

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  11. kitna kuch yaad aa gaya.....thahar gaya jo samay yahan.....sirhane rakh usko sote hain.....

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  12. पर किसी शरारती बच्चे की तरह ये सारे वक़्त
    गले में बाँहें डाल मुस्कुराने लगते हैं
    ...... जाने ऐसे कितने मोड हैं वक़्त के
    जो ठहरे हुए हैं.....
    ateet ke kuchh pal jeevan bhar peechha karte hain. kuchh meethe kuchh kadwe...bahut khoobsoorti se unhen shabdo'n men piroya hai aapne

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  13. अत्तीत के खुश्पलों का अच्छा चित्रण !

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  14. वक्त वास्तव में तेज़ी से निकल जाता है और छोड़ जाता है पैरों के निशाँ जिन्हें एक कलेंडर सा टांक लेते है हम अपनी जिन्दगी में और मुस्कुराते रहते है. बहुत ही भावपूर्ण रचना

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  15. जाने ऐसे कितने मोड हैं वक़्त के
    जो ठहरे हुए हैं
    ज़िक्र ज्यों हीं शुरू होता हैं
    सबके चेहरे पर एक मीठी मुस्कान पसर जाती है

    ...हम आगे बढ़ जाते हैं पर वक़्त वहीं ठहरा रहता है और जब पीछे मुड कर देखते हैं तो सभी स्मृतियाँ जीवंत हो जाती हैं..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार

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  16. कल 18/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, जिन्‍दगी की बातें ... !

    धन्यवाद!

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  17. वो खुले आकाश के नीचे चादर बिछा
    हम भाई बहनों की बेसिर पैर की बातें

    sach hai waqt tehrta nahi par wo waqt humare pass tehra sa lagta gai

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  18. Wah...adbhut likha hai....

    kuch pal ke liye bachpan theher gaya smriti patal par hamare bhi....

    Bahut hi sundar varnan...Amrood ka ped, Dahiwala, nukkad se samose, prayer song.....sab kuch kaafi milta huwa sa laga......

    Hats off.......

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  19. khushnumaa or kaamyab zindgi jine kaa aek bhtrin andaaz or is andaaz ko bhrtrin andaaz me prstutikaran vaah bhaai vaah masha allah ....akhtar khan akela kota rajsthan

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  20. वक़्त बीत जाता है
    या
    ठहर जाता है - कहिये तो .....
    naa waqt beettaa ,naa thartaa
    waqt nirantar chaltaa rahtaa
    jo ghatit huaa
    yaad ban kar jhanjhodtaa rahtaa
    badhiyaa rachnaa Rashmijee

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  21. वक्त बीता जरुर ...पर ठहर गया यादो में ..बस गया अपनी ही रूह में कहीं बहुत गहरे से ...

    बचपन की हर याद आज भी साथ हैं ...अच्छी या बुरी पर है वो अपनी ......

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  22. वक़्त एक खुबसूरत याद बन कर हमारे दिल में ठहर जाता है................ गुजर तो हम जाते है.....

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  23. रश्मि जी ....न जाने क्यों बीते दिनों की याद इतनी मीठी होती है ..
    वक्त तो चलता रहता है ..हाँ यादें मन के किसी कोने में ठहर जाती हैं
    सुन्दर प्रस्तुति
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
    kalamdaan.blogspot.com

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  24. यादों के साये में तो वक्त ठहर ही जाता है ...
    बड़ा आत्मीय लगा 'बतिया' शब्द

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  25. वक्त कहाँ बीतता है ,हमीं बीत जाते है शायद..

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  26. ऐसे जाने कितने वक़्त आज तक सिरहाने पड़े हैं !
    चादर बदल दो तकिये का खोल बदल दो
    दूसरी बातों में दिन गुजार दो
    पर किसी शरारती बच्चे की तरह ये सारे वक़्त
    गले में बाँहें डाल मुस्कुराने लगते हैं

    ओह्ह नौस्टेल्जिया हो गया...कितनी ही यादें चली आयीं

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  27. ऐसे जाने कितने वक़्त आज तक सिरहाने पड़े हैं ! ........(

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  28. वक्त बीत जाता है पर सदा ही आता है याद

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  29. puraani smratiyon ko kalam badhdh karna sundar ehsaas dilata hai sach me puraani baaton ko yaad karte hain to lagta hai vaqt thahar gaya vaqt fir bhi gatimaan rahta hai.bahut achcha laga padhkar.

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  30. वक़्त वही रहता है.. वक़्त के साथ हम ही आगे बढ़ जाते हैं और बदल जाते हैं.. शानदार प्रस्तुति..

    मेरी कविता:वो एक ख्वाब था

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  31. वक़्त बीत जाता है लेकिन मीठी यादों के संग ठहरा हुआ सा लगता है।


    सादर

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  32. वक्‍त तो बीत जाता है पर बचपन की यादें कभी जेहन से नहीं जातीं, वो हमेशा ताजी रहती हैं....
    सुंदर और भावमयी रचना।

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  33. aapki kavita padhkar bachpan ki yaaden taja ho gayi...madhur sundar yaadein :)

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  34. बेहतरीन रचना ..... सच है जो पल बीत गया वो रुक गया याद बनकर ......

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  35. बचपन कि उन मिठी यादो का बहूत खुबसुरती से वर्णन किया है..
    बहूत सुंदर रचना है

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  36. कुछ ठहरे हुए लम्हे हैं...जिन्हें आपने दोबारा जी लिया...

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  37. खूबसूरत यादों से महकता आँचल ....
    पर आज की पीढ़ी के पास शेष रहेंगी ऐसी यादें ...वो वक्त वाकई और ही था

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  38. वक्त गुज़रता है ..बीतता नहीं...यादों में ठहर जाता है.

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  39. यादें कभी पूरानी नहीं होती हमेशा ताज़ा ही रहती है :-)

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  40. क्या स्मृतियाँ हैं दीदी वाह ..!

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  41. ... कितने जाने पहचाने बिछड़े वक़्त की स्मृतियाँ मेहमान बनकर जेहन में आ गए हैं इस रचना को पढ़ते हुए.... तरह तरह की बातें कर मुस्कुराने को विवश करते हुए .... वाह दी... बहुत खूब....
    सादर...

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  42. beautiful lines
    ,hum age nikal jate hain ,waqt age nikal jata hai, par man wahi choot jata hai kahin bachpan mein,un aam ke pero ke beech, un gudde guriya ke beech, aur wahi se bulata rehta hai hame,jeevan bhar..............

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