पति-पत्नी
भाई-भाई
बुज़ुर्ग- युवा,बच्चे ....
रिश्ते क्यूँ टूटे
क्यूँ हल्के हैं
जानने के लिए
- गड़े मुर्दे से कारणों को निकालने पर
सिर्फ दुर्गन्ध आएगी
तू तू मैं मैं के वीभत्स स्वर सुनाई देंगे
और सही कारण लुप्त रहेगा
और टूटने का पानी नाक तक आ जायेगा ...
तुम मन बहलाने के लिए
यूँ कहें - मज़ा लेने के लिए
प्रतिस्पर्द्धा की तृप्ति के लिए
गड़े मुर्दे उखाड़ो
अपनी मंशा शांत करो
किसी के दर्द का मज़ाक उड़ाओ
पर एक बार गिरेबान में देखो
तुम भी न पतिव्रता हो न पत्नीव्रता
न श्रवण,न भरत
क्योंकि क्षुद्र मानसिकतावाले ही
दूसरों के दर्द में कुटिल मुस्कान बिखेरते हैं !
जो दर्द के समंदर से जा मिलते हैं
वे आनेवाली नदियों का मर्म समझते हैं !!
टूटे रिश्तों के कारण
हताशा में हुए प्रलाप में नहीं दिखते
प्रलाप तो एक सुनामी है
सत्य का भी,झूठ का भी
बारीकी से अगर तुम टूटे नहीं कभी
तो बारीकी से समझना सहज,सरल नहीं !
बेवजह चर्चा गोष्ठी बैठने,बैठाने का कोई अर्थ नहीं
जिस रिश्ते को व्यक्तिविशेष निभाना नहीं चाहता
उसे समाज,परिवार्,बच्चे ....
किसी का भी हवाला देकर निभाने की सलाह सही नहीं
क्योंकि उसकी चिंगारियां
समाज,परिवार,बच्चों के जिस्म और मन पर पड़ती हैं
और घर' शमशान हो जाता है ....
किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
तथाकथित तोडनेवाला
स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है
हर खौफ उसके जेहन में उभरता हैं
टूटने से पहले वह कई मौत मरता है
तब अकेलेपन को चुनता है
सन्नाटे से दोस्ती करता है ..........
गड़े मुर्दे समान दर्द को कुरेदकर
उसकी कहानी सुनकर
फिर यह कहावत दुहराकर
कि - ताली एक हाथ से नहीं बजती ....
क्या मिलेगा तुम्हें?
तुम ठहाके लगाओ
या मगरमच्छी आंसू बहाओ
दर्द सह्नेवाले शून्य हो जाते हैं
और उनकी शून्यता से बिना उनके चाहे
एक आवाज़ आती है तुम जैसों के लिए
- सब दिन होत न एक समान !!!